द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   जवानी
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निर्गमन 12:40 में लिखा है कि, "मिस्र में बसे हुए इस्राएलियों को चार सौ तीस वर्ष बीत गए थे।" हालांकि जब परमेश्वर ने अब्राहम से बातचीत किया तो उससे कहा था कि तेरे वंशज पराये देश में 400 वर्ष तक रहेंगे (उत्पत्ति 15:13)। परन्तु यहाँ पर हम पढ़ते है कि वे लोग वास्तविकता में वहां 430 वर्ष तक रहे। क्या परमेश्वर ने कोई गलती किया था? नहीं। परमेश्वर समयसारिणी में एकदम सटीक है। परमेश्वर कोई गलतियां नहीं करता। जब परमेश्वर ने अब्राहम से बातचीत किया, तो उसकी सिद्ध इच्छा इस्रायलियों के लिए यह थी कि वे मिस्र में 400 वर्ष तक ही रहें। तो वे अतिरिक्त 30 वर्ष वहाँ क्यों रहे? इसके उत्तर को पाने के लिए, आइये हम एक और उदहारण को देखे। जब परमेश्वर इस्राइलियों को मिस्र से निकाल लाया तो उसकी इच्छा यह थी कि वे लोग केवल 2 वर्ष ही मरुस्थल में गुज़ारे। परन्तु वास्तविकता में उन्होंने कितने वर्ष मरुस्थल में बिताये? 40 वर्ष, देखे व्यवस्थाविवरण 2:14। परमेश्वर आपको 2 वर्षो में तोड़ने की योजना बनाता हैं। परन्तु वास्तविकता में इसमें 40 वर्ष भी लग सकते है। परमेश्वर चाहता था कि आपको आपके नया जन्म प्राप्त करने के 2 वर्ष बाद से ही इस्तेमाल करना आरम्भ कर दे। परन्तु शायद वह आपको 40 वर्षों तक इस्तेमाल न कर सके। यह सब इस बात पर निर्भर करता है, कि आप कितने जल्दी टूटते है। वैसे ही, परमेश्वर की योजना इस्राएल के लिए यह थी, कि वे 400 वर्ष तक मिस्र में रहते। परन्तु उन्हें 430 वर्षों तक मिस्र में रहना पड़ा।

मेरा मानना है कि उनका अगुवा मूसा तैयार नहीं था। मैं सोचता हूँ कि मूसा ने जब 40 साल की उम्र में मिस्र छोड़ा था, तो परमेश्वर ने जंगल में मूसा को उसके ससुर के घर में 10 साल की अवधि में तोड़ना चाहा था, कि वह 50 साल की उम्र में इस्राएल के अगुवे के रूप में तैयार हो जाए। लेकिन मूसा को पर्याप्त रूप में तोड़ने के लिए उसके ससुर को उसे और नम्र व दीन करने की जरूरत पड़ी थी। उस 10 वर्ष के प्रशिक्षण को पूरा करने में मूसा को 40 साल लग गए। इसलिए इस्राइलियों को 30 साल तक और इंतजार करना पड़ा था। पृथ्वी पर अपने काम के लिए परमेश्वर को टूटे हुए मनुष्यों की जरूरत होती है। इसमें हमारे लिए एक संदेश है, और एक चेतावनी है। परमेश्वर के पास आपके जीवन के लिए एक योजना हो सकती है। लेकिन जब तक आप टूटेंगे नहीं वह कभी पूरी नहीं होगी। उसने आपके अन्दर जो 10 साल में करना चाहा है उसमें 40 साल लग सकते हैं। इसलिए, परमेश्वर के सामथी हाथ के नीचे जल्दी-से-जल्दी दीन हो जाना अच्छा है - ये वे हालात होते हैं जो परमेश्वर हमारी ओर भेजता हैं।

विलापगीत 3:27 कहता है: “मनुष्य के लिए यह भला है कि वह अपनी जवानी में जुआ उठाए (दीन हो और तोड़ा जाए)।" जब आप जवान हों, तभी परमेश्वर को यह अनुमति दें कि वह आपको तोड़ सके। उन परिस्थितियों का विरोध न करें जिन्हें परमेश्वर आपके जीवन में होने देता है, क्योंकि इससे सिर्फ परमेश्वर की योजना में विलम्ब ही होगा। आपका बाइबल का सारा ज्ञान, आपकी संगीत की प्रतिभा, और आपका सारा धन भी आपको परमेश्वर की सेवा के योग्य नहीं बना सकते। टूटापन होना अनिवार्य है। याकूब सिर्फ तभी इस्राएल बन सका जब वह टूटा। मूसा भी सिर्फ तभी एक अगुवा और भविष्यद्वक्ता बन सका जब वह टूटा। निर्गमन अध्याय 2 में, हम उस समय के विषय में पढ़ते हैं, जब मूसा इस्राएलियों को मिस्रियों से छुड़ाने के लिए गया। उसने एक मिस्री को एक इब्रानी को मारते हुए देखा (निर्गमन 2:11), और उसने उस मिस्री को मार डाला। आप समझ सकते हैं कि मूसा कितना शक्तिशाली रहा होगा कि उसने सिर्फ अपने हाथों से ही एक व्यक्ति को मार डाला। अगर वह इस तरह से मिस्रयों को मारने निकल पड़ता - उन्हें एक एक कर मारता - तो लाखों मिस्रियों को मारने में उसे कितने साल लग जाते? उन्हें मारने से पहले मूसा खुद ही मर जाता। लेकिन जब परमेश्वर ने उसे 80 साल की उम्र में तोड़ा, तब मूसा को सिर्फ लाल समुद्र की ओर अपनी लाठी को घुमाना पड़ा था और पूरी मिस्री सेना लाल समुद्र में दफन हो गई थी। यही वह फर्क है जो एक मनुष्य द्वारा उसकी अपनी ताकत से करने और एक टूटे हुए मनुष्य द्वारा परमेश्वर की ताकत से करने में है।

पवित्र-शास्त्र में शुरू से ही यह संदेश है: अगर आप यरूशलेम का, सच्ची कलीसिया का निर्माण करना चाहते हैं तो आपको टूटना होगा। परमेश्वर को हालातों और लोगों द्वारा आपको नम्र व दीन करना पड़ता है। अगर आप उन हालातों में विद्रोह नहीं करेंगे, तो परमेश्वर शीघ्रता से आपके जीवन में काम कर सकता है। मैंने ऐसे बहुत से उत्साही युवा देखें हैं जिनके मस्तिष्क में बाइबल का ज्ञान रहता है, और वे यह मान लेते हैं कि वे परमेश्वर की सेवा के लिए तैयार हैं। वे अपनी ताकत में परमेश्वर की सेवा करने निकल जाते हैं। बीस या तीस साल बाद वे झुंझलाहट, हताशा, और आलोचना से भर जाते हैं और अपनी निष्फलताओं के लिए कभी इस व्यक्ति को तो कभी उस व्यक्ति को दोषी ठहराने लगते हैं। वे कुछ हासिल नहीं कर पाते और अपने जीवन को बर्बाद कर लेते हैं। ऐसा क्यों हुआ? इसका सिर्फ एक ही कारण है: उन्होंने परमेश्वर को कभी उन्हें तोड़ने की अनुमति नहीं दी थी।

बाइबल कहती है कि, “भक्तिमय मनुष्य का जीवन रोमांचक होता हैं” (नीतिवचन 14:14, द लिविग बाइबिल)। इस समय मैं 79 साल का हूँ, और मैं 59 वर्षों से परमेश्वर की संतान के रूप में रहा हूँ, और में ईमानदारी से यह साक्षी दे सकता हूँ कि मेरा मसीही जीवन बहुत रोमांचक रहा है। मैं बहुत सी परीक्षाओं में से गुज़रा हूँ, लेकिन उन सब में मैंने रोमांचकारी तरीकों से परमेश्वर का अनुभव पाया है। मैं परमेश्वर के लिए जीने में और उसकी सेवा करने में बहुत रोमांचकता महसूस करता हूँ। इस संसार में प्रभु की सेवा करना सबसे अच्छा काम है। मुझे पूरे जगत में किसी से कोई शिकायत नहीं है। आज तक कोई भी मेरा किसी प्रकार से नुकसान नहीं कर सका है। बहुत से लोगों ने मुझे नुकसान पहुँचाने की कोशिश की है, और मेरे कुछ सह-कर्मियों ने भी मेरे साथ विश्वासघात किया है। लेकिन उन्होंने मेरे साथ जो कुछ किया है, उसने मेरी भलाई के लिए ही काम किया है - जैसा रोमियों 8:28 में कहा गया है। इसलिए मैं परमेश्वर का धन्यवाद ही करता हूँ, क्योंकि परमेश्वर ने उनके बुरे कामों को मुझे और ज्यादा मसीह के समान बनाने के लिए इस्तेमाल किया - यह वह भलाई है जो उनके बुरे कामों में से पैदा हुई। परमेश्वर ने मेरी युवावस्था में ही मुझे तोड़ा था, और वह आज भी मुझे तोड़ रहा है। यह फलवंत होने का तरीका है। हम जितना ज्यादा टूटते हैं, परमेश्वर हमें उतना ही ज्यादा दूसरों के लिए एक आशिष बनने के लिए इस्तेमाल करता है।

निर्गमन 17 अध्याय में हम पढते हैं कि जब चट्टान को मारा गया, तब उसमें से जलधाराएँ बह निकलीं। अगर चट्टान को मारा नहीं जाएगा तो पानी नहीं निकलेगा। जब उस स्त्री ने संगमरमर के पात्र को यीशु के चरणों में लाकर तोड़ा था, तब जटामासी की सुगंध सारे घर में फैली थी। जब तक वह पात्र तोड़ा नहीं गया था, तब तक कोई सुगंध नहीं थी। जब यीशु ने रोटी लेकर उसे आशिष दी, तब कुछ नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही उसने उसे तोड़ा, तो पाँच हजार लोग खाकर तप्त हुए। इन सभी उदाहरणों में से हमें क्या संदेश मिलता है? यही कि टूटापन आशिष का स्रोत है! अणु के टूटने से कैसी शक्ति प्रवाहित होती है! वह एक पूरे शहर को बिजली दे सकता है! कल्पना करें कि एक छोटे से अणु के टूटने पर कैसी शक्ति निकलती है - जो इतना छोटा होता है कि सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी नजर नहीं आता। बाइबल और प्रकृति में से एक यही संदेश मिलता है: परमेश्वर की सामर्थ्य टुटेपन में से निकलती है। काश ऐसा हो कि ये संदेश आपके जीवन को जकड़ ले। परमेश्वर ने 1963 में मुझे इस संदेश के द्वारा तब जकड़ा था जब मैं पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा पाने और सेवकाई के लिए सामर्थ्य पाने के लिए परमेश्वर को खोज रहा था। परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि टुटेपन का मार्ग ही सामर्थ्य पाने का मार्ग है। और मैं यह बात अपने जीवन में कभी भूलना नहीं चाहता। में आपको उत्साहित करना चाहता हूँ कि आप अपनी युवावस्था में ही इस पाठ को सीख लों।