द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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प्रेरित याकूब, याकूब 1:2 में यह कहता है “जब तुम विभिन्न परीक्षाओं में पढ़ो तो इसे बड़े आनंद की बात समझो"। अगर आपका विश्वास असली होगा तो परीक्षाओं का सामना होने पर आप आनंदित होंगे - यह ऐसा ही है मानो ₹ 2000 के नोट को यह परख करने के लिए स्कैन मशीन में रखना कि वह असली है या नकली। आपको इसमें डरने की क्या जरूरत है? अगर आपका विश्वास नकली है तो क्या यह अच्छा नहीं है उसके बारे में हमें मसीह के न्यायासन के सामने नहीं बल्कि अभी पता चल जाए? इसलिए अच्छा है कि परमेश्वर आपके सामने कोई परीक्षा लाए कि आप यह जान सके कि आपका विश्वास असली है या नकली। इसलिए आनंद मनाएं। अगर आप एक घर का निर्माण कर रहे है, तो क्या यह अच्छा न होगा कि उसकी बुनियाद डालते समय ही भूकंप आ जाए, न की उसके पूरा हो जाने के बाद? तब अगर उसकी बुनियाद हिल गई होगी तो आप उसको मजबूत कर सकेंगे। इसी तरह, मसीही जीवन के आरंभ से ही परीक्षाओं में से गुजरना अच्छा है। आप कह सकते हैं, “मैं प्रभु में भरोसा रखता हूँ”। लेकिन जब आप थोड़ी आर्थिक कठिनाई में पड़ जाते हैं, तो आप चिंता करना और शिकायत करना शुरू कर देते हैं। यह हो सकता है कि आप बीमार हो गए हो और आप परमेश्वर से सवाल करने लग जाए। या मनुष्य आपका विरोध करने लगे और आप निरुत्साहित होकर अपना विश्वास खो सकते हैं। ये सभी परीक्षाएं आपके सामने यह प्रमाणित कर देंगी कि आपका विश्वास वास्तव में असली नहीं है।

इसके अतिरिक्त, परीक्षाएं हमारे जीवन में धीरज का गुण भी पैदा करती है। हमने इब्रानियों में यह देखा था कि विश्वास और धीरज साथ-साथ रहते हैं। ये हमारे दो पैरों जैसे हैं। विश्वास के साथ हमें हमेशा धीरज (सहन-शक्ति) की जरूरत होती है। अगर हम धीरज को उसका पूरा काम करने देंगे, तो वह हमें पूर्ण और सिद्ध बना देगा और हममें किसी बात की कमी न होगी (याकूब 1:4)। इस लक्ष्य पर विचार करें - “पूर्ण और सिद्ध, जिसमें किसी बात की कमी नहीं”। क्या आप वहाँ पहुंचना चाहते हैं? उसका रास्ता परीक्षाओं में से है। वहाँ पहुँचने का और कोई रास्ता नहीं है। हम अभी वहां नहीं पहुंचे हैं, इसलिए हमें अभी कुछ और परीक्षाओं में से गुजरने की जरूरत है। अगर मैंने अपने जीवन में कुछ आत्मिक मूल्य अर्जित किया है, तो वह उन परीक्षाओं के द्वारा है जिनमें से प्रभु मुझे लेकर गुजरा है। लेकिन मुझे “सिद्ध, पूर्ण और किसी बात की कमी न होने” का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभी और बहुत सी परीक्षाओं में से गुजरना होगा।यह हममें से हरेक के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया लक्ष्य है। अगर किसी परीक्षा द्वारा आपको यह मालूम पड़े कि आपका विश्वास असली नहीं है, तो निराश न हो। परमेश्वर का धन्यवाद करें कि उसने आपको वह दिखाया और तब आप उससे असली विश्वास के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। परमेश्वर आपको वह विश्वास देगा।

प्रेरित पतरस, 1 पतरस 1:7 में कहता है कि सभी परीक्षाओं का उद्देश्य यह साबित करना होता है कि आपका विश्वास असली है या नहीं - वैसे ही जैसे “सोना आग में परखा” जाता है। सोना जब जमीन की गहराइयों में से निकाला जाता है, तब वह शुद्ध नहीं होता। उसे शुद्ध करने का एकमात्र तरीका उसे आग में डालने द्वारा ही है। आप सोने को साबुन या पानी से साफ नहीं कर सकते। ऐसे तो सिर्फ धूल साफ होती है। लेकिन सोने में मिले धातुओं को निकालने के लिए उसे आग में डालना पड़ता है। तब उसमें मिले हुए धातु पिघल कर अलग हो जाते हैं और शुद्ध सोना अलग हो जाता है। जिन परीक्षाओं में से आप गुजरते हैं, वह अग्निमय हो सकती है। उनमें पीड़ा होती है और आपको ऐसा लगता है जैसे आप आग में डाल दिए गए हैं। इसमें एक मात्र उद्देश्य आपके अंदर से उन बातों को दूर करना होता है जो अशुद्ध है।

परमेश्वर अपने सभी बच्चों को परीक्षाओं का सामना करने देता है। अपनी महान बुद्धि समझ में वह जानता है कि उन्हें कब भेजना है। जब हम प्रभु के सम्मुख खड़े होंगे, तब हम यह जानेंगे कि उसने जितनी भी परीक्षाओं को हमारे जीवन में आने दिया है, उनमें से एक में भी उसने कोई गलती नहीं की है। उस दिन हम यह देख पाएंगे कि हमारे जीवनों में आने वाली हरेक परीक्षा हमें सोने की तरह शुद्ध करने के लिए ही थी। अगर आपका इस बात पर विश्वास होगा तो आप हर समय प्रभु की स्तुति करते रहेंगे। आप की परीक्षाओं के बीच में भी आप एक अवर्णनीय आनंद से भरे रहेंगे और इसका परिणाम आपका उद्धार होगा। यह वह उद्धार है जिसे प्राचीन काल के नबियों ने समझना चाहा था लेकिन समझ नहीं सके थे। स्वर्गदूत भी इस उद्धार को देखने की बड़ी लालसा करते हैं (1 पतरस 1:12)। लेकिन अब स्वर्ग से भेजे गए पवित्र आत्मा ने लोगों का अभिषेक किया है जो इस सुसमाचार का प्रचार करते हैं। इसलिए पतरस कहता है, कि अब क्योंकि हमारे पास ऐसा अद्भुत सुसमाचार है, और क्योंकि हमें इन परीक्षाओं में से थोड़े समय के लिए ही गुजरना है, तो इन परीक्षाओं से विचलित न होते हुए हम अपने मनों को मसीह के आने की बाट जोहने के लिए धारदार बनाए रखें (1 पतरस 1:13)