द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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जीवन आपके लिए दयनीय हो जाएगा, यदि आप लगातार यह महसूस करते रहेंगे कि आप इतने अच्छे नहीं हैं कि परमेश्वर द्वारा स्वीकार किए जा सके। आप कभी ऐसा शोक न करें, परंतु परमेश्वर को धन्यवाद दे कि उसने मसीह में आपको वैसा ही स्वीकार कर लिया है जैसे आप है।

हर समय परमेश्वर का धन्यवाद और स्तुति करें जब कभी आप उन बातों के बारे में सोचे जिनमें से परमेश्वर आपको लेकर गया है। शिकायत और कुडकुड़ाहाट के सारे विचारों को गंदे और कामुक विचारों के समान ही माने – ऐसे विचारों से पूरी तरह बचकर रहना है।

कोई भी बात जो बाहर से आती है आपको दूषित नहीं कर सकती यदि आपके शरीर की भीतरी प्रणाली सही तरह से काम कर रही है (मरकुस 7:18-23)। आपको बहुत सी बाहरी बातों की तरफ़ अंधे और बहरे हो जाने की आदत डालनी होगी (यशायाह 42:19,20)। जो कुछ भी आप देखते हैं और सुनते हैं, पहले आपके मन में उसकी छानबीन कर ले। उनमें से बहुत सी बातों को आपको अपने मन में से तुरंत बाहर निकाल देना होगा – जैसे वे बुराई जो दूसरों ने आपके साथ की या भविष्य के विषय में चिंता इत्यादि । सिर्फ़ तभी आप सभी हालातों में विश्राम में रह सकेंगे और प्रभु की स्तुति करते रहेंगे।

यीशु हमें स्तुति और प्रसन्नता की आत्मा देने के लिए आया (यशायाह 61:1-3)। कलवरी पर चढ़ने से पहले उसने स्वयं स्तुति का एक गीत गाया (मत्ती 26:30)। और अब वह कलीसिया की स्तुति में अगुवाई करता है (इब्रानियों 2:12)

जब हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं, तब हम अपने हृदय में परमेश्वर के लिए एक सिंहासन तैयार करते हैं (भजन सहिंता 22:3)। हमारे विश्वास का प्रमाण यह है कि हम उसकी स्तुति गाते हैं (भजन सहिंता 106:12)। इस तरह आप अपने इस विश्वास को प्रमाणित करते हैं कि परमेश्वर सारी सृष्टि के सिंहासन पर विराजमान है और आपके जीवन में जो कुछ होता है वह उसकी ही अनुमति से होता है। (“वह हरेक उस बात को जानता है जो मेरे साथ हो रही है” अय्यूब 23:10 लिविंग अनुवाद)

बाइबल में परमेश्वर के सर्व-शक्तिशाली होने का सब से परिपूर्ण कथन नबूक़दनेस्सर द्वारा तब बोला गया था जब परमेश्वर ने उसे अनुशासित किया था। उसने कहा “परमेश्वर पृथ्वी पर रहने वालों को देखता है कि वे कुछ भी नहीं है। स्वर्ग के दूत और पृथ्वी के मनुष्य सब उसके नियंत्रण में है। कोई भी उसकी इच्छा का विरोध नहीं कर सकता और जो कुछ वह करता है उस पर सवाल नहीं उठा सकता (दानिय्येल 4:35 – गुड न्यूज़ बाइबल)। यह उसने तब कहा जब वह अपने आपे में आया (दानिय्येल 4:36)। और यही विश्वास हर एक समझदार विश्वासी का भी होगा। परमेश्वर हमसे ऐसा ही विश्वास चाहता है। ऐसे विश्वासी हर समय और हरेक हालात में परमेश्वर की स्तुति करते रहेंगे।

जब शास्त्रियों और शासकों ने यह शिकायत की कि मंदिर में बच्चे चिल्ला-चिल्लाकर स्तुति करने द्वारा शोर मचा रहे है, तब यीशु ने कहा कि असल में सिर्फ़ बच्चे ही एक सिद्ध रूप में स्तुति का बलिदान चढ़ा सकते हैं (मत्ती 21:16, जो भजन 8:2 का उल्लेख है – “तूने छोटे बच्चों को सिद्ध रूप में अपनी स्तुति करना सिखाया है” – लिविंग अनुवाद)। इससे हम यह सीखते हैं कि हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द नहीं बल्कि हृदय की नम्रता और शुद्धता (जो सभी बच्चों में होती है) हमारी स्तुति को परमेश्वर के सम्मुख ग्रहण-योग्य बनाती हैं।

और बच्चे कभी कुडकुड़ाते या शिकायत नहीं करते है – और यह एक और ऐसी बात है जो हमारी स्तुति को परमेश्वर के सम्मुख ग्रहण-योग्य बनाती है। जब सुबह, दोपहर और रात को या सप्ताह के सातों दिन, और वर्ष के हर एक सप्ताह में हमारे जीवनों में से कुडकुड़ाहट और शिकायत की गंध तक नहीं आती, तब हमारी स्तुति रविवार की सुबह होने वाली एक धार्मिक विधि नहीं बल्कि हमारे प्रतिदिन के जीवनों का हिस्सा बन जाती है। और तब परमेश्वर ऐसी स्तुति से आनंदित होता है, चाहे हम बेसुरे होकर भी क्यों न गाएँ!