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2 कुरिन्थियों 2:14 में पौलुस कहता है, "परमेश्‍वर का धन्यवाद हो जो हमें सदैव उसके जय के उत्सव में लेकर चलता है"। द लिविंग बाइबल इसका इस तरह भावानुवाद करता है , "परमेश्वर का धन्यवाद हो! उसके लिए जो उसने मसीह के द्वारा किया है, उसने हम पर जय पा ली है"। इसलिए परमेश्वर को हमारे जीवन के हर क्षेत्र में हम पर विजय प्राप्त करनी अवश्य है, ताकि हम विजयी होकर जीवन जीए।

एक दिन हर एक घुटना झुकेगा और स्वीकार करेगा कि यीशु ही प्रभु है (फिलि.2:10, 11)। लेकिन अभी, आपके शरीर के भीतर हर इच्छा के घुटने को झुकना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि यीशु ही प्रभु हैं। वे वासनाएं जो आप पर शासन करती हैं, उन्हें झुकना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि यीशु आपके शरीर का स्वामी है।

"प्रभु की तलवार अपनी म्यान से निकलकर सिर (उत्तर) से पांव (दक्षिण) तक सब प्राणियों पर चढ़ाई करेगी, और सब प्राणी जान लेंगे कि यहोवा ने उस पर अपनी तलवार खींची है" (यहेज.21:4,5)

जिस लक्ष्य की ओर परमेश्वर कार्य कर रहा है वह यह है कि "यीशु मसीह का हर बात में प्रथम स्थान हो" (कुलु.1:18)। यदि आप इसे भी अपना लक्ष्य बना लेते हैं, तो आप अपने जीवन में और उसके लिए अपनी गवाही में, हर समय परमेश्वर की सहायता प्राप्त करने पर भरोसा कर सकते हैं।

जिस तरह से आप अपना समय और अपना धन खर्च करते हैं, आपके द्वारा पढ़ी जाने वाली किताबों में, आपके द्वारा सुने जाने वाले संगीत में, आपके द्वारा देखे जाने वाले टीवी कार्यक्रमों में, आपके साथ रहने वाले दोस्तों में, आपके वाणी में, हर बात में मसीह का पहला स्थान होना चाहिए। यीशु को सब बातों का प्रभु बनाने का यही अर्थ है। तभी आप कह सकते हैं कि परमेश्वर ने हर क्षेत्र में आप पर जय प्राप्त की है। यह कोई ऐसी बात नहीं है जो रातों-रात हो सकती है। लेकिन इसे अपना दीर्घकालिक लक्ष्य बनाएं, और इसके लिए काम करते रहें। तब तुम दिन-ब-दिन और साल-दर-साल उस लक्ष्य के करीब आते जाओगे।

यीशु परमेश्वर का मेम्ना था जिसने संसार के पापों को उठा लिया। अब हमें "वध होने वाली भेड़" कहा जाता है (रोम 8:36), उन पापों को उठाए रहते है जो दूसरे हमारे खिलाफ करते हैं। लकड़ी और आग (हमारे जीवन की परिस्थितियाँ) सभी तैयार हैं, जैसे कि मोरिय्याह पर्वत पर था। परन्तु प्रश्न (जैसे इसहाक ने अपने पिता से पूछा) है, "मेम्ना कहाँ है" (उत्प 22:7)? उत्तर है "तुम्हें वह मेम्ना बनना है"।