द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   घर कलीसिया चेले
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आत्मिक घमण्ड एक ऐसा बड़ा खतरा है जिसका सामना हममें से हरेक को हर समय करना पड़ता है और ख़ास तौर पर उस समय जब प्रभु हमारे काम को आशिष देता है। तब हमारे लिए यह कल्पना कर लेना आसान हो जाता है कि "हम कुछ बन गए हैं", जबकि हम हमेशा ही "कुछ भी नहीं" ही रहते हैं। तब परमेश्वर स्वयं हमारा विरोध करेगा और हमारे खिलाफ लड़ेगा - क्योंकि वह व्यक्ति चाहे कोई भी हो, परमेश्वर सभी घमण्डी लोगों का विरोध करता है। जब हम दान-वरदान पाए हुए होते हैं, या जब हमारे व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, या जब हमारी कलीसिया उन्नत हो रही होती है, या जब हम भौतिक रूप में सम्पन्न् हो जाते हैं, तब हमारे लिए घमण्ड से भर जाना बहुत आसान हो जाता है। हमें बाकी किसी भी पाप से ज़्यादा, हमारे आत्मिक घमण्ड और स्वार्थ पर ज्योति (समझ) पाने की ज़रूरत होती है। इन क्षेत्रों में हमें अपने आपको धोखा देना बहुत आसान होता है। हम यह कल्पना कर सकते हैं कि हम बहुत नम्र व नि:स्वार्थी हैं जबकि असल में हम बहुत घमण्डी और स्व:केन्द्रित हो सकते हैं। शैतान बहुत बड़ा धोखेबाज़ है।

आत्मिक घमण्ड के ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनके द्वारा आप अपने आपको जाँच कर परख सकते हैं कि आपकी दशा असल में क्या है: बुरा मानना, क्रोधित हो जाना, लैंगिक अशुद्धता के विचार, अपनी गलती न मानना, क्षमा-याचना में देर करना, कलीसिया में अपने साथी - विश्वासियों के साथ संगति को पुनःस्थापित करने में देर करना, आदि।

एक घमण्डी अगुवा उसकी कलीसिया को एक तानाशाह की तरह और एक कम्पनी के प्रमुख अधिकारी की तरह ही चलाएगा। ऐसा पुरुष कभी मसीह की देह तैयार नहीं कर सकता।

आत्मिक घमण्ड देह और मुख में से आने वाली दुर्गन्ध की तरह होता है। हम स्वयं उसे नहीं सूंघ पाते लेकिन दूसरे उसे सूंघ सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब एक अगुवा अपनी सेवकाई की बड़ाई करता है, तो उस समय उसे यह अहसास नहीं होता कि उसके अन्दर से आत्मिक घमण्ड की दुर्गंध आ रही है । लेकिन एक ईश्वरीय व्यक्ति तुरन्त ही उसके आत्मिक घमण्ड को महसूस कर लेगा।

एक प्राचीन का घमंड से भरा मनोभाव उसकी कलीसिया को एक बेबीलोनी कलीसिया बना देगा - वही मनोभाव जो हमने नबूकदनेस्सर में देखा था (दानिय्येल 4:30)। परमेश्वर ने उसे तुरन्त ही अस्वीकार करते हुए एक दीन अवस्था में पहुँचा दिया था।

आत्मिक घमण्ड अपने से उम्र में बड़े भाइयों के प्रति, और जिनकी साक्षी स्वयं परमेश्वर ने दी है उनके प्रति आदर-सम्मान की कमी पैदा करता है। ऐसा प्राचीन अपनी कलीसिया में दूसरों से यह अपेक्षा करेगा कि वे उसके अधीन हों, लेकिन वह स्वयं ऐसे किसी अधिकार के अधीन होने के लिए तैयार नहीं होगा जो परमेश्वर ने उसके ऊपर नियुक्त किया है। आदर-सम्मान की यह कमी अंत के इन दिनों में मसीहियों में बढ़ती जाएगी। आज हम अपने आसपास बहुत से बच्चों और युवाओं में इस आदर-सम्मान की कमी को देखते हैं -जिस तरह से वे अपने से बड़े, ईश्वरीय भाइयों के साथ बातचीत करते हैं।

दियुत्रिफेस (3 यूहन्ना 1: 9), और यूहन्ना ने विश्वास से भटक जाने वाले जिन पाँच प्राचीनों को लिखा था (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2 और 3), वे हम सब के लिए एक चेतावनी हैं। जैसा कि हमने पहले विचार किया था, अगर उन पाँच प्राचीनों ने स्वयं अपना न्याय किया होता, तो परमेश्वर ने उनकी नाकामी को स्वयं उन्हें ही दिखाया होता। परमेश्वर को प्रेरित यूहन्ना के द्वारा उनकी कमियाँ दिखाने की ज़रूरत न पड़ती।

जब हम स्वयं अपना न्याय करना छोड़ देते हैं, तब हम ऐसे प्रचार करने लगते हैं मानो हम एक सबसे माहिर हैं। और तब प्रभु हमारा समर्थन नहीं करेगा। इसलिए, हम प्रतिदिन अपना न्याय करें, और हर समय स्वयं अपना और अपनी सेवकाई के मूल्य को छोटा करके ही आँकें। हम अपने आपको लगातार यह देखने के लिए जाँचते रहें कि क्या परमेश्वर हमारे जीवन और कामों की साक्षी दे रहा है या नहीं (गलातियों 6:4 ) अगर नहीं, तो एक गंभीर रूप में कहीं कुछ गलत है।

मैं सभी अगुवों को यह तीन-स्तरीय उपदेश देना चाहूँगा:
1. हमेशा अपने मुख को धूल में रखते हुए, सिर्फ परमेश्वर की आराधना करने वाले हों।
2. हमेशा यह याद रखें कि आप सिर्फ एक साधारण भाई हैं।
3. हमेशा प्रभु के उस प्रेम पर मनन करें जो उसने आपसे किया है; यह कल्पना करने वाले न बन जाएँ कि आप उससे बहुत प्रेम करते हैं।

'मन में नम्र व दीन" होने का अर्थ है कि आप "स्वयं का मूल्याँकन एक बिलकुल मामूली व्यक्ति के रूप में करें" - ( मत्ती 5:3 - ऐम्प्लिफाइड बाइबल) और लगातार एक व्यक्तिगत, आत्मिक ज़रूरत के मनोभाव में रहें ।