WFTW Body: 

“क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ।” (2 कुरिन्थियों 12:10)

अब्राहम ने अपनी शारीरिक क्षमता के द्वारा इश्माएल को जन्म दिया लेकिन परमेश्वर ने इश्माएल को स्वीकार नहीं किया और अब्राहम से उसे दूर भेजने को कहा। (उत्पत्ति 17:18-21; 21:10-14)

परमेश्वर पर निर्भर हुए बिना मानवीय क्षमताओं के द्वारा किसी अच्छे इरादे से किए गए कार्य को मसीह के न्याय-सिंहासन के सम्मुख प्रस्तुत करने पर भी परमेश्वर उसे अस्वीकार्य कर देगा अर्थात केवल परमेश्वर द्वारा जो सृजित है वही बचेगा बाकि सब (लकड़ी घास-फूस) जलकर नष्ट हो जाएगा।

जब अब्राहम नपुंसकता की स्थिति में आ गया अर्थात बच्चे पैदा करने की उसकी शारीरिक क्षमता समाप्त हो गई तब ईश्वरीय शक्ति के माध्यम से इसहाक का जन्म हुआ और यह पुत्र परमेश्वर को स्वीकार्य था। परमेश्वर के दृष्टिकोण में, इसहाक एक हजार इश्माएल से अधिक मूल्यवान है। एक ग्राम सोना, एक किलोग्राम लकड़ी की अपेक्षा अधिक मूल्यवान है – इसके बाद आग इन दोनों का परीक्षण करने में समर्थ है। पवित्र आत्मा की शक्ति से किया गया थोड़ा सा कार्य हमारी अपनी क्षमता से किए गए बहुत से कार्यों से कहीं अधिक मूल्यवान है।

नए जन्म से पहले और बाद में हमारे सब अच्छे कार्य और परमेश्वर की सेवा के लिए स्वयं के प्रयास परमेश्वर की दृष्टि में हमेशा मैले-चीथड़ों के समान ही रहेंगे लेकिन वह धार्मिकता जो विश्वास से उत्पन्न होती है और वह सेवा जो पवित्र आत्मा की अधीनता में की जाती है – वही मेम्ने के विवाह के दिन हमारे विवाह का पवित्र वस्त्र ठहरेगा। (प्रकाशितवाक्य 19:8) आख़िरकार मैले-चिथड़े वस्त्र या सुंदर विवाह के वस्त्र के बीच क्या अंतर है? यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा जीवन अपनी आत्मशक्ति पर आश्रित है या परमेश्वर की सामर्थ पर।

यीशु मसीह स्वयं भी अपनी सेवकाई के लिए पवित्र आत्मा की शक्ति पर निर्भर थे। पवित्र आत्मा से अभिषिक्त हुए बिना उन्होंने प्रचार की सेवकाई में जाने का साहस नहीं किया। तीस वर्षों तक वह पहले से ही आत्मा की सामर्थ के माध्यम से पूर्ण पवित्रता में रहे, ताकि पिता यह गवाही दे सके कि “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ।” (मत्ती 3:17) बावजूद इसके उसे सेवा के लिए पवित्र आत्मा द्वारा अभिषिक्त होने की आवश्यकता थी इसलिए उसने अभिषिक्त होने के लिए स्वयं प्रार्थना की, और वह अभिषिक्त हो गया।” (लूका 3:21) और क्योंकि वह धर्म से अधिक प्रेम करता था और पाप से घृणा करता था, किसी भी जीवित मनुष्य से अधिक, इसलिए उसका किसी भी अन्य मनुष्य की तुलना में अधिक भरपुरी से अभिषेक किया गया। (इब्रानियों 1:9) परिणामस्वरूप, उसकी सेवकाई के माध्यम से लोगों को शैतान की कैद से छुड़ाया गया। यह अभिषेक का मुख्य उद्देश्य और प्राथमिक अभिव्यक्ति थी7 लूका 4:18 और प्रेरितों 10:38 देखें

परमेश्वर का कार्य मानवीय प्रतिभाओं और क्षमताओं के माध्यम से नहीं किया जाता है। जो पुरुष स्वाभाविक रूप से अत्यधिक प्रतिभाशाली होते हैं, जब परिवर्तित होते हैं, तो अक्सर सोचते हैं कि वे अब परमेश्वर के लिए अपनी बौद्धिक और भावनात्मक शक्तियों का उपयोग दूसरों को प्रभावित करने के लिए कर सकते हैं।

कई मसीही अपनी वाक्पटुता, तर्कशक्ति और कथन की स्पष्टता को भी पवित्र आत्मा की शक्ति समझने की भूल करते हैं जबकि इनका संबंध केवल प्राण की शक्तियों से हैं इस प्रकार की कोई भी आत्मनिर्भरता परमेश्वर की सेवा में अवरोध उत्पन्न करेगी। मनुष्य की प्राण शक्ति से किया गया कार्य कभी भी स्थायी नहीं हो सकता। यदि यह वर्तमान समय में नष्ट न भी हुआ तो मसीह के न्याय आसन के सामने नष्ट हो जाएगा। ।

यीशु लोगों को परमेश्वर की ओर लाने के लिए वाक्पटुता या भावना की शक्ति पर निर्भर नहीं था। वह जानता था कि ऐसी प्राण-शक्ति के माध्यम से किया गया कोई भी कार्य केवल लोगों के प्राण तक ही पहुंचेगा, और कभी भी उन्हें आत्मिक रूप से मदद नहीं करेगा। इसी कारण से, उसने लोगों को परमेश्वर की ओर आकर्षित करने के लिए किसी भी प्रकार के संगीतमय मनोरंजन का उपयोग नहीं किया।

यीशु ने अपने लोगों की भावनाओं के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ या कार्य करके उन्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के लिए कभी भी उत्साहित नहीं किया। वास्तव में, यीशु ने इनमें से किसी भी प्रकार का और अन्य भौतिक तरीकों का उपयोग नहीं किया जो आज के तमाम ईसाई प्रचारकों के लिए बड़ी ही आम बात है। यीशु ने लोगों को प्रभावित करने के लिए किसी भी भावनात्मक और सांसारिक उत्साह का इस्तेमाल नहीं किया। ये दरअसल राजनेता और विक्रेता के तरीके हैं और यीशु इन दोनों में से कोई भी नहीं था।
यहोवा के सेवक के रूप में, यीशु अपने सभी कार्यों के लिए पूर्ण रूप से पवित्र आत्मा पर ही निर्भर था। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन्होंने उसका अनुसरण किया वे स्वयं भी परमेश्वर के सानिद्ध्य में जीवन की गहराई को समझ सके।

यीशु ने दूसरों को अपने सोचने के तरीके में हेरफेर करने के लिए प्राण -शक्ति का उपयोग नहीं किया। उसने कभी भी खुद को दूसरों पर नहीं थोपा। उसने सदैव दूसरों को उसे अस्वीकार करने की स्वतंत्रता दी, यदि वे चाहें तो। बौद्धिक मसीही प्रचारक अपने मजबूत व्यक्तित्व के कारण अपने समूह और अपने सहकर्मियों पर हावी होते हैं। लोग ऐसे प्रचारक के अधीन होने से डरते हैं, उनकी आराधना करते हैं और उनकी हर बात मानते हैं।

ऐसे अगुवे के चारों ओर भीड़ उमड़ सकती है, और वे सभी एकजुट भी हो सकते हैं, लेकिन यह केवल एक अगुवे के प्रति समर्पण की एकता को दर्शाता है। ऐसे अगुवे यह सोचकर स्वयं को धोखा दे सकते हैं कि उनके पास जो कुछ है वह पवित्र आत्मा की शक्ति है, क्योंकि वे प्राण और आत्मा के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं हैं। उनके अनुयायी भी इसी प्रकार ठगे जाते हैं लेकिन न्याय-आसन की स्पष्ट ज्योति से पता चलेगा कि यह सब मानवीय प्राण-शक्ति थी और इसने परमेश्वर के कार्य में अवरोध उत्पन्न किया। यीशु स्वयं इस प्रकार के अगुवे नहीं थे और इसलिए किसी मसीही को भी ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें अपनी आत्म-शक्ति का उपयोग करने से बचना चाहिए, क्योंकि यह मनुष्य के लिए परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन है, और जिससे उनकी सेवा में रूकावट हो सकती है।

एक सच्चा आत्मिक कार्य कभी भी मानवीय प्राणशक्ति से नहीं, बल्कि केवल पवित्र आत्मा की सामर्थ द्वारा ही किया जा सकता है। यीशु यह जानता था; और इसलिए उसने लगातार अपनी प्राण की शक्ति को मार डाला। इस प्रकार यीशु बहुत ही कम समय में उन लोगों में गहरा और स्थायी कार्य करने में सक्षम हो गया जिन्होंने उसका अनुसरण किया।