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“तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी…तब तुम फिरकर धर्मी और दुष्ट का भेद, अर्थात जो परमेश्वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों को भेद पहिचान सकोगे” (मलाकी 3:16 -18)

उपरोक्त वचब हमें लोगों के दो समूहों के बारे में बताते हैं - धर्मी और दुष्ट। इसमें कहा गया है कि परमेश्वर के पास "स्मरण की एक पुस्तक" है जिसमें केवल उन मसीहियों के नाम हैं जो वास्तव में परमेश्वर से डरते हैं और जो उसके नाम का सम्मान करते हैं। और परमेश्वर कहता है कि इस प्रकार सच्चे धर्मी दुष्टों से भिन्न होंगे।

इन शब्दों को यीशु द्वारा मत्ती23:25, 26 में कही गई बातों से जोड़ा जा सकता है। उस ने वहां कहा, दुष्ट फरीसियों ने केवल प्याले के बाहरी भाग को शुद्ध रखा; जबकि सच्चे धर्मी प्याले के भीतर और बाहर दोनों को शुद्ध रखते हैं। इस प्रकार हम धर्मी को दुष्टों से अलग करते हैं।

विश्वासी जो वास्तव में परमेश्वर का भय मानते हैं, वे हमेशा परमेश्वर के सामने अपने दिलों को शुद्ध रखेंगे और साथ ही लोगों के सामने उनके प्रकाश (उनके जीवन की बाहरी गवाही) को चमकने देंगे। पाप पर वास्तविक विजय का जीवन उसी में संभव है जो अपने आंतरिक जीवन को सर्वोपरि मानता है।

शुद्ध विवेक और शुद्ध हृदय में भी बहुत बड़ा अंतर है। शुद्ध विवेक वह है जो सभी ज्ञात पापों से मुक्त हो; जबकि एक शुद्ध हृदय वह है जो न केवल सभी ज्ञात पापों से मुक्त है, बल्कि स्वयं परमेश्वर के अलावा अन्य सभी चीजों के प्रति लगाव से मुक्त है। जिसके पास शुद्ध हृदय है वह केवल परमेश्वर को देखता है और कुछ नहीं और किसी को नहीं। यीशु ने कहा, "धन्य हैं वे जो मन के शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे"। शुद्ध मन के लोग हर परिस्थिति में केवल परमेश्वर को देखते हैं (मत्ती 5:8)। उनका मन लोगों (अच्छे या बुरे) या उनकी परिस्थितियों (आसान या कठिन) में व्यस्त नहीं होगा। वे केवल स्वयं परमेश्वर के साथ व्यस्त रहेंगे।

जो दूसरे के विरुद्ध शिकायत करता है, वह यह साबित करता है कि उसका हृदय शुद्ध नहीं है, क्योंकि वह केवल परमेश्वर में ही व्यस्त नहीं है, बल्कि उस बुराई में है जिसे वह दूसरे में देखता है। यदि उसका हृदय शुद्ध होता, तो वह केवल परमेश्वर को देखता – यहाँ तक कठिन लोगों द्वारा बनाई गई कठिन परिस्थितियों में भी! ऐसा व्यक्ति परमेश्वर को उन कठिन परिस्थितियों में न केवल उसकी भलाई के लिए कार्य करता हुआ देखेगा (रोमियों 8:28) बल्कि परमेश्वर की महिमा के लिए भी। तब वह हर चीज़ के लिए परमेश्वर की स्तुति करेगा।

अगर आपका हृदय वास्तव में शुद्ध है, तब चाहे संसार के सारे लोग और लाखों दुष्टात्माएं भी आपके ख़िलाफ मोर्चा बाँध लें, तब भी वे आपके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा होने से नहीं रोक पाएंगे - क्योंकि परमेश्वर हर स्थिति में आपके लिए काम करेगा। तब आप हर स्थिति में विजयी होंगे - और आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की सिद्ध योजना को पूरा कर पाएँगे।

बाइबल कहती है, “जैसे पानी चेहरे को, वैसे मनुष्य का हृदय मनुष्य को प्रतिबिम्बित करता है” (नीतिवचन 27:19)। इस पद का एक अर्थ है कि जब हम दूसरों द्वारा किए जाने वाले किसी काम को इस तरह देखते हैं कि वह एक पूरे उद्देश्य से किया गया काम है, तो असल में हम अपने हृदय की दशा को ही प्रकट कर रहे हैं - क्योंकि हम यह कल्पना कर रहे हैं कि उनके अन्दर वही बुरे उद्देश्य हैं जो हममें भी उस समय होते अगर हम भी वही काम कर रहे होते। लेकिन यीशु ने हमें लोगों का मूल्यांकन केवल उनके फल (बाहरी कार्यों) से करने के लिए कहा ("उनके फल से तुम उन्हें जानोगे" - मत्ती 7:16) - और उनकी जड़ों से नहीं (उनके इरादे, जिन्हें देखा नहीं जा सकता!) अगर हम स्वयं को निरंतर शुद्ध करते रहेंगे, तब हम केवल स्वयं का न्याय करेंगे, न कि अन्य लोगों के उद्देश्यों का। तभी हम अपने हृदय को सदा शुद्ध रख सकेंगे। तब परमेश्वर स्वयं हमें औरों के विषय में परख देगा, ऐसा न हो कि हम धोखा खा जाएं। यीशु का हृदय हमेशा शुद्ध था, क्योंकि उसने कभी किसी का न्याय नहीं किया (यूहन्ना 8:15), परन्तु वह सबके बारे में परख रखता था (यूहन्ना 2:24,25)।

यहाँ एक उदाहरण दिया गया है कि हमारे हृदय को शुद्ध रखने का क्या अर्थ है। भाई जुनिपर एक भक्तिमय व्यक्ति था जो 13वीं शताब्दी में इटली में रहता था। वह हमेशा साधारण कपड़े पहनता था। एक दिन उसने अपने एक साथी भाई को बहुत महंगे कपड़े पहने देखा। लेकिन जुनिपर ने उसके लिए उसका न्याय नहीं किया। इसके बजाय, उसने अपने आप से कहा, "उन महंगे वस्त्रों के नीचे शायद उस भाई के अन्दर उससे भी ज्यादा नम्र व दीन हृदय हो जो मेरे इन साधारण वस्त्रों के नीचे मेरे अन्दर है”। इतने शुद्ध और विनम्र स्वभाव के साथ, उसने अपने भाई का न्याय करने के पाप से स्वयं को बचा लिया। यह उनकी भक्ति का एक रहस्य था - और यह हम सभी के लिए अनुसरण करने के लिए एक अच्छा उदाहरण है। हम हमेशा ऐसे ही रहें। आमीन।