द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मसीह के प्रति समर्पण
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यीशु का जीवन सुंदर, अनुशासित, शांतिमय तथा आनन्दित था। ऐसा जीवन पृथ्वीपर आजतक किसी ने नहीं देखा। ऐसा जीवन होने का कारण ही वह पूर्ण रूप से परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन करता था।

सृष्टी में जो अनुशासन है उसे हम देखेंगे। सुरज, चांद, सितारे आकाशमंडल में अनुशासित है। परमेश्वर ने उन्हें जो काम सौंपा है वह काम वह अनुशासित रहकर पूरा कर रहे है। वे आज्ञापालन करके परिक्रमा कर रहे है। इसकारण वैज्ञानिक उनकी भविष्य की स्थिति स्पष्ट रूप से बता पाते है। उनके इस अनुशासन का राज क्या है? केवल एक ही राज है। वे अपने दायरे में रहकर, अपना काम करते निर्माणकर्ता परमेश्वर का आज्ञापालन करते है।

जहां परमेश्वर का आज्ञापालन है वहां परिपूर्णता तथा सुंदरता है। जहां परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं वहां गोलमाल तथा विद्रुपता है। तारे भी शांत रहकर गवाही देते है कि परमेश्वर का आज्ञापालन सबसे उचित है। परमेश्वर की आज्ञाएं बोझ नहीं।

यीशु का जीवन गवाही देता है कि केवल धर्मी जीवन ही हमारे लाभ का है। वह आज और भविष्य में हमारे फायदे का है (1 तीमुथियुस 4:8)। धर्मी व्यक्ति से बढ़कर कोई भी व्यक्ति अधिक आनंदित, शांतीमय तथा तृप्त नहीं रह सकता।

''यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दों से बच जाते हैं'' (नीतिवचन 14:27)। यीशु ने आगे बताई हुई आज्ञा का पालन किया। ''तू पापियों के विषय मन में डाह न करना, दिन भी यहोवा का भय मानते रहना'' (नीतिवचन 23:17)।

परमेश्वर ने यीशु की प्रार्थना सुनी क्योंकि यीशु ने यहोवा का भय माना (इब्रानियों 5:7)। स्वर्ग यीशु के लिये हमेशा खुला था क्योंकि यीशु यहोवा का भय मानता था। ''मैं अपने पिता का आदर करता हू'ं ' (यूहन्ना 8:39)। ऐसा यीशु ने एक बार कहा है। यीशु ने अपने जीवन द्वारा वचन के सत्य को प्रकट किया। ''यहोवा का भय मानना बुध्दि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है।'' (नीतिवचन 9:10)