द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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मसीही जगत के पहले 300 सालों में, लगभग सभी मसीही लोग ऐसे मसीही-विरोधी शासकों के राज्य में रहे जिन्होंने उन्हें अक्सर सताया और उनमें से बहुतों को जान से भी मार डाला। अपनी असीम बुद्धि में परमेश्वर ने अपनी महिमा के लिए ऐसे लोगों को उसके बच्चों को सताने की अनुमति दी। और आज भी परमेश्वर ने अपने कुछ उम्दा बच्चों को ऐसी सरकारों के अधीन रहने की अनुमति दी है, जो उन्हें सताती है। कलीसिया हमेशा सताव के समय में ही सबसे ज्यादा फलवंत हुई है। लेकिन जहाँ भी कलीसिया चैन-आराम, सुख-सुविधा और भौतिक संपन्नता के अनुभवो में रही है, वहाँ ज्यादातर मामलों में वह सांसारिक बन गई है। जब तक हम इस संसार में है तब तक हम क्लेश, सताव और परीक्षाओं का सामना करेंगे। इसलिए, जैसे-जैसे हम इस युग के अंत की ओर बढ़ रहे हैं हमें एक आसान समय की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए - न तो अपने काम की जगह में और न ही अपने व्यक्तिगत जीवन में।

आर्थिक मुश्किलों के समय आएंगे। इसलिए हम अभी से ही एक साधारण जीवन जीना सीखें। जो लोग बड़ी भोग-विलासिता में रहते हैं उन्हें आने वाले दिनों में बहुत तकलीफ उठानी पड़ेगी। इसलिए हमें भविष्य के लिए कुछ धन की बचत कर लेनी चाहिए ताकि हमें दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े। लेकिन हमारा भरोसा हमारी बचत पर नहीं बल्कि सिर्फ प्रभु में ही हो। परमेश्वर एक जलन रखने वाला परमेश्वर है और वह हमें कभी भी किसी निर्मित चीज पर भरोसा नहीं करने देगा। परमेश्वर दुनिया की आर्थिक व्यवस्था को हिला देगा, ताकि जो लोग निर्मित चीजों में भरोसा करते हैं वे हिल जाएंगे। जैसा यीशु ने कहा, हम भाई को भाई के साथ विश्वासघात करते हुए और अपने ही परिवार के लोगों को अपना शत्रु बनते हुए देखेंगे (मत्ती 10:21) कार्यालयों और कारखानों में विश्वासियों के साथ एक सक्रिय रूप में सताव होगा और यह सताव हमें शुद्ध करेगा और हमें बेहतर मसीही बनाएगा। 1 पतरस 3:13 कहता है कि अगर हम हमेशा ही भला करना चाहेंगे तो कोई हमें हानि न पहुँचा सकेगा। इसलिए, परमेश्वर के अनुग्रह से हम यह दृढ़ संकल्प करें कि हम सभी के साथ भला ही करेंगे। हम उनसे प्रेम करें जो हम से घृणा करते हैं, उन्हें आशीष दे जो हमें श्राप देते हैं, और जो हमें सताए उनकी क्षमा के लिए प्रार्थना करें। तब कोई भी हमें हानि न पहुँचा सकेगा। शैतान और उसके प्रतिनिधि हमारे साथ बेईमानी कर सकते हैं, परेशान कर सकते हैं, सता सकते हैं, लूट सकते हैं, घायल कर सकते हैं, बन्दीगृह में डाल सकते हैं, और हमारे शरीर को भी मार सकते हैं। लेकिन वे आत्मिक रूप में हमें कभी नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे

हमें आने वाले दिनों में पूरे जगत में मसीहियों को उनके विश्वास के लिए सताव सहने को तैयार करना चाहिए। ऐसे दिनों के लिए हमारे प्रभु ने हमें चार आज्ञाएँ दी है:

1. "साँप की तरह चतुर और कबूतर की तरह भोले बनो" (मत्ती 10:16)।
हमारी साक्षी में हमें मूर्ख नहीं बल्कि बुद्धिमान होना है। हम जहाँ रहते और काम करते वहाँ हमारा जीवन मसीह की साक्षी दें। प्रभु की हमारी साक्षी में, हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि हम एक व्यक्ति - यीशु मसीह - के बारे में बात कर रहे हैं, और मसीही धर्म के किसी दूसरे धर्म से बेहतर होने की बात नहीं कर रहे हैं। जब हम यीशु को ऊंचा उठाएंगे तब वह स्वयं ही लोगों को अपनी ओर खींचेगा (यूहन्ना 12:32)। हमें सचेत रहते हुए ऐसे गैर-मसीही जासूसों को भी परखना होगा जो मसीहियत में दिलचस्पी होने का दिखावा करते हुए आते हैं, लेकिन उनका असली उद्देश्य हमारे द्वारा इस्तेमाल किए गए किसी शब्द में हमें दोषी ठहराना होता है कि वे हमें यह कहते हुए न्यायालय में ले जा सके कि हम “उन्हें बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे थे”। इसलिए जैसा यीशु था - हमें भी वैसा ही बुद्धिमान और साथ-ही-साथ प्रेम करने वाले होना चाहिए: (a) “यीशु ने अपने आप को लोगों के भरोसे पर नहीं छोड़ा क्योंकि वह जानता था कि उनमें क्या है” (यूहन्ना 2:23-25)। सभी लोगों को परखे। (b) “यीशु यहूदिया में नहीं जाना चाहता था क्योंकि वहाँ यहूदी उसे मार डालना चाह रहे थे” (यूहन्ना 7:1)। गैर-जरूरी खतरा न उठाएं। (c) “जो तुम्हें सताते हैं उनके लिए प्रार्थना करें” (मत्ती 5:44)। अच्छाई करें और सिर्फ इस वजह से बुरे न बन जाओ क्योंकि दूसरे बुरे हैं।

2. “हर एक उस वचन के अनुसार जीवन बिताओ जो परमेश्वर के मुख से निकला है” (मती 4:4)।
सताव के समयकाल में हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता यह होती है कि हम उस शब्द के प्रति संवेदनशील रहे जो परमेश्वर हमारे ह्रदय में बोलता है। हमें सुनने वाले एक ऐसे मनोभाव की आदत विकसित करनी चाहिए जिसमें हम सम्पूर्ण दिन परमेश्वर की बात सुन सके। फिर जो वचन हम परमेश्वर से पाए हमें उस पर विश्वास और उसका पालन करना चाहिए। वरना उसका कोई मूल्य न होगा। इसलिए हमें परमेश्वर के वचन (विशेषकर नया नियम) पर मनन करना होगा - क्योंकि केवल इस तरह से ही हम परमेश्वर की आवाज को परख सकेंगे। और फिर हमें “उसका भरोसा और पालन करना चाहिए”

3. “आपस में एक-दूसरे से वैसा ही प्रेम रखो जैसा मैंने तुमसे रखा है। अगर तुम आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो” (यूहन्ना 13:34, 35 )।
हमारे घरों में और हमारी कलीसियाओं में हमें एक-दूसरे का न्याय, एक-दूसरे की पीठ-पीछे बुराई, एक-दूसरे के साथ लड़ाई-झगड़े, और एक-दूसरे पर संदेह करने का सारा काम बंद कर देना चाहिए। परख एक दिव्य गुण है, लेकिन संदेह एक शैतानी गुण है। यह वह समय है जिसमें हमें अपने जीवन में पाप और शैतान से युद्ध करने पर ध्यान देना हैं। यही वह समय है जिसमें हमें अपने वैवाहिक साथी और अपने विश्वासी भाई-बहनो से प्रेम करने के लिए सरगर्म रहना है।

4. "संसार में तुम्हें क्लेश होगा। लेकिन ढाढस बाँधों, मैंने संसार को जीत लिया है" (यूहन्ना 16:33)।
परमेश्वर सिंहासन पर विराजमान है और वह अपने लोगों को कभी नहीं त्यागेगा। शैतान 2000 साल पहले हराया गया था। हम परमेश्वर की आँखों की पुतली हैं, इसलिए वह हमारे चारों ओर एक आग की दीवार बना रहेगा (जकर्याह 2:5,8 )। हमारे विरुद्ध बनाया गया कोई भी शस्त्र हम पर सफल न होगा (यशायाह 54:17)। इसलिए “जो तुम्हारे पास हैं उसी पर संतोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है: मैं न कभी तुम्हें छोडूंगा, और न कभी त्यागूंगा। इसलिए हम साहस के साथ यह कह सकते हैं, प्रभु मेरा सहायक है। मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?" (इब्रानियों 13:5, 6)

हम यह भी प्रार्थना करें, "हे प्रभु यीशु, जल्दी आ" (प्रकाशितवाक्य 22:20)