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क्रूस के संदेश का एक उज्जवल पक्ष है - एक सकारात्मक पक्ष । यह वह है, कि क्रूस अपने आप में एक अंत नहीं है। यह पुनरुत्थान जीवन का मार्ग है। उन सब के समक्ष वह आनन्द है जो क्रूस के कार्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं (इब्रानियों 12:2)। गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मरता है परन्तु सदैव वही नहीं पड़ा रहता; वह बहुतायत से फल लाता है। एक विश्वासी जो क्रूस के मार्ग को स्वीकार करता है, भले ही दूसरों के द्वारा उसे कितना भी गलत समझा जाए, अंतत: परमेश्वर द्वारा प्रमाणित किया जाएगा। उसकी मृत्यु द्वारा भी फल दिखाई देता है। इनमें से कुछ फल हम पृथ्वी पर रहते हुए भी देख सकते हैं, परन्तु यह सब केवल मसीह के न्याय आसन पर देखा जाएगा, जब प्रभु अपने विश्वासयोग्य लोगों को प्रतिफल देगा।

विजय का एकमात्र पथ क्रूस का मार्ग है। यही कारण था कि शैतान ने उस पथ पर मसीह को जाने से रोकने की भरसक कोशिश की। इसीलिए शैतान भी अथक प्रयास में है कि लोगों को उनके जीवनों में इस राह को स्वीकार करने से रोके। पतरस ने अच्छे अभिप्राय से प्रेम के साथ प्रयत्न किया था कि मसीह को क्रूस के दुःख की ओर जाने से रोके, किन्तु प्रभु ने एक दम उसमें शैतान का स्वर पहचाना (मत्ती 16:21-23)। जब हमारा मार्ग दुर्गम हो, तब हमारे मित्र और सम्बन्धी भी हमें ऐसी ही सलाह दे सकते हैं। स्मरण रखिए यदि वह स्वर हमारे अन्तःकरण का हो अथवा मित्रों का जो हमें क्रूस के मार्ग से दूर करे, तो वह सदैव शैतान की फुसफुसाती आवाज़ है। क्या हम सदैव उसे इस प्रकार पहचानते हैं?

प्रकाशितवाक्य में हम मसीह यीशु को वध किए हुए मेम्ने के सदृश्य देखते हैं। यहाँ कलवरी का स्वर्गीय दृष्टिकोण है। मनुष्य की दृष्टि में कलवरी एक हार थी। हमारे पास किसी अविश्वासी का यीशु के पुनरुत्थान के बाद उसे देखने का कोई विवरण नहीं है, और इसलिए कलवरी को अभी भी मनुष्य द्वारा एक हार के रूप में देखा जाता है। किन्तु स्वर्ग के दृष्टिकोण से पृथ्वी पर की समस्त विजयों में कलवरी सर्वश्रेष्ठ जीत थी। संसार में उन्होंने परमेश्वर के मेम्ने को क्रूस पर चढ़ाया परन्तु स्वर्ग में उन्होंने उसकी आराधना की। जब, यीशु का अनुसरण करते हुए, आप अपने अधिकारों का समर्पण करते हैं, तो पृथ्वी पर मनुष्य कह सकते हैं कि आपके पास कोई रीढ़ की हड्डी नहीं है, परन्तु स्वर्ग में परमेश्वर के एक बच्चे पर आनन्द होगा जिसने विजय की स्थिति ले ली है। “वे...उस (शैतान) पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना; यहाँ तक कि मृत्यु (क्रूस की) भी सह ली। इस कारण, हे स्वर्ग... मगन हो” (प्रका 12:11, 12)।

भजन संहिता 124:7 में, मसीही जीवन को एक पक्षी के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है जो फंदे से बच निकला है। आकाश में उड़ता हुआ एक पक्षी उस महिमामय स्वतंत्रता का एक आदर्श चित्र है जिसे परमेश्वर चाहता है कि उसके सभी बच्चे अनुभव करें। पहाड़ और नदियाँ पृथ्वी से जुड़े प्राणियों के आगे बढ़ने में बाधा डाल सकते हैं, लेकिन पक्षी के लिए नहीं। यह उन सब पर बहुत ऊँचा चढ़ता है। परमेश्वर ने मनुष्य को इसलिए बनाया कि वह उस पक्षी के समान सिद्ध होकर स्वतंत्र हो सके, और सब वस्तुओं पर अधिकार रखे, और सब वस्तुओं को अपने वश में कर ले (उत्पत्ति 1:28)। परन्तु मनुष्य की अनाज्ञाकारिता ने उसे फन्दे में फंसे हुए पंछी के समान बना दिया है, जो उड़ने में असमर्थ है।

केवल क्रूस ही उस फंदे को तोड़ सकता है और हमें स्वतंत्र कर सकता है। और कोई रास्ता नहीं। इस संसार के लिए और स्वयं के लिए मृत्यु को स्वीकार करो, और उसमें तुम शैतान की शक्ति के लिए भी मर जाओगे। आप पर उसकी पकड़ टूट जाएगी, और फिर कोई भी चीज़ आपको उस पक्षी की तरह ऊपर की ओर उड़ने से नहीं रोक सकती। यही सच्ची स्वतन्त्रता है - और यही वह है जिसे पवित्र आत्मा हमारे जीवनों में लाना चाहता है (2 कुरिन्थियों 3:17)। लेकिन क्रूस का मार्ग उस स्वतंत्रता का एकमात्र मार्ग है।

मरकुस 4:17 में यीशु ऐसे मसीहियों के बारे में बात करते हैं जिनकी कोई जड़ नहीं है। उनकी मसीहत सतही/बनावटी थी। जब भी परमेश्वर ने उन्हें उनके जीवन में क्रूस को स्वीकार करने का अवसर देकर उनकी जड़ों को मजबूत करने की कोशिश की, वे हमेशा इससे बचते रहे। केवल एक ही मार्ग है जो मनुष्य को जीवन की परिपूर्णता में ले जा सकता है जो कि मसीह में है। हम चाहें तो दूसरे रास्तों पर चल सकते हैं, लेकिन हम किसी और रास्ते से कभी भी परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा नहीं करेंगे। यदि हम अपने जीवन में क्रूस के मार्ग का इनकार करते हैं तो हमारे सभी उपहार और प्रतिभाएँ व्यर्थ हो जाएँगी। हम इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं - चुनाव पूरी तरह से हमारा है।

साधु सुंदर सिंह कहा करते थे कि, जब हम स्वर्ग पहुंचेंगे, तो यीशु के लिए क्रूस उठाने का दूसरा मौका नहीं मिलेगा। हम अभी अस्वीकार कर सकते हैं, किन्तु अन्त में हमें कोई अवसर नहीं मिलेगा कि प्रभु यीशु के लहू बहाए गए पथ पर चल सकें जिस पर यीशु चला था। जब हम अपने प्रिय प्रभु से भेंट करेंगे, उस समय भी उसके हाथ पैर में कीलों के निशान होंगे। तब यह क्या होगा कि हम अपने स्वयं के सांसारिक जीवन को देखें और पाएं कि हमने हर कदम पर सावधानी से क्रूस की अवहेलना की है? परमेश्वर यह वर दे कि हम प्रत्येक कदम पर उसके प्रति समर्पण करें, ताकि उस दिन हम हाथ मलते न रह जाएं।