द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   घर चेले आत्मा भरा जीवन
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स्त्री पुरुष का संबंध मसीह और उसकी कलीसिया के मध्य स्थापित संबंध का प्रतीक है (इफि 5 : 22, 23) । यह धर्मशास्त्र के अत्यंन्त सुंदर प्रगटीकरणों मेंसे एक है ।

इफिसियों के इस अध्याय में पत्नियों को यह आदेश दिया गया है कि वे अपने पतियों के अधीन रहें, क्योंकि पति को परमेश्वर ने पत्नी का सिर ठहराया है। पत्नी को आज्ञा है कि प्रत्येक बात में अपने पति के आधाीन रहे। (जैसे कलीसिया को मसीह के प्रति होना चाहिए) और उनका आदर भी करें। ऐसी अधीनता आधुनिक समय की हमारी प्रथा न हो, परंतु तो भी यह परमेश्वर का नियम है। जिस घर में इस नियम का उल्लंघन किया जाता है वह निश्चय किसी न किसी तरह इस अनाज्ञाकारिता का परिणाम भोगेगा। यदि कोई मसीही युवती, विवाहित जीवन में परमेश्वर के इन नियमों के पालन की इच्छा नहीं रखती, तो उसे कभी विवाह नहीं करना चाहिए। उसके लिए विवाह कर सदैव परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए जीवन व्यतीत करने से श्रेयस्कर है, वह अविवाहित बनी रहे।

कोई पति ऐसा न सोचे कि परमेश्वर की आज्ञाएँ, उसे पत्नी के साथ मनमाना व्यवहार करने का अधिकार पत्र देती है । इस अध्याय में आगे लिख है कि पतियों को पत्नियों से ऐसा प्रेम रखना है, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया। अर्थात् पतियों को अपनी पत्नियों से त्यागपूर्ण प्रेम रखना है- न सिर्फ वस्तुओं को देना है किन्तु स्वयं को देना है। उन्हें अपनी पत्नियों की भलाई और आनंद के लिए स्वयं का जीवन ही देना है जैसा मसीह अमिट प्रेम से कलीसिया को प्यार करता है, वैसा ही पति का कर्तव्य है कि पत्नी से असीम प्रेम करे, चाहे बदले में उसे प्रेम मिले अथवा नहीं। स्मरण रखिए कि मसीह ने चेलों के प्रेम के कारण् उनके पैर तक धोए थे (यूहन्ना 13 :1, 5)। इसी अध्याय में आगे पतियों को यह आज्ञा दी गई है कि पत्नियों से अपनी देह के समान प्रेम रखे। जैसे वे जानबुझकर अपने शरीरों को चोट या हानि नहीं पहुंचाएंगे, उसी प्रकार उन्हें जानबूझ कर अपनी पत्नियों की भावनाओं को चोट या हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। जैसे हानि और संकट से वे अपने शरीर की रक्षा और देखभाल करेंगे, वैसे ही उन्हें अपनी पत्नियों की भी रक्षा और परवाह करनी है। जो पुरुष धर्मशास्त्र की इन शिक्षाओं का अनुसरण करने की इच्छा नहीं रखता, उसके लिए अविवाहित रहना भला है।

इफिसियों के इस अध्याय अनुसार परमेश्वर का उद्देश्य है कि प्रत्येक मसीही पति-पत्नी की तस्वीर, मसीह और उसकी कलीसिया की तस्वीर के समान हो। उनका जीवन एक साथ इस संबंध का सौंदर्य प्रगट करनेवाला हो।

पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने की आज्ञा (इफि 5 : 18) के पश्चात् ही यह अध्याय आता है कि जिसमें पति और पत्नी के संबंधों को वर्णन है। अतः इससे ज्ञात होता है कि आत्मा से परिपूर्ण होने का परिणाम प्रमुखतः घर में मसीह की समानता का व्यवहार होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ होगा कि वैवाहिक जीवन में मसीह को महिमा देने के लिए, पवित्र आत्मा की भरपूरी अनिवार्य होगी।

जीवन साथाी को खोजने से पूर्व, प्रत्येक मसीही को स्वयं से यह प्रश्न करना चाहिए, कि क्या वह उपर लिखे अनुसार, घर की वास्तव में इच्छा करता है या नहीं। यदि आपकी ऐसी इच्छा नहीं, तो आप विवाह में मसीह की अगुवाई की आशा नहीं रख सकते। दूसरी ओर, यदि यही आपकी सच्ची महत्वकांक्षा है, तो आप निश्चय जान सकते है कि परमेश्वर न सिर्फ अपनी सिध्द इच्छा पूर्ति करने में विवाह में आपकी अगुवाई करेगा, किन्तु वह इस प्रकार के घर निर्माण के लिए आपको सामर्थ भी प्रदान करेगा।