द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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अय्यूब 26-31 अध्यायों में अय्यूब उन कई अच्छी बातों की सूची देता है जो उसने दूसरों की मदद के लिये किया था। जब हम इन अध्यायों को पढ़ते है तो परमेश्वर के विषय जो प्रकाशन अय्यूब के पास था उसे देखकर आश्चर्य होता है और उसके मार्गों के विषय भी जो उसने उन दिनों में जीया जब बायलब नहीं थी और पवित्र आत्मा भी लोगों के भीतर नहीं बसता था। इन अध्यायों में कुछ बातों को देखना अच्छी बात होगी क्योंकि वे हमें शर्मिंदा करते हैं और हमें आज ज्यादा उच्चस्तरीय जीवन जीने के लिये चुनौती देते हैं।

वह यह कहकर शुरू करता है कि मनुष्य कितना मूर्ख है जो सोना पाने के लिये खान तो खोदता है, परन्तु बुद्धि के लिये नहीं (28:1,12,13)। सुलैमान ने भी 1000 वर्ष बाद में नीतिवचन 9:10 में ठीक यही बात कहा। बेशक उसे यह समझ अय्यूब की पुस्तक को पढ़कर ही मिली थी। 29 वें अध्याय में अय्यूब उसके अतीत के विषय कहता है जब वह परमेश्वर के साथ मित्रता में था तथा गरीबों, अनाथों, विधवाओं, अंधों, लंगड़ों और जरुरतमंदों की मदद करता था। 30 वें अध्याय में वह शिकायत करता है कि उसके द्वारा की गई सभी भलाइयों के बावजूद अब वह क्लेश में था और परमेश्वर द्वारा इतना नीचे ला दिया गया था।

31 वें अध्याय में वह उसके जीवन में धार्मिकता के विषय कहता है। वह इस बात से चौकस था कि किसी स्त्री को बुरी लालसा से न देखे (पद 1)। उसे इस विषय पहले से ही ज्ञान था जो यीशु ने मत्ती 5 वें अध्याय में 2000 वर्ष पहले कहा था। उसने बिना किसी झूठ के ईमानदारी का जीवन जीया था (पद 5,6), वह उसकी पत्नी के साथ कभी अविश्वासयोग्य नहीं रहा था (पद 9-12), उसके दासों के साथ दयालुता का व्यवहार किया था (पद 13-15), उसने गरीबों और विधवाओं की सहायता किया था और अनाथों को अपने बच्चो के समान अपने घर ले आया था (पद 16-23), उसने सोने पर विश्वास नहीं किया न कभी मूर्तिपूजा किया (पद 24-28), उसने शत्रुओं की हार पर आनंद नहीं मनाया (पद 29,30), उसने परदेशियों की सुधि लिया था (पद 31,32), जब भी उसने पाप किया, उसका अंगीकार किया था (पद 33), वह लोगों के आरोपों से नहीं डरता था (पद 34) और यहाँ तक कि उसकी भूमि की भी उचित देखभाल किया था (पद 38-40)। वह उत्तर पाने के लिये परमेश्वर को पुकारता है (पद 35)।

इन अध्यायों में हम देख सकते हैं कि अय्यूब कितना धर्मी व्यक्ति था। उसके जीवन के कई क्षेत्रों में प्रकाश था और वह अत्याधिक मदद करने वाला व्यक्ति था। फिर भी एक बात के विषय उसके पास प्रकाश या समझ नहीं थी : आत्मिक घमंड। उसकी धार्मिकता में घमंड : परमेश्वर ने अय्यूब से प्रेम किया और उसे निश्चय था कि इस पृथ्वी को छोड़ने से पहले अय्यूब में नम्रता का एक गुण आ जाएगा। और इसलिये अय्यूब के लिये अत्याधिक प्रेम में परमेश्वर ने उसे इस गहिरी परीक्षा में से ले गया ताकि उसे धर्मी और नम्र दोनों बना सके।

जब धर्मी प्रेरित पौलुस घमंडी होने के खतरे में था, परमेश्वर ने पौलुस को भी क्लेशों से ले गया। उसने उसके शरीर में एक काँटा दिया, जो शैतान का संदेश वाहक था (2 कुरि 12:7)। अय्यूब के पास भी शैतान का एक संदेश वाहक था। पौलुस जानता था कि उसे यह क्यों दिया गया था। अय्यूब नहीं जानता था। इसीलिये परमेश्वर कई धर्मी लोगों को क्लेशों, गलतफहमियों, विरोध और सताव से ले जाता है - उन्हें नम्र बनाने और उन्हें तोड़ने ताकि वह अनुग्रह उन पर उंडेले, क्योंकि वह अपना अनुग्रह केवल नम्र लोगों को ही देता है। हम शिकायत करने के लिये अय्यूब को दोष नहीं दे सकते। उसके पास बायबल नहीं थी, न भीतर बसने वाला पवित्र आत्मा था, न ही कोई भाई था जो उसे प्रोत्साहित किया होता। पौलुस ने कभी शिकायत नहीं किया, न हमें करना चाहिये।