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जबकि यह बात सच है कि यीशु विश्वासयोग्य लोगों को उनका प्रतिफल देगा (प्रका. 22:12), और यह भी सच है कि हमारे जीवनों की सबसे बड़ी अभिलाषा प्रभु को प्रसन्न करना होनी चाहिए (2 कुरि. 5:9) कि एक दिन हम उससे ये शब्द सुन सकें, "शाबाश, मेरे अच्छे और विश्वासयोग्य दास", फिर भी यीशु ने हमें सचेत करते हुए कहा है कि ऐसा न हो कि एक स्वर्गीय प्रतिफल पाने की हमारी स्वकेन्द्रित अभिलाषा उसके लिए हमारे बलिदानों और हमारी सेवा का प्रेरणा-स्रोत् बन जाए।

जब पतरस ने अपने आपको बेहतर दर्शाते हुए उस धनवान युवा शासक से अपनी तुलना की (जो उसी घड़ी यीशु को छोड़ कर गया था) और यह सवाल किया, "देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे चल पड़े हैं, हमें क्या मिलेगा?" (मत्ती 19:27), तब यीशु ने बारी के मज़दूरों के दृष्टान्त द्वारा उसे जवाब दिया था (मत्ती 20:1-16)। वहाँ हम यह पाते हैं कि जिन्होंने वेतन (प्रतिफल) के लिए काम किया था, वे सबसे पीछे हो गए थे, और जिन्होंने किसी प्रतिफल की आशा रखे बिना काम किया था (हालांकि उन्होंने पहले मज़दूरों की तुलना में बहुत ही कम काम किया था), सबसे आगे रहे थे।

मात्रा बनाम गुणवत्ता - यहाँ हम मरे हुए कामों और जीवित कामों के बीच का फर्क देखते हैं। वे काम जो इस आशा से किए गए हैं कि अंत में हम दूसरे विश्वासियों से ज़्यादा ऊँचे किए जाएंगे और मसीह की देह में अपने लिए कोई पद पाएंगे, वे अंतिम दिन में मरे हुए कामों के रूप में प्रकट हो जाएंगे।

अगर आप अपने वैचारिक जीवन को पवित्र करेंगे, दूसरों के साथ भला करेंगे, अपनी पत्नी से प्रेम करेंगे या अपने पति के अधीन रहेंगी, और ये सब करते हुए अगर आपके अन्दर यह विचार है कि भविष्य में किसी दिन आपको ऊँचा उठाएगा, तब "खुदी" अभी भी आपके जीवन के केन्द्र में है, और आपके सभी स्व-केन्द्रित "भले" काम मरे हुए काम हैं।

जिन लोगों को महिमा का मुकुट मिलता है, वे तुरंत उन्हें प्रभु के चरणों में यह कहते हुए गिरा देते हैं, "केवल तू ही इसके योग्य है" (प्रका 4:10)। यह केवल तभी होता है जब हमने परमेश्वर की महिमा करने की इच्छा के अलावा अन्य उद्देश्यों से खुद को शुद्ध कर लिया है, कि हम मृत कार्यों से मुक्त हो सकते हैं। यदि हम अपने द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्यों का अपनी स्मृति में रिकार्ड रखें तो वे अच्छे कार्य मृत कार्य बन जाते हैं।

यीशु ने हमें न्याय के दिन के दो चित्र दिखाए थे - एक वह जिसमें लोग प्रभु के सामने उन सब भले कामों की सूची प्रस्तुत कर रहे थे जो उन्होंने उनके पार्थिव जीवन में किए थे- "प्रभु हमने तेरे नाम में नबूबत की थी, और हमने तेरे नाम में बीमारों को चंगा किया था, आदि" (मत्ती 7:22,23)। इन लोगों को प्रभु ने अस्वीकार कर दिया था। दूसरे चित्र में हम धर्मियों को एक आश्चर्य चकित दशा में पाते हैं जब प्रभु ने उन्हें वे सब भले काम याद दिलाए जो उन्होंने पृथ्वी पर रहते हुए किए थे। वे हैरान होकर कहते हैं, "प्रभु, हमने यह कब किया था?" (मत्ती 25:34-40)। जो भलाई उन्होंने की थी, वे उसके बारे में भूल चुके थे, क्योंकि उन्होंने वे काम प्रतिफल पाने की अपेक्षा से नहीं किए थे। वहाँ हम मरे हुए और जीवित कामों के बीच का फर्क साफ-साफ देख सकते हैं। अब हम यह सोचें कि हम किस श्रेणी में आते हैं?