द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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परमेश्वर का वचन यीशु मसीह के विषय में कहता है, “उसने आज्ञा मानना सीखा और सिद्ध बना” (इब्रानियों 5:7,9)। शब्द “सीखना” शिक्षा प्राप्त करने से संबंधित है। तो यह वचन यह कह रहा है कि यीशु ने मनुष्य की तरह आज्ञा मानने की शिक्षा प्राप्त की। प्रत्येक स्थिति में, उसने अपने पिता की आज्ञा मानी और इस प्रकार उसने एक मनुष्य के रूप में अपनी शिक्षा को पूर्ण किया। इस प्रकार वह हमारे लिए एक अग्रदूत (आगे चलने वाला) बन गया, ताकि हम भी उसके पदचिन्हों पर चल सकें, परीक्षणों पर जय पा सकें और परमेश्वर की आज्ञा मान सकें (इब्रानियों 6:20)। हमारा प्रभु हमें परीक्षणों के खिलाफ हमारे संघर्षों में सहानुभूति (सांत्वना) दे सकता हैं, क्योंकि वह भी हमारी तरह परीक्षाओं में पड़ा था (इब्रानियों 2:18; 4:15; 12: 2-4)। मनुष्य होने के नाते यीशु ने इस पवित्रता को स्वर्ण थाल में प्राप्त नही किया परंतु युद्ध करके प्राप्त किया। और ये युद्ध अंतहीन नही थे। प्रत्येक परीक्षण पर विजय पा ली गई - एक के बाद एक। इस प्रकार, अपने जीवनकाल की अवधि में, उसने हर एक उस परीक्षण का सामना किया, जिसका हम सामना करते है और विजयी हुआ।

हम सभी कई सालों तक पाप में रहे हैं और हमारे पापमय शरीर की तुलना उन जहरीले सांपों से भरे बक्से से की जा सकती है जिन्हें स्वयं हमारे द्वारा अच्छी तरह से खिलाया जाता है!! इन सांपों के नाम है अशुध्दता, क्रोध, जलन, झगड़े, कडुवाहट, पैसों का लोभ, स्वार्थ, अहम इत्यादि। जब भी हम परीक्षा में पड़ते हैं तब ये सांप बक्से के ऊपरी छेद से अपना मुहँ निकालते हैं। अपने अविश्वासी काल में हमने इन्हें भरपेट खिलाया है जिसके परिणाम स्वरूप ये तंदूरस्त और ताकतवर हैं। कुछ साँपों को दूसरों की तुलना में अधिक खिलाया गया है, और इसलिए उन वासनाओं की दूसरों की तुलना में हमारे ऊपर अधिक पकड़ है। अब जब कि हम मसीह के साथ पाप के लिए मर चुके है, लेकिन यह सांप अब भी हट्टे- कट्टे है, हमारा स्वभाव इन सांपों के प्रति बदल गया है। अब हम मसीह के दिव्य स्वभाव के सहभागी हो गए है और “जो मसीह यीशु के है, उन्होने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है” गलातियों 5:24। बीते दिनों के विपरीत, अब जब एक सांप अपने सिर को बक्से के छेद से बाहर उठाता है (जब हम परीक्षण में पड़ते है), तो हम उसे छड़ी से सिर पर मारते हैं। वह वापस बक्से में चला जाता है। जब हम फिर से परीक्षण में पड़ते है, तो सांप अपना सिर फिर से बाहर निकालता है, और हम उसे फिर से मारते हैं। धीरे-धीरे वह कमजोर और कमजोर हो जाता है। यदि हर परीक्षण में हम ईमानदारी से इनके सिर पर घात करें और उनका पोषण न करें तो हम जल्द परीक्षण के खिंचाव को कमजोर होता हुआ पाएगे। पुराने मनुष्यत्व को न तों एकदम गोली मारी जा सकती है न ही फांसी पर लटकाया जा सकता है। उसे क्रूस पर ही लटकाया जा सकता है। क्रूस पर लटकाने से मृत्यु धीरें आती हैं पर निश्चित होती है। इसलिए जब हम परीक्षा में पड़ते है तो इसे आनंद की बात समझते हैं (याकूब 1:2)। क्योंकि परीक्षण में पड़ना हमे यह मौका देता है कि उन सांपों को मारे और कमजोर करें। अन्यथा: यह संभव नहीं होता।

अशुद्ध विचारों की बात पर गौर करें। यदि हम इस क्षेत्र में विश्वासयोग्य हैं, तो हम पाएंगे कि थोड़ी देर के बाद मृत्यु प्रवेश करती है। इसमें कुछ साल लग सकते हैं, अगर हमारे उद्धार के पहले के दिनों में हमने इस साँप को कई सालों तक खिलाया है। लेकिन मृत्यु निश्चित रूप से आएगी अगर हम विश्वासयोग्य हैं। एक परिणाम यह होगा कि हमारे सपने भी शुद्ध हो जाएंगे। गंदे सपने अधिक से अधिक दुर्लभ हो जाएंगे। हालांकि अगर गंदे सपने उनकी संख्या में बढ़ते हैं, तो यह दर्शाता है कि हम अपने विचार-जीवन में एक बार फिर से विश्वासहीन हो रहे हैं। यह एक अच्छी परीक्षा है जिसके द्वारा हम अपने विचार-जीवन में अपनी विश्वासयोग्यता को जांच सकते हैं। गंदे सपने अचेतन पाप हैं, और इसलिए हमें उनके बारे में दोषी महसूस करने की आवश्यकता नहीं है (रोमियों 7:25; 8: 1)1 यूहन्ना 1:7 हमें बताता है कि यीशु का लहू हमें ऐसे सभी पापों से अपने आप साफ करता है, अगर हम ज्योति में चलते हैं। अधिक से अधिक विश्वासयोग्यता ही विजय दिलाएगा। उदाहरण के लिए, यौन क्षेत्र में पूरी तरह से विश्वासयोग्यता में सुंदर दिखने वाले चेहरे (विपरीत लिंग) की प्रशंसा न करना भी शामिल है, भले ही इस तरह की प्रशंसा में कोई यौन विचार न जुड़ा हो। यह वह विश्वासयोग्यता है जो नीतिवचन 6:25 ("उसकी सुंदरता की अभिलाषा न कर") हमें कहता है। यह इसलिए है क्योंकि बहुत कम लोग इस क्षेत्र में विश्वासयोग्य होते हैं, यही कारण है कि बहुत कम लोग अपने सपनों में पवित्रता को पाते हैं।

हमारे अचेतन का हिस्सा हमारे जागने के क्षणों के बारे में जो हम सचेत रूप से सोचते हैं, उससे बहुत हद तक प्रभावित होता है - उन परीक्षणों से जो हमारे मन में नहीं बल्कि उन प्रलोभनों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं से प्रभावित होते हैं। यदि हमारे अचेतन भाग को यह संदेश मिलता है कि हम अपने विचारों और स्वभावों में भी पाप से घृणा करते हैं और हम परमेश्वर के सम्मुख जी रहे हैं, तो यह पवित्रता की हमारी इच्छा के अनुरूप होगा (भजन संहिता 51: 6 देखें)। इसलिए महत्वपूर्ण प्रश्न यह नहीं है, "मेरे साथी विश्वासियों ने मेरी पवित्रता के बारे में क्या सोचा है?" बल्कि, "मेरे अचेतन हिस्से को क्या संदेश मिला है?" आपके सपने आमतौर पर आपको जवाब देंगे। जो लोग सम्पूर्ण पवित्रता की खोज नहीं कर रहे हैं वे कभी नहीं समझ सकते हैं कि हम यहां क्या कह रहे हैं। जो लोग अपने गंदे सपनों को हल्के में लेते हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता है कि ये उनके सचेत विचार-जीवन में विश्वासघात का सूचक हैं। ऐसे विश्वासी इस बात पर विचार करेंगे कि हम जो कह रहे हैं वह अतिश्योक्ति और अवास्तविक है, क्योंकि आत्मिक विषय स्वाभाविक मन के लिए मूर्खता है।

हालाँकि शुभ संदेश यह है कि आपका विचार-जीवन कितना भी गन्दा क्यों न हो, यह पूरी तरह से शुद्ध हो सकता है, यदि आप यीशु के चलने के तरीके के बारे में जानने के लिए इच्छुक हैं। यह बदले में, आपके सपनों को भी शुद्ध करेगा - हालांकि इसमें समय लगेगा; लिया गया समय इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने अपने बिना उद्धार के दिनों में शरीर को कितना पोषित किया। लेकिन सबसे मजबूत सांप को भी उग्र विश्वासयोग्यता के जरिये मौत के घाट उतार दिया जा सकता है।

यीशु ने केवल उन लोगों को आमंत्रित किया जो थके हुए और भारी बोझ से दबे हुए थे। यह केवल तब होता है जब आप अपने ही पराजित जीवन से थक जाते हैं, जिससे आप विजय के लिए उसके पास आने के योग्य होते हैं। संसार ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जो दूसरों से और दूसरों के उनके प्रति व्यवहार से थके हुए हैं। कुछ मसीही समझौता और सांसारिकता से थक गए हैं जो वे अपने संप्रदायों में देखते हैं। लेकिन ये विजय प्राप्ति की योग्यता नहीं हैं। केवल वे ही जो स्वयं (आत्म) से थके हुए हैं उन्हें प्रभु ने आने के लिए आमंत्रित किया है। केवल वे ही जो विजय के प्यासे हैं, उसके पास आ सकते हैं (मत्ती 11:28; यूहन्ना 7:37)। जो लोग अपने विचार-जीवन में हर बार फिसलने से रोते हैं और जो अपने गुप्त पापों के लिए शोक करते हैं, वे परमेश्वर के सत्य को अति शीघ्र समझने पाएंगे। जबकि अन्य लोग इस सिद्धांत को विधर्मी मानते हैं - क्योंकि आत्मिक सत्य को प्राकृतिक समझ से नहीं समझा जाता है, बल्कि परमेश्वर अपने गुप्त पापों पर शोक करने वाले हृदय को यह प्रकाशित करता है। परमेश्‍वर अपने रहस्यों (गुप्त बातों) को (जिसमें एक ईश्वरीय जीवन का रहस्य भी शामिल है) केवल जो उसका भय मानते है (भजन 25:14) उन ही पर प्रगट करता है। यीशु ने, उन्हें जो अपने पराजित जीवन से थक चुके थे , ‘विश्राम” की प्रतिज्ञा की थी, वह विश्राम पाप पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त करने की हैं।