प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में दिए गए स्वर्ग के दृश्यों की सात झांकियों में, हम स्वर्ग के वासियों को एक ऊंचे स्वर से परमेश्वर की स्तुति करते हुए सुनते हैं - कभी बादलों की गर्जन और महाज़लनाद की तरह। यह स्वर्ग का वातावरण है - कोई अपेक्षा या शिकायत बिना, लगातार स्तुति का वातावरण। और यही वह वातावरण है जो पवित्र आत्मा हमारे ह्रदयों में, हमारे घरों में और हमारी कलीसियाओ में लाना चाहता है। इस तरह से ही शैतान इन सभी जगह में से निकाला जाएगा।
स्वर्ग का एक और पहलु प्रकाशित वाक्य 4:10 में देखा जा सकता है। हम वहां पढ़ते हैं कि प्राचीनों ने “अपने मुकुट परमेश्वर के आगे डाल दिए”। स्वर्ग में यीशु के अलावा और किसी के सिर पर मुकुट नहीं होगा हम सभी वहां सामान्य भाई-बहन ही होंगे। स्वर्ग में कोई खास भाई या बहन नहीं होंगे। कलीसिया में जो भी भाई या बहन विशेष होना चाहते हैं, वे कलीसिया में नर्क का वातावरण लाते हैं। हम भी जब पिता के सामने खड़े होंगे, तो किसी भी बात में बढ़ाई नहीं करेंगे। हमारे पास जो कुछ भी होगा, वह हम पिता के आगे डाल देंगे। स्वर्ग में कोई कभी यह नहीं कहेगा (उसे स्वयं मिले मुकुट के विषय में भी नहीं) कि “यह मेरा है”। जब हमारी कलीसियाओं में स्वर्ग का वातावरण फैलने लगेगा, तब जो कुछ हमारे पास होगा, उसके विषय में हम कभी यह नहीं कहेंगे, “यह मेरा है”। सब कुछ परमेश्वर का माना जाएगा और इसलिए पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को बढ़ाने के लिए सबके लिए वह एक मुक्त रूप में उपलब्ध रहेगा।
स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी की जाती है? मैं चार बातों का उल्लेख करना चाहता हूं। सबसे पहले, स्वर्गदूत लगातार परमेश्वर के आदेश का इंतज़ार करते है। वे सबसे पहले परमेश्वर के बोलने की प्रतीक्षा करते हैं और उसके बाद ही वे कार्य करते हैं। इसलिए, जब हम प्रार्थना करते हैं कि “स्वर्ग के समान इस पृथ्वी पर तेरी इच्छा पूरी हो," (मत्ती 6:10) इसका मतलब है, सबसे पहले हम यह सुनना चाहते हैं कि परमेश्वर हमसे क्या कहना चाहता है। दूसरा, जब परमेश्वर बोलता हैं, स्वर्गदूत तुरंत आज्ञा पालन करते हैं। फिर तीसरा, जब परमेश्वर स्वर्ग में कुछ आज्ञा देता है, तो उसे सम्पूर्ण रूप से पूरा किया जाता है। और अंत में, स्वर्गदूतों की आज्ञाकारिता आनंदपूर्ण है।
स्वर्ग में एक धन्य संगति है। वहाँ कोई किसी पर प्रभुता नहीं करता। हर कोई दूसरों का सेवक होता है। स्वर्ग का आत्मा बिलकुल अलग है, क्योंकि वहाँ परमेश्वर एक पिता है। वह लोगों पर प्रभुता नहीं करता बल्कि प्रेम से उनकी चरवाही और सेवा करता है। यही वह स्वभाव है जिसमें हमें सहभागी होना है। यदि हम अभी यहाँ विश्वासयोग्य रहेंगे, तो हमसे यह प्रतिज्ञा की गई है कि हमें स्वर्ग में मुकुट दिया जाएगा। इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि हम लोगों पर राज्य करेंगे? नहीं, बिलकुल नहीं। इसका अर्थ है कि हम जिन्हें पृथ्वी पर अपने भाइयों की सेवा करने की लालसा थी, लेकिन विभिन्न सीमाओं के कारण हम सिद्ध रूप से इसे नहीं कर पाएँ, यह पाएंगे कि स्वर्ग में यह सारी सीमाएँ हट जाएगी और हम दूसरों की सिद्ध रुप से सेवा कर पाएँगे। इस प्रकार हमारे हृदय की लालसा पूरी हो जाएगी। स्वर्ग में सबसे महान व्यक्ति स्वयं यीशु होगा और वही सबसे बड़ा सेवक होगा। उसकी आत्मा हमेशा सेवा की आत्मा होगी। कलीसिया को परमेश्वर द्वारा पृथ्वी पर इसलिए रखा गया है ताकि दूसरों के लिए वह स्वर्ग का एक छोटा सा नमूना हो सके। किसी भी कलीसिया में सबसे मूल्यवान भाई और बहन वह है जो कलीसिया में स्वर्ग का वातावरण ला सके और जो उस कलीसिया में संगति का निर्माण कर सके। और यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा व्यक्ति कलीसिया के प्राचीनों में से कोई एक हो। हम सभी के पास ऐसे मूल्यवान भाई-बहन बनने का अवसर है। एक कलीसिया में एक भाई/बहन के बारे में सोचें, जो जब भी किसी भी सभा या घर में आते है, तो वह कमरे से चलने वाली स्वर्ग की शुद्ध हवा की तरह होता है। क्या ही अमूल्य भाई/बहन है ऐसा व्यक्ति! यहां तक कि अगर वह सिर्फ पांच मिनट रुक कर आपसे मिलता है तो आप तरोताजा महसूस करते हैं। आपको ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग आपके घर में पांच मिनट के लिए आया हो! यह जरूरी नहीं कि उसने आपको कोई उपदेश दिया हो या पवित्र शास्त्र में से प्रकाशन का कोई शब्द दिया हो। लेकिन वह बहुत ही शुद्ध था। वह मिजाजी या उदास नहीं था और न उसमें किसी के खिलाफ कोई शिकायत थी।