द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
WFTW Body: 

नीतिवचन 8: 1, 27 में, दूल्हे को 'बुद्धि' कहा गया है। और फिर अगले अध्याय में दुल्हन को भी 'बुद्धि' (नीतिवचन 9:1) कहा गया है, क्योंकि वह हर तरह से अपने दूल्हे के साथ एक है और उसके माथे पर उसका नाम ('बुद्धि') लिखा हुआ है – एक जयवंत के समान जैसे उसका दूल्हा था (प्रकाशितवाक्य 3:12, 21 और 14:1)। नीतिवचन अध्याय 9 में हम देखते है कि एक दुल्हन और वेश्या स्पष्ट रूप से एक दूसरे के विपरीत है। इस अध्याय के पहले 12 वचनो में, दुल्हन सभी मूर्खों को अपने मूर्खतापूर्ण रास्तों से लौटने और अपनी पापी संगति को (पद 6) छोड़ने और परमेश्वर के भय को जो ज्ञान की शुरुआत है, उसे सीखने के लिए आमंत्रित करती है (पद 10)। इस अध्याय के आखिरी 6 वचनो में हम वेश्या की पुकार को पढ़ते हैं। कई लोग वेश्या की पुकार को सुनते है और आत्मिक मृत्यु में नाश हो जाते हैं (पद 18)। हम यहाँ पढ़ते हैं कि दुल्हन (बुद्धि) सात खंभो पर अपना घर बनाती है। ये सात खंभे हमारे लिए याक़ूब 3:17 में लिखे हुए हैं और इन खंभो पर ही सच्ची कलीसिया का निर्माण होता है। इन विशेषताओं से हम कहीं भी मसीह की दुल्हन की पहचान कर सकते हैं:

1. शुद्धता: सच्ची कलीसिया में पहला और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ शुद्धता है। यह केवल बाहरी शुद्धता का खोखला स्तंभ नहीं है। नहीं। यह पूरी तरह से ठोस है। यह हृदय की शुद्धता है और यह हृदय की गहराई में परमेश्वर के भय के बीज से बढ़ता है। चतुर दिमाग से नहीं बल्कि शुद्ध हृदय से मसीह की सच्ची कलीसिया बनती है। परमेश्वर और उसके तरीको के आत्मिक प्रकाशन के बिना हम कलीसिया का निर्माण नहीं कर सकते। और केवल वे ही है जो हृदय में शुद्ध है उन्हें ही उनके हृदय में परमेश्वर को देखने की अनुमति प्राप्त होगी (मत्ती 5: 8)।

2. शांतिपूर्णता: धार्मिकता और शांति हमेशा एक साथ चलते है। वे जुड़वां हैं। परमेश्वर का राज्य धार्मिकता और शांति है (रोमियों 14:17)। सच्चा ज्ञान कभी तर्कवादी या झगड़ालू नहीं होता है। यह कलह नहीं करता है। जहां तक संभव हो हर किसी के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखता है। ऐसे व्यक्ति के साथ झगड़ा करना असंभव है जो ईश्वरीय ज्ञान से भरा हुआ है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति एक शांतिप्रिय व्यक्ति है। वह दृढ़ होगा और समझौता करनेवालो द्वारा घृणा किया जाएगा। लेकिन वह हमेशा शांतिपूर्ण रहता है। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि जब वे सुसमाचार का प्रचार करने के लिए यात्रा करते हैं तो उन्हें केवल "शांति के पुरुष" (लुका 10:5-7) के घर में ही रहना चाहिए। अगर हम परमेश्वर के घर का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें शांति के पुरुष होना चाहिए।

3. विचारशील: मसीह की दुल्हन हमेशा दूसरों के लिए उचित, सौम्य, धीरजवंत, सहनशील और विनम्र है। वह कभी भी कठोर या क्रूर नहीं लेकिन हमेशा दूसरों की भावनाओं के बारे में विचार करती है। जब कलीसिया को इस खंभे से संभाला जाता है तब एक दूसरे को सहन करना आसान हो जाता है - भले ही कुछ लोग अपनी समझ में धीमे या उनके व्यवहार में क्रूर हो। हम यह महसूस करना शुरू कर देते हैं कि समस्या हमारे भाई या बहन की क्रूरता नहीं बल्कि हमारे भीतर रहने वाली अधीरता है और इसलिए हम सही दुश्मन से लड़ते हैं अर्थात हमारे भाइयों और बहनों से नहीं परंतु हमारे स्व:जीवन से।

4. समर्पण करने की इच्छा: जो डांट और सुधार ग्रहण नहीं कर सकता या जो महसूस करता है कि वह उस चरण से परे चला गया है वह सचमुच मूर्ख है, भले ही वह एक प्राचीन या बुजुर्ग व्यक्ति हो (सभोपदेशक 4:13)। भारत में विशेष रूप से कई लोगो की अन्यजाति लोगो के समान यह विचारधारणा है कि "बुजुर्ग लोग बुद्धिमान होते हैं"। यह सांसारिक मामलों में सच हो सकता है लेकिन निश्चित रूप से आत्मिक मामलों में नहीं। यीशु ने आराधनालयों में से किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति को अपना प्रेरित होने के लिए नहीं चुना था। उसने युवा पुरुषों को चुना। कलीसिया में वृद्ध लोगों को अक्सर एक छोटे भाई से, जो कलीसिया में एक प्राचीन और उनसे अधिक ईश्वरीय है, सुधार प्राप्त करने में मुश्किल होती है। लेकिन ऐसा उनके घमंड की वजह से है। जो लोग सुधार प्राप्त करने के लिए इच्छुक होते है वे बुद्धिमान बन जाते हैं (नीतिवचन 13:10)। वास्तव में एक महिमामय कलीसिया तब बनती है जब कलीसिया में भाई और बहने डांट और सुधार प्राप्त करने के लिए उत्सुक होते है। बुद्धिमान व्यक्ति उन लोगों से प्यार करता है जो उसे ईमानदारी से सुधारते हैं और उत्सुकतापूर्वक उनकी संगति की तलाश करता है। 'एक दूसरे के अधीन रहो' (इफिसियों 5:21) इस स्तंभ पर लिखे गए शब्द हैं।

5. दया की पूर्णता और उसके अच्छे फल: मसीह की दुल्हन कभी कभी नहीं परंतु हमेशा दया से भरी रहती है। उसे अपने हृदय से स्वतंत्रता और आनंद के साथ किसी को भी क्षमा करने मे कोई समस्या नहीं होती। वह दूसरों का न्याय या उन पर दोष नहीं लगाती परंतु अपने दूल्हे के समान उन पर दया दिखाती है। यह दया सिर्फ एक मानसिक रवैया नहीं है बल्कि अच्छे फलो में अभिव्यक्ति पाती है जो उसके कार्यों के द्वारा सामने लाई जाती है। वह जितना हो सके हर समय सभी लोगों के साथ सभी रीति से भला करती है।

6. दृढ़ता: एक भाई जिसके पास ईश्वरीय ज्ञान है वह सभी कुटिलता से मुक्त होगा। वह पूर्ण हृदय से समर्पित, सीधी बात करने वाला, निर्मल आँख रखनेवाला, संदेह और हिचकिचाहट से मुक्त होगा। वह दुचित्ता नहीं होगा बल्कि परमेश्वर पर विश्वास में दृढ़ होगा और वह अपनी कमजोरियों को नहीं बल्कि परमेश्वर के वायदो को देखेगा। ऐसे भाई को पता है कि सभी सचेत पापों पर विजय यहां और अब संभव है। वह एक भरोसेमंद व्यक्ति है जिस पर हमेशा अपनी कही गई बातों पर कायम रहने के लिए भरोसा किया जा सकता है। वह दृढ़ और अटल है। आप उसे किसी भी मामले में उसके सिद्धांतों में समझौता करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते है। वह एक छड़ी के समान सीधा और खरा है।

7. कपट से आज़ादी: दुल्हन में बाहरी रूप से, जो दूसरे देख सकते है, की तुलना में भीतरी रूप में अधिक आत्मिक बातें है। उसका गुप्त जीवन उसके बाहरी जीवन के बारे में दूसरों की राय से बेहतर है। यह 'आत्मिक व्यभिचारिनी' या 'वेश्या' से बिल्कुल विपरीत है, जिसकी तथाकथित आत्मिकता केवल मनुष्यों से आदर प्राप्त करने के लिए होती है। उसके पास जो है वो वास्तव में एक 'धर्मनिष्ठा' है, असली आत्मिकता नहीं। दुल्हन अपने बाहरी शब्दों और कार्यों से कहीं ज्यादा अपने भीतरी विचार, उद्देश्यों और दृष्टिकोण को देखती है। वह अपने भीतरी जीवन के लिए परमेश्वर की मंजूरी के लिए चाहत रखती है और अपने बाहरी जीवन के बारे में मनुष्यों की मंजूरी की कुछ भी परवाह नहीं करती है। इस परीक्षा के द्वारा हम में से प्रत्येक व्यक्ति यह जान सकता है कि हम दुल्हन के भाग है या वेश्या के।

मसीह की दुल्हन के हृदय में बुद्धि का बीज बोया गया है और इसलिए साल दर साल उसमे यह सात विशेषताएं बढ़ती जाएंगी। यधपी वह सिद्धता से अभी दूर है, परंतु वह सिद्धता की ओर बढ़ती जाती है।