पवित्र आत्मा हमारे हृदयों में स्वर्ग का वातावरण तैयार करने के लिए आया है। पुरानी वाचा में उनके पास केवल व्यवस्था थी जो उन्हें एक ऐसा जीवन जीने में सक्षम बनाती थी जो अन्य मनुष्यों के जीवन की तुलना में बहुत धर्मी था। लेकिन अब हमारे मार्गदर्शन के लिए हमारे पास केवल दिव्य व्यवस्था ही नहीं, बल्कि उससे बढ़कर है: हमारे पास हमारे कार्यों को संचालित करने के लिए स्वयं दिव्य जीवन है। स्वर्ग इसलिए स्वर्ग है क्योंकि परमेश्वर की उपस्थिति वहाँ है। जहां परमेश्वर है वहां स्वर्ग है।
स्वर्ग में एक धन्य संगति है। वहाँ कोई किसी पर प्रभुता नहीं करता। हर कोई दूसरों का सेवक होता है। स्वर्ग का आत्मा बिलकुल अलग है, क्योंकि वहाँ परमेश्वर एक पिता है। वह लोगों पर प्रभुता नहीं करता बल्कि प्रेम से उनकी चरवाही और सेवा करता है। यही वह स्वभाव है जिसमें हमें सहभागी होना है। यदि हम अभी यहाँ विश्वासयोग्य रहेंगे, तो हमसे यह प्रतिज्ञा की गई है कि हमें स्वर्ग में मुकुट दिया जाएगा। इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि हम लोगों पर राज्य करेंगे? नहीं, बिलकुल नहीं। इसका अर्थ है कि हम जिन्हें पृथ्वी पर अपने भाइयों की सेवा करने की लालसा थी, लेकिन विभिन्न सीमाओं के कारण हम सिद्ध रूप से इसे नहीं कर पाएँ, यह पाएंगे कि स्वर्ग में यह सारी सीमाएँ हट जाएगी और हम दूसरों की सिद्ध रुप से सेवा कर पाएँगे। इस प्रकार हमारे हृदय की लालसा पूरी हो जाएगी।
स्वर्ग में सबसे महान व्यक्ति स्वयं यीशु होगा और वही सबसे बड़ा सेवक होगा। उसकी आत्मा हमेशा सेवा की आत्मा होगी। कलीसिया को पमरेश्वर द्वारा पृथ्वी पर इसलिए रखा गया है ताकि दूसरों के लिए वह स्वर्ग का एक छोटा सा नमूना हो सके। यह कुछ ऐसा है जैसे एक बिस्किट-कंपनी आपको उसके बिस्किट का एक छोटा सा नमूना भेजती है और आपको उसका स्वाद चखने के लिए कहती है और देखती है कि आपको और ज्यादा चाहिए या नहीं। परमेश्वर ने भी हमें अपने राज्य के मूल्यों को दूसरों को दर्शाने के लिए पृथ्वी पर भेजा है ताकि वे परमेश्वर के प्रति आकर्षित हो सकें। दूसरों को हममें से कैसा स्वाद मिलता है? जब यीशु इस पृथ्वी पर चला तो लोगों ने स्वर्ग के जीवन का एक छोटा सा नमूना देखा और चखा। उन्होंने यीशु की करुणा, दूसरों के प्रति विचारशीलता, उसकी पवित्रता और उसके निस्वार्थ प्रेम और नम्रता को देखा। स्वर्ग ऐसा है। परमेश्वर ऐसा ही है – वह पापियों के लिए और उन लोगों के लिए जो जीवन में असफल रहे हैं - बहुत करुणामय है।
किसी भी कलीसिया में सबसे मूल्यवान भाई और बहन वह है जो कलीसिया में स्वर्ग का वातावरण ला सके और जो उस कलीसिया में संगति का निर्माण कर सके। और यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा व्यक्ति कलीसिया के प्राचीनों में से कोई एक हो। हम सभी के पास ऐसे मूल्यवान भाई-बहन बनने का अवसर है। एक कलीसिया में एक भाई / बहन के बारे में सोचें, जो जब भी किसी भी सभा या घर में आते है, तो वह कमरे से चलने वाली स्वर्ग की शुद्ध हवा की तरह होता है। क्या ही अमूल्य भाई / बहन है ऐसा व्यक्ति! यहां तक कि अगर वह सिर्फ पांच मिनट रुक कर आपसे मिलता है तो आप तरोताजा महसूस करते हैं। आपको ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग आपके घर में पांच मिनट के लिए आया हो! यह जरूरी नहीं कि उसने आपको कोई उपदेश दिया हो या पवित्र शास्त्र में से प्रकाशन का कोई शब्द दिया हो। लेकिन वह बहुत ही शुद्ध था। वह मिजाजी या उदास नहीं था और न उसमें किसी के खिलाफ कोई शिकायत थी।
ऐसा भाई / बहन किसी भी सभा में कभी भी सबसे पहले वचन नहीं बाटेंगे। वे शायद हर सभा में पंद्रहवे क्रम पर बोल सकते है और वह भी सिर्फ तीन मिनट के लिए। लेकिन उस सभा में वे स्वर्ग के तीन मिनट होंगे - सुनने के लिए इंतजार करने योग्य!