द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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भजन 50 - भजन 50:23 में हम एक अद्भुत प्रतिज्ञा पाते हैं, उन लोगों के लिए जो अपनी ज़ुबान को लोगों की बुराई करने की बजाए प्रभु की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल करते हैं: "जो मेरी स्तुति करता है, वह मेरी महिमा करता है और मेरे लिए रास्ता बनाता है कि मैं उसे अपने उद्धार का दर्शन करा सकूँ" (अक्षरशः अनुवाद)। जब हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं, तब हम सर्वोच्च परमेश्वर के रूप में उसमें अपना विश्वास व्यक्त करते हैं और विश्वास की यह अभिव्यक्ति परमेश्वर को सक्षम करती है कि वह हमें अपना छुटकारा दिखाए।

भजन 65:1 (के.जे.वी. अनुवाद) कहता है: "हे परमेश्वर सिय्योन (कलीसिया) में स्तुति तेरी प्रतीक्षा कर रही है"। हमारी कलीसियाएं ऐसी जगह होनी चाहिए जहाँ स्तुति हमेशा परमेश्वर का इंतजार करती हो। जब परमेश्वर हमारे बीच में आए तो वह स्तुति को उसका इंतजार करता पाए। परमेश्वर ऐसे लोगों को अपने पास खींच लेता है। भजन 65:4 कहता है, "क्या ही धन्य है वह जिसे तूने चुना है और अपने पास बुलाया है"। फिर यह भजन परमेश्वर की उस भलाई की बात करता है जो उसने पृथ्वी के लिए की है।

भजन 100 प्रभु की स्तुति करने और उसकी सेवा करने का आमंत्रण है। हमें "आनंद से प्रभु की सेवा" करनी है (भजन 100:2)। मैं ऐसे लोगों से मिला हूँ जो यह कहते हैं कि वे प्रभु की सेवा कर रहे हैं, लेकिन वे अक्सर किसी न किसी बात के विषय में शिकायत करते रहते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगो की सेवा नहीं चाहता जो उसकी सेवा आनंद से नहीं करते।

भजन 106 में इस्राएल के लिए परमेश्वर की भलाई का इतिहास का वर्णन जारी रहता है। भजन 106 :11,12 में हम पढ़ते हैं, "जब जल ने उनके शत्रुओं को ढाँप लिया, तब उन्होंने उसके वचनों पर विश्वास किया, और उन्होंने उसकी स्तुति के गीत गाए। हम यहाँ दो बातें देखते हैं। पहली बात, स्तुति विश्वास का प्रमाण होती है। जो ह्रदय में भरा होता है, वही मुख से बाहर आता है। मुख ह्रदय के बहाव का निकास है। यदि ह्रदय में विश्वास होता है, तो उसमें से स्तुति उमड़ आती है। जब प्रेरित पवित्र आत्मा से भर गए तो वे परमेश्वर की स्तुति करने लगे (प्रेरितों के काम 2: 11,47)। अगर हम स्तुति नहीं करते, तो इससे यह साबित होता है कि हममें विश्वास नहीं है। दूसरी बात, पुरानी वाचा में वे विश्वास से नहीं, परंतु अपनी दृष्टि से चलते थे। उन्होंने सिर्फ तब परमेश्वर की स्तुति की जब उन्होंने अपने शत्रुओं को डूबते हुए देखा। आज हम परमेश्वर की स्तुति हमारे शत्रुओं के पराजित होने से पहले कर सकते हैं। यह दृष्टि से देखकर नहीं, परंतु विश्वास से चलना है।

भजन 149 हमें हर समय प्रभु की स्तुति करने के लिए आमंत्रित करता है। "वह पीड़ितों को उद्धार से शोभायमान करेगा" (भजन 149:4)। अगर आप चाहते हैं कि प्रभु आपको शोभायमान करे, तो आपको नम्र होना पड़ेगा। हम से यह कहा गया है कि हम अपने बिछौनों पर भी आनंद से गाएं और हमारे कंठों में परमेश्वर की जयजयकार हो, और हाथ में परमेश्वर का वचन हो, ताकि हम शैतान और उसके दुष्टआत्माओं की शक्ति और गतिविधियों को बाँध सकें (भजन 149:5-8)। परमेश्वर की स्तुति और शैतान की शक्ति को बाँधना हमेशा साथ-साथ चलता है।

भजन 150: इस भजन में हम 13 बार “स्तुति” शब्द पढ़ते हैं, और इसका समापन - “सब प्राणी (जिनमें श्वास है) परमेश्वर की स्तुति करें” (भजन 150:6) के साथ होता है। सिर्फ एक ही तरह के व्यक्ति को परमेश्वर की स्तुति करने की जरूरत नहीं है – वह जिसमें श्वास नहीं है और जो मृतक है। बाकी सबको हर समय परमेश्वर की स्तुति करते रहना चाहिए। हमारे जीवनों में ऐसा ही हो। आमीन।