द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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मैं तीन क्षेत्रों में कलवरी क्रूस पर हुई अलौकिक अदल बदल के विषय में आपके साथ बाँटना चाहता हूँ – यीशु हमारे लिए क्या बना और इसके परिणाम स्वरूप अब हम उसमें क्या बन सकते हैं।

1) मसीह हमारे लिए पाप बन गया कि हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ ( 2 कुरिन्थियों 5:21)
यह विश्वास द्वारा धर्मी ठहराए जाने का महिमामय सत्य है – ऐसे नम्र व दीन लोगों के लिए परमेश्वर की एक सेंतमेंत भेंट जिन्हें यह समझ आ गया है कि वे कभी परमेश्वर की धार्मिकता के स्तर तक नहीं पहुँच सकते। यीशु ने न सिर्फ़ हमारे पापों का दंड अपने ऊपर लिया, बल्कि वह वास्तव में स्वयं पाप बन गया। हम कभी पूरी तरह यह नहीं समझ पाएंगे कि यीशु के लिए वह कितना भयानक अनुभव था, क्योंकि हम पाप के साथ ऐसे ही घुले-मिले रहते हैं जैसे एक सुअर कीचड़ के साथ। एक धुंधले तौर पर ही यह जान लेने के लिए कि यीशु के लिए पाप कितना घिनौना है, यह कल्पना करें कि आप एक मल-मूत्र से भरी टंकी में कूद जाते हैं और उस मल-मूत्र की गंदगी फिर हमेशा के लिए आप का एक हिस्सा बन जाती है। इस उदाहरण में हमारे प्रति उसके प्रेम की गहराई का एक धुँधला सा चित्र हमें नज़र आ जाता है, कि जिस बात से उसे सबसे ज़्यादा घृणा है, उसके प्रेम ने उसे वहीं बना दिया कि फिर हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाए। परमेश्वर की धार्मिकता इस पृथ्वी के सबसे धर्मी मनुष्य की धार्मिकता से उतनी ही ऊँची है जितना पृथ्वी से आकाश ऊँचा है। पाप-रहित स्वर्गदूत भी परमेश्वर के मुख को नहीं देख सकते (यशायाह 6:2,3)। लेकिन हम उसे देख सकते हैं क्योंकि हम मसीह में है। जब हम पाप की भयानकता को देखते हैं, तब हम पाप से घृणा करने लगेंगे जिसने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया। और जब हम यह देखते हैं कि हम मसीह में क्या बन गए हैं, तब हम परमेश्वर द्वारा हमें पूरी तरह स्वीकार कर लिए जाने का आनंद उत्सव मनाएंगे।

2) मसीह हमारे लिए निर्धन बना कि हम धनवान बन जाएँ (2 कुरिन्थियों 8:9)
इस वचन के संदर्भ से पता चलता है कि यह भौतिक निर्धनता और भौतिक धन की बात कर रहा है। यह वचन हमें बताता है कि मसीह पहले धनवान था। “धनवान होने” का क्या अर्थ होता है? धनवान होने का मतलब बहुत पैसा और संपत्ति होना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ इतना पर्याप्त धन होना है कि हमारी सारी ज़रूरतें पूरी हो जाए और दूसरों को आशीष देने के लिए भी हमारे पास कुछ हो। और यही परमेश्वर हम सब के लिए चाहता है। प्रकाशितवाक्य 3:17 में धनवान की व्याख्या “किसी चीज़ की ज़रूरत न होने” के रूप में की गई है। परमेश्वर इस तरह से धनवान है। परमेश्वर के पास न सोना और न चाँदी, न कोई बैंक का खाता और न ही कोई बटुआ है। लेकिन उसे किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। यीशु जब पृथ्वी पर था तब वह भी इसी तरह से धनवान था। वह बच्चों और स्त्रियों के अलावा पाँच हज़ार पुरुषों को भोजन खिला सका था। आज एक धनवान व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। उसके पास कर चुकाने के लिए भी धन था। इसमें सिर्फ़ इतना फ़र्क था कि मनुष्यों को अपना कर्ज़ चुकाने के लिए बैंक में से पैसा निकालना पड़ता है, लेकिन यीशु ने उसे एक मछली के मुँह में से निकाला। उसके पास कंगालों को देने के लिए भी पर्याप्त धन था (यूहन्ना 13:29)। पृथ्वी पर वह निर्धन नहीं था, क्योंकि उसे “किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं थी”। लेकिन वह क्रूस पर निर्धन हो गया। हमने जो सबसे निर्धन भिखारी भी देखा होगा, उसके तन पर भी कम से कम एक फ़टा पुराना चिथड़ा ज़रूर होता है। यीशु के क्रुसित होने के समय उसके तन पर वह भी नहीं था। उसकी मृत्यु के समय वह वास्तव में निर्धन हो गया था। वह क्रूस पर क्यों निर्धन हो गया था? ताकि हम धनवान हो सके और हमें जीवन में कभी “किसी चीज़ की ज़रूरत न हो”। परमेश्वर ने हमें वह सब देने का वादा नहीं किया है जो हम चाहते हैं। यहाँ तक समझदार माता पिता भी अपने बच्चों को वो सब नहीं देते जो उनके बच्चे चाहते हैं। लेकिन उसने हमारी सारी ज़रूरतों को पूरा करने का वादा किया है (फिलिप्पियों 4:19)। अगर हम परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करेंगे, तो इस पृथ्वी पर हमारी ज़रूरतें पूरी करने के लिए हमारे पास हमेशा सब कुछ होगा (मत्ती 6:33, 2 पतरस 1:4)

3) मसीह हमारे लिए श्राप बना ताकि हम अब्राहम की आशीष (पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा) पा सकें (गलातियों 3:13,14)
व्यवस्था का पालन न करने के श्रापों का वर्णन व्यवस्थाविवरण 28:15-68 में किया गया है – जो कि गड़बड़ी, असाध्य रोग, महामारियाँ, लगातार असफलता, अंधापन, पागलपन, दूसरों द्वारा शोषण, बच्चों का शत्रु (शैतान) के हाथों में पड़ना, कंगाली, आदि। इनमें से कुछ भी हमारे लिए नहीं है, क्योंकि यीशु हमारे लिए श्राप बना। लेकिन यह ध्यान दे कि इसके बदले में जिस आशीष का हमसे वादा किया गया है, वह व्यवस्था की आशीष नहीं है (जिसका वर्णन व्यवस्थाविवरण 28:1-14 में किया गया है), जिसमें बहुत सा धन और अनेक बच्चों की आशीष है, बल्कि हमसे अब्राहाम की आशीष का वादा किया गया है (जिसका वर्णन उत्पत्ति 12:2,3 में किया गया है) जो मूल रूप में यह है: प्रभु हमें आशीष देता है और हमें उन सबके लिए एक आशीष बना देता है जो हमारे जीवन के मार्ग में हमें मिलते हैं। यही वह आशीष है जो पवित्र आत्मा से भरे जाने द्वारा मिलती है – हमारे भीतर से उमड़ता-छलकता जल का एक सोता जो हमें आशीष देता है (यूहन्ना 4:14), और जीवन के जल की नदियाँ जो हमारे द्वारा बहती हुई दूसरों को आशीष देती है (यूहन्ना 7:37-39)। सबसे बुरे पापी के लिए भी प्रभु की यह प्रतिज्ञा है कि “जैसे बीते समय में वह एक श्राप था, वैसे ही आने वाले दिनों में वह एक आशीष बन जाएगा” (जकर्याह 8:13 की इस अद्भुत प्रतिज्ञा को याद कर ले)।

मै यह विश्वास करता हूँ कि परमेश्वर की यह इच्छा है कि आप जहाँ भी रहते हैं वहाँ आपके संपर्क में आने वाले हर एक व्यक्ति के लिए वह आपको एक आशीष बनाए। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब आप ऐसा होने के लिए परमेश्वर में विश्वास करेंगे। यह विश्वास करें कि कोई भी श्राप का अंश आपको छू नहीं सकता। शैतान क्रूस पर हराया जा चुका है इसलिए आपके जीवन के किसी भी भाग पर उसका कोई अधिकार नहीं है। इन सत्यों का अपने मुख से अंगीकार करते रहे और अपने पूरे जीवन भर जय पाने वाले बने रहे। हमें परमेश्वर की हरेक आशीष सिर्फ़ तभी मिलती है जब वास्तव में हम उस पर विश्वास करके विश्वास के साथ उसको क़बूल करते हैं । हमें अपने मुख से अंगीकार भी करना चाहिए कि परमेश्वर का वचन सच्चा है। “क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है” (रोमियों 10:10)। इस तरह (“अपने गवाही के वचन” द्वारा) हम शैतान के दोष लगाने पर जय पाते हैं (प्रकाशितवाक्य 12:11)