द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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अगर आप उस आत्मिक भोजन का मूल्य जानेंगे जो आपको इतने सालों तक कलीसिया में मिलता रहा है, तो आप कलीसिया के प्रति बहुत अधिक धन्यवादी होंगे। ज़रा सोचें कि जो आपको एक समय के खाने पर आमंत्रित करते हैं तो आप उनके प्रति कितने धन्यवाद से भर जाते हैं। तो आपको उस भोजन के लिए कितना अधिक धन्यवादी होना चाहिए जो आपको नियमित रूप से कलीसिया में साल-दर-साल मिलता रहा है। इस बात को एक दूसरी तरह देखें। मान ले कोई व्यक्ति है जिसने आपके बच्चों की देखभाल की, उन्हें खतरों से बचाया, उनकी देखभाल की जब वे बीमार थे, उन्हें प्रोत्साहित किया जब वे निराश थे और उनकी पढ़ाई लिखाई में मदद की कि उनके अच्छे अंक आए। और अगर वह व्यक्ति ऐसा एक दो दिन के लिए नहीं बल्कि अनेक वर्षों तक करता है। तब क्या आप उसके आभारी न होंगे? आप कलीसिया द्वारा आपके बच्चों की सुरक्षा के लिए कम से कम इतने आभारी है क्या? अनेक विश्वासियों के आत्मिक रीति से न बढ़ पाने की एक वजह यह भी है कि उन्होंने जो कुछ कलीसिया में पाया है, वे उसके प्रति आभारी नहीं हैं। जो विश्वास से भटककर कलीसिया से अलग हो गए हैं, वे वह लोग हैं जिन्होंने कभी उन बातों का बिलकुल भी आभार नहीं माना है जो इतने सालों से उन्होंने कलीसिया में बिलकुल मुफ़्त पाया है।

लुका 17:14-16 में , हम उन 10 कोढ़ियों के बारे में पढ़ते हैं जो चंगे हुए थे। लेकिन उनमें से सिर्फ़ एक ही प्रभु को धन्यवाद देने और परमेश्वर की महिमा करने के लिए वापस आया। जब वे ज़रूरत में थे, तो सभी ने अपनी आवाज़ ऊँची कर दया की पुकार की। लेकिन चंगा होने के बाद उसमें से 9 लोग उन्हें मिली चंगाई (लाभ) के प्रति पूरे कृतध्न साबित हुए। इनमें से सिर्फ़ एक ने ही धन्यवाद देने के लिए अपनी आवाज़ को उठाया। इस्राएल में चंगाई पाने वाले ऐसे और हज़ारों लोग होंगे जिन्होंने प्रभु को धन्यवाद देने के लिए कभी अपना मुँह नहीं खोला होगा। लेकिन यह सामरी व्यक्ति प्रभु को धन्यवाद देने के लिए वापस लौटा था। उसने शायद प्रभु से ऐसा कुछ कहा होगा, “प्रभु, अब जबकि तुने मुझे छू लिया है तो भविष्य में मेरा जीवन कितना अलग होने वाला है। अब मैं शहर में लौट सकता हूँ। मैं अपने परिवार के पास लौट सकूँगा। तू मेरे जीवन में आनंद को लेकर आया है। मैं इन आशीषों को हल्के से नहीं लेना चाहता। अब से मेरा सब कुछ तेरा है और मेरे जीवन की सभी आशीषों के लिए मैं अपने हृदय की गहराई से तेरा आभारी हूँ”। यीशु ने उस व्यक्ति द्वारा प्रदर्शित की गई कृतज्ञता की सराहना की। फिर यीशु ने उसे कुछ और भी दिया। उसने उससे कहा कि उसके विश्वास ने उसे बचा लिया है। शुद्ध हो चुके उस कोढ़ी को प्रभु से चंगाई से भी बढ़कर कुछ और मिला। उसने चंगाई तो पहले ही प्राप्त कर ली थी। लेकिन क्योंकि वह आभारी हुआ इसलिए उसे उद्धार भी मिला। मुझे यक़ीन है कि मैं स्वर्ग में उस सामरी व्यक्ति से मिलूँगा। लेकिन मुझे इस बात का निश्चय नहीं है कि मैं बाक़ी नौ लोगों में से किसी से भी स्वर्ग में मिलूँगा। जब आप प्रभु को धन्यवाद देने के लिए वापस आते हैं, तो आपको उससे कुछ ज़्यादा मिलता है जो दूसरे पाते हैं।

प्रभु अपनी कलीसिया के बीच में है जो कि पृथ्वी पर उसकी देह है। हम प्रभु की देह को मूल्यवान जानने द्वारा प्रभु की सराहना करते हैं। अगर आप कलीसिया की सराहना और मूल्य नहीं करते, तो इसमें कलीसिया का नहीं परंतु आपका नुक़सान होगा। परमेश्वर ने ऐसे सभी लोगों को भरपूरी से आशीष दी है जिन्होने कलीसिया को मूल्यवान जाना है और वे उन सब बातों के लिए आभारी हुए है जो उन्होंने कलीसिया से पाई है।

यीशु ने अपने शिष्यों की निष्ठा का बहुत मूल्य किया। एक बार उसने अपने शिष्यों से कहा कि हालाँकि अब वे सब उसे छोड़कर चले जाएंगे लेकिन फिर भी वह अकेला नहीं होगा क्योंकि उसका पिता उसके साथ है (यूहन्ना 16:32)। उसे उन शिष्यों की ज़रूरत नहीं थी। फिर भी लुका 22:28 में उसने कहा कि वह इस बात के लिए उनका आभारी हैं कि वे उसके साथ खड़े रहे। वह महिमा का प्रभु था। उसे इस बात की कोई ज़रूरत नहीं थी कि कोई उसके साथ खड़ा रहे। हालाँकि उसे किसी समर्थन की ज़रूरत नहीं थी फिर भी वह उनकी निष्ठा की सराहना कर रहा था। वह उनसे मानो यह कह रहा था, “तुम यहूदियों की पुरानी व्यवस्था में से बाहर निकल आए हो और अपनी पुरानी मशके छोड़ दी है। तुमने दुल्हन की आत्मा और वेश्या की आत्मा के बीच के फ़र्क को जान लिया है और तुम बाहर निकलकर मेरे साथ खड़े हुए हों और इसकी क़ीमत चुकाने के लिए भी तैयार हो”।

मेरी आशा है कि प्रभु अंतिम दिन हम से भी यही कह सकेगा कि हम उसके साथ खड़े रहे और उससे लज्जित नहीं हुए, कि उसने जिस कलीसिया में हमें रखा था, हमने उससे प्रेम किया और उसके लिए अपने आप को दे दिया और दूसरे लोगों की तरह हमने कलीसिया की आलोचना नहीं की। भाइयों व बहनों, हमें स्वयं और हमारे बच्चों को मिली उस अदभुत सुरक्षा के लिए कलीसिया का आभारी होना चाहिए जो हमें उससे मिली है। आप जो युवा हो, शायद कभी यह समझ नहीं पाओगे की कलीसिया ने आपको कितनी दुर्घटनाओं, ख़तरों और पापों से बचाया है। जब आप प्रभु के सामने खड़े होंगे सिर्फ़ तभी आप यह जान सकोगे कि कलीसिया के कठोर मापदंड/मानकों ने आपको संसार में भटक जाने और अपना नाश करने से कैसे बचाए रखा था। और उस दिन आप यह समझ पाओगे कि जो आपने कलीसिया में कई साल पहले सुना था, उसने कैसे वर्षों बाद आपको किसी ख़तरे से बचाया। प्रभु आपको यह भी दिखाएगा कि आपके बच्चों को भी उन बातों द्वारा, जो उन्होंने कलीसिया में सुनी थी, कितने खतरों से बचाकर रखा। फिर भी इन सब बातों और अन्य बहुत सी आशीषों के बावजूद, हम सभी कलीसिया की उचित सराहना और मूल्य नहीं करते।

क्या आप उस बिंदु तक बढ़ना चाहते हैं जहाँ आप दूसरों के लिए एक आशीष बन जाए? तो सबसे पहले प्रभु द्वारा आपके लिए किए गए कामों और आपको दी कलीसिया के लिए धन्यवाद देना सीखे। कलीसिया को हल्के से न लें। हम में से बहुत से लोग ऐसे बच्चों की तरह है जिन्हें अपने माता-पिता का असली मूल्य उनके मरने के बाद ही समझ आता है। इससे पहले की बहुत देर हो जाएँ, प्रभु हमें कलीसिया में एक दूसरे प्रति धन्यवादी होना सिखाए।