द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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परमेश्वर की देह बनाने हेतु आत्मिक वरदान आवश्यक होते है। नये नियम में आत्मिक वरदानों की तीन सूचियां दी हुई है (1 कुरिन्थियों 12:8-10; रोमियों 12:6-8; इफिसियों 4:1)।

1 कुरिन्थियों 12:12-26 में आत्मिक वरदानों की तुलना शरीर के अंगों के कार्यों से की हुई है। मनुष्य जीवित होकर, अंधा, गुंगा, लंगड़ा हो सकता है। कई कलीसियाएँ ऐसी हैं। कलीसिया के सदस्यों ने नया जन्म पाया है; परन्तु, उनमें पवित्र आत्मा के वरदान न होने के कारण वे परमेश्वर की सेवकाई नहीं कर सकते क्योंकि वह सामर्थ्यहीन होते है।

आत्मिक वरदानों के कारण मसीह की देह सुन सकती है, बोल सकती है, देख सकती है तथा चल सकती है। धार्मिकता यह मसीह के देह का जीवन है। परन्तु आत्मिक वरदान न होने पर मसीह की देह क्या कर सकती है? यदि मसीह में आत्मिक वरदाने न होती तो मसीह क्या कर पाता? वह पाप पर विजय पाकर पवित्र जीवन जिया होता; परन्तु आत्मा के अभिषेक के बगैर वह प्रचार नहीं कर पाता, रोगियों को चंगा नहीं कर पाता, दुष्ट आत्माएं नहीं निकाल पाता तथा अद्भुत चमत्कार नहीं कर पाता।

तीस वर्ष की आयु में जब यीशु का अभिषेक हुआ तब वह अधिक पवित्र हुआ ऐसा नहीं। 31 वर्ष की आयु में तथा 29 वर्ष की आयु में यीशु पूर्ण रीति से पवित्र था। परन्तु जब पवित्र आत्मा का अभिषेक उसे प्राप्त हुआ तब उसे लोगों की सेवकाई करने की सामर्थ प्राप्त हुई। यदि यीशु अपना पवित्र जीवन दर्शाते हुए इधर उधर घूमता तो वह अपने पिता का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाता। केवल औरों को अपना पवित्र जीवन दिखाते हुए आज कलीसिया भी परमेश्वर का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाएगी। यीशु पवित्र था तथा उसमें आत्मिक वरदान भी थे। आज उसके देह में यह दो बातें होना आवश्यक है।

आज के मसीही समाज में दुःख की बात यह है कि कई मंडलीयाँ केवल पवित्र जीवन को महत्व देती है तो अन्य मंडलीयाँ केवल आत्मिक वरदानों को महत्व देती है। यह दोनों बाते आवश्यक है। हम किसी एक को ही नहीं चुन सकते। बाइबिल कहती है, ''तेरे वस्त्र सदा उजले रहें (हमेशा पवित्र जीवन जीना), और तेरे सिर पर तेल की घटी न हो (अभिषिक्त होकर जीना)'' (सभोपदेशक 9:8)। हमें दोनों बातों की आवश्यकता है।

आत्मिक वरदान किसी को आत्मिक नहीं बनाते। कुरिन्थ में स्थित मसीही लोगों में सभी प्रकार के आत्मिक वरदान थे (1 कुरिन्थियों 1:7)। वे सभाओं में ज्ञान का वचन सुनाते थे (यह एक आत्मिक वरदान है)। फिर भी उनमें कोई भी बुद्धिमान नहीं था (1 कुरिन्थियों 6:5)। संसारीक मनुष्य के द्वारा हमें ज्ञान का वचन प्राप्त हो सकता है; परन्तु, ज्ञान केवल आत्मिक मनुष्य में होता है। हमें परमेश्वर से ज्ञान का वचन प्राप्त हो सकता है परन्तु, ज्ञान केवल तभी प्राप्त होता है जब हम कई वर्षों तक क्रूस को उठाकर चलते है।

हम आत्मिक वरदानों का चुनाव स्वयँ नहीं कर सकते। मसीह के देह में सेवकाई करने के लिये हमें कौन से वरदानों की आवश्यकता है तथा हमारे लिये कौन से वरदान योग्य है यह परमेश्वर ही बेहतर जानता है। परन्तु हमें कहा गया है कि हम देह को बनाने वाले वरदानों की अपेक्षा करें - भविष्यद्वाणी के वरदान की अपेक्षा करे (1 कुरिन्थियों 14:1,12)।