द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए
प्रभु ने मूसा से बातें करते हुए कहा, "तुम लोगो को इस पहाड़ के बाहर बाहर चलते हुए बहुत दिन बीत गए है” (व्यवस्थाविवरण 2: 2,3)। यदि हम आत्मिक रूप से हमेशा एक ही स्तर पर हैं, तो हम घेरे में गोल गोल घूम रहे हैं। हमें पाप पर जयवंत होने में प्रगति करनी चाहिए और उन पुराने पापों से लगातार पराजित नहीं होना चाहिए जिनसे हम कई सालों पहले हारते थे। हमें क्रोध और स्त्रियों के पीछे आँखों से लालसा नहीं करनी चाहिए, जैसा हम 10 साल पहले करते थे। यदि हम अभी भी इन क्षेत्रों में पराजित हैं, तो हम गोल गोल ही घूम रहे हैं। प्रभु अब हमें आगे बढ़ने के लिए बुला रहा हैं। क्या आपने कल अपना क्रूस उठाया था? शायद आपने उठाया हो। लेकिन वह केवल बीते कल की बुराई पर जय पाने के लिए पर्याप्त था (मत्ती 6:34)। आज एक और दिन है। और आपको एक बलिदान के रूप में अपने शरीर और अपनी आत्म-इच्छा को समर्पित करना होगा। आज आपको मरना होगा अपनी वासनाओं, क्रोध, घमंड, धन के प्रेम, मनुष्य के सम्मान के प्रति प्रेम, कडुवाहट इत्यादि के लिए- ये वासनाएं हमारे शरीर में मौजूद हैं और हमारे साथ रहेंगी जब तक हम शरीर में जीवित हैं। इसलिए हमें पार्थिव जीवन के अंत तक "प्रतिदिन क्रूस" की आवश्यकता है। क्या आपके जीवन में प्रतिदिन एक बलिदान है? यदि नहीं, तो अवश्य ही मसीही विरोधी की आत्मा ने आपको धोका दिया है।

विश्वास करें कि परमेश्वर सभी बातों को क्रम में ला रहा है
अय्यूब जानता था कि उसके पास जो कुछ भी था - बच्चे, संपत्ति और यहां तक की स्वास्थ्य भी - सभी उसके लिए परमेश्वर के मुफ्त उपहार थे और परमेश्वर को यह अधिकार था कि यदि वह चाहे तो उन सभी को ले सकता था। और इसलिए जब उसने उन सभी को खो दिया, तो उसने परमेश्वर की आराधना की और कहा, "प्रभु ने दिया और प्रभु ने ले लिया। धन्य हो प्रभु का नाम" (अय्यूब 1: 20-22)। जब तक एक व्यक्ति सब कुछ त्याग नहीं देता, तब तक वह परमेश्वर की आराधना नहीं कर सकता – यानि किसी भी चीज को अपना समझ कर रखने के अधिकार को पूरी तरह से दे देना। अय्यूब ने यह भी कहा: "परमेश्वर जानता है कि मेरे साथ क्या हो रहा है" (अय्यूब 23:10 - लिविंग बाइबल)। आज हम अय्यूब से भी आगे जा सकते हैं और कह सकते हैं (रोमियों 8:28 के आधार पर) कि "परमेश्वर मुझसे संबधित हर बातों की योजना बनाता है।" यदि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं और हमारे जीवन में उसके उद्देश्य को पूरा करना चाहते हैं, तब वह सब कुछ जो परमेश्वर हमारे मार्ग में आने की अनुमति देता है, उसकी योजना वह सिद्ध ज्ञान और प्रेम से करता है और उसकी सामर्थ सभी बातों द्वारा हमें मसीह की समानता में बढ्ने के लिए पर्याप्त सामर्थी है (रोमियों 8: 29)। परमेश्वर अय्यूब को उसके समय में एक सिद्ध और खरे व्यक्ति के रूप में शैतान को दिखा सकता था। परमेश्वर हमें और भी अधिक शैतान को, एक ऐसे स्त्री और पुरुष के रूप में जो कभी भी किसी भी परिस्थिति में शिकायत या कुड्कूड़ाते नहीं है लेकिन हर समय सभी बातों के लिए धन्यवाद देते है - दिखा सके (इफिसियों 5:28)।

प्रेम से भरे रहने की खोज करे
आत्मा की परिपूर्णता का अचूक निशान प्रेम है - जैसा कि रोमियों 5: 5 स्पष्ट बताता है। मसीहीजगत में इसने कितना अधिक अंतर उत्पन्न कर दिया होता अगर अन्यभाषा की तुलना में प्रेम पर अधिक ज़ोर दिया गया होता – यदि रोमियों 5:5 पर पवित्र आत्मा की भरपुरी के चिन्ह के रूप में ज़ोर दिया जाता और न की प्रेरितों के काम 2:4 पर। परमेश्वर का वचन बताता है कि भले ही हमारे पास अन्यभाषा का दान हो या भविष्यद्वाणी का और पहाड़ों को हटाने का विश्वास हो – फिर भी हम परमेश्वर की दृष्टि में शून्य है अगर हमारे पास प्रेम नहीं (1 कुरिन्थियों 13:2)। दूसरी ओर यदि हम अन्यभाषा में न बोले, कभी भविष्यवाणी न करे और ना हीं पहाडो को हटाएँ फिर भी हम परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत हो सकते है, अगर हमारे पास प्रेम है। इससे पहले कि यीशु अपने जीवन में पवित्र आत्मा के किसी भी अलौकिक वरदान का प्रयोग करता, उसने उसके बपतिस्मा के समय अपने पिता से स्वीकृति प्राप्त की (“यह मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं प्रसन्न हूँ”)। वह 30 वर्षों तक पवित्र आत्मा से भरपूर था – अपने पिता और दूसरों के प्रति प्रेम से भरपूर। इसी प्रकार उसने अपने पिता को प्रसन्न किया। प्रेम सबसे बड़ा है क्योंकि यह स्वर्ग की आत्मा है। यीशु ने कहा, "यदि तुमने मुझे देखा है तो तुमने पिता को देखा है" (यूहन्ना 14: 9)। और वह हमसे कहता है, “जैसा पिता ने मुझे भेजा है, वैसा ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं” (यूहन्ना 20:21)। इसलिए, मसीह की देह के रूप में, हम भी आज यह कहने में सक्षम होने चाहिए कि , "यदि आपने हमें देखा है, तो आपने यह थोड़ी सी झलक पाई है कि यीशु कैसा है। यदि आप हमारे घर में रहेंगे, तो आप स्वर्ग का थोड़ा सा स्वाद चख पाएंगे। यदि आप मेरे साथ संगति करेंगे तो आपको थोड़ा सा यीशु और स्वर्ग समान अनुभव आएगा”। यही हमारी गवाही होनी चाहिए। हम प्रचार, सुसमाचार और बाइबल सिखा सकते हैं, लेकिन अगर हम अपने दैनिक जीवन में परमेश्वर के जीवन और प्रेम को प्रकट नहीं करते हैं, तो मसीह के लिए हमारी गवाही एक विफलता है। आज मसीहीजगत में यह त्रासदी है।

देना सीखे
परमेश्वर के वरदान प्राप्त करना निश्चय ही एक महान आशीष है। लेकिन परमेश्वर चाहता है कि हम उससे भी कुछ अधिक प्राप्त करें – एक बड़ी आशीष, यीशु के इन शब्दों को सुने: “लेने से देना धन्य है” (प्रेरितों के काम 20:35)। यदि आप इस वचन का पालन करते हैं, तो आप इस बड़ी आशीष को अनुभव करेंगे, आशीष जो देने के माध्यम से आती है। बाइबल बताती है, "जो दूसरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी” (नीतिवचन 11:25)। जब हम दूसरों को आशीष देते हैं, तो परमेश्वर हमें और भी अधिक आशीष देता हैं। हमारा आदम का स्वभाव प्राकृतिक रूप से स्वार्थी है और केवल अपने बारे में ही सोचता है। हम स्वाभाविक रूप से हमारे पास जो है उसे परमेश्वर को या दूसरों को देना पसंद नहीं करते। पवित्र आत्मा हमें आदम के इस स्वार्थी, स्व-केंद्रित जीवन से मुक्ति दिलाना और हमें यीशु की तरह बनाना चाहता है। और एक तरीका जिसके द्वारा वह यह करता है वो है - हमें देने और देने और देने के लिए प्रेरित करना। इस क्षेत्र में पवित्र आत्मा की अगुवाई को सुनें और आपको ऐसी आशीष मिलेगी जो आपने अब तक अनुभव नहीं की है। यह बहुतायत के जीवन का मार्ग है।

जिज्ञासा से मुक्त रहें
जिज्ञासा एक ऐसा पाप है जिसे अधिकांश विश्वासियों ने शैतानी बुराई के रूप में नहीं जाना है। हमारे शरीर में अन्य लोगों के बारे में कई बातें जानने की बहुत लालसा होती है जो अनावश्यक हैं और जिनका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। हमारा शरीर दूसरों के पापों के बारे में गपशप सुनना पसंद करता है - जिन्हें अक्सर कुछ विश्वासियों द्वारा "प्रार्थना-बिनती" के रूप में साझा किया जाता है!! लेकिन इस तरह की जानकारी से हमारा कुछ भी भला नहीं होगा। इसके विपरीत, यह हमारे मन को प्रदूषित करेगा, हमें दूसरों के खिलाफ पूर्वाग्रहित करेगा, हमें दुष्ट मन का बनाएगा, और हमारी गवाही और प्रभु के लिए हमारी सेवकाई में बाधा उत्पन्न करेगा। इसी तरह शैतान कई विश्वासियों को भटकाता है। बाइबल कहती है, "तुम में से कोई पराए काम में हाथ डालने के कारण दुख न पाए” ( 1 पतरस 4:15)। दूसरे शब्दों में: आप अपने काम से मतलब रखें!! आपको कभी भी किसी को अपने पिछले पापों के बारे में, यहां तक कि स्वेच्छा से भी बताने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। सभी को अपने पापों को केवल परमेश्वर के सामने ही मानना चाहिए, न की किसी मनुष्य के सामने। पाप को केवल उस घेरे में ही मानना चाहिए जिसमें वह किया गया है। विचारों के पाप और गुप्त में किए गए पाप जो किसी ओर को नहीं पर आपको स्वयं चोट पहुंचाते है, अवश्य ही परमेश्वर के सामने कबुल किए जाने चाहिए। लेकिन जो पाप किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाते हैं, उन्हें परमेश्वर के साथ-साथ उस दूसरे व्यक्ति के सामने कबुल किया जाना चाहिए। एक कलीसिया के खिलाफ किए गए पापों को परमेश्वर के साथ-साथ सार्वजनिक रूप से कलीसिया की सभा में कबुल किया जाना चाहिए। हमें इस नियम का सख्ती से पालन करना चाहिए, अगर हमें अपने मन को शुद्ध और बिना प्रदूषित रखना हैं।

हमेशा सृष्टि के बदले सृष्टिकर्ता को चुने
मनुष्य तब गुलाम बन जाता है जब वह परमेश्वर को चुनने के बजाय उसकी बनाई हुई चीजों को चुनता है। अधिकांश मनुष्य परमेश्वर से ज्यादा पैसों और पापमय लालसाओं से प्रेम करते है। इस प्रकार वे पैसों के और पापमय लालसाओं के दास बन जाते हैं और इस तरह स्वयं का विनाश करते हैं। यीशु हमें इस गुलामी से छुड़ाने आया। एक सच्चा रूपांतरण मनुष्य को ऐसी गुलामी से मुक्ति दिलाएगा। अधिकांश लोग दूसरों की राय के प्रति गुलाम होते है और इसलिए वे स्वतंत्र रूप से परमेश्वर की सेवा करने में सक्षम नहीं हैं। परमेश्वर ने मनुष्य को उस उकाब की तरह बनाया है जो आकाश में ऊंची उड़ान भरता है। लेकिन हर जगह हम मनुष्य को बंधन में पाते हैं, अपने गुस्से और अपनी वासनाओं पर विजय पाने में असमर्थ। यीशु न केवल हमारे पापों को क्षमा करने के लिए आया, बल्कि हमें हर प्रकार की वासनाओ और शरीर की लालसाओं की गुलामी से छुड़ाने के लिए आया। घरों में होने वाले ज्यादातर झगड़े सांसारिक चीजों पर होते हैं। इस तरह के झगड़े इसलिए होते हैं क्योंकि पति और पत्नी दोनों ही परमेश्वर से बढ़कर उसके द्वारा निर्मित चीजों को चुनते हैं और वे अपने चुनाव के परिणामों की कटनी काटते हैं। वे शरीर के लिए बोते हैं और बुराई काटते हैं। यदि आप उस चुनाव को करने से इंकार करते है जो हव्वा ने परमेश्वर से बढ़कर उसके द्वारा निर्मित चीजों को चुनने द्वारा किया था, तब आपका घर सर्वोच्च आनंद से भरा हो सकता है। प्रभु से कहें, "परमेश्वर, मैं नहीं चाहता कि स्व (मैं) मेरे जीवन के केंद्र में रहे, मैं चाहता हूं कि मेरे जीवन में सब कुछ आप में ही केंद्रित हो"।

यही वह बहुतायत के जीवन का मार्ग है जो यीशु देने आया था।