द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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यहेजकेल 36:25-37 में नई वाचा के जीवन की एक सुंदर भविष्यद्वाणी है। परमेश्वर की दृष्टि से मसीही जीवन कैसा होना चाहिए इसका यह वर्णन है। वह सर्वप्रथम हमें पूर्ण रूप से शुद्ध करने की प्रतिज्ञा करता है, हमारे हृदयों से सारी मूर्तियों को हटाता है, फिर हमारे कठोर हृदय को दूर करता है और उसके बदले में कोमल हृदय देता है। उसके बाद अपना आत्मा हम में डालता है और फिर हमें अपने मार्गों में चलाता है और हमें सर्वप्रकार की अशुद्धता से बचाने के लिए उसकी आज्ञाओं पर चलने की आज्ञा देता है (यहेजकेल 36:25-29)। परंतु यह सबकुछ केवल तब हो सकता है जब हम प्रार्थना करते हैं और उसे हमारे लिए करने के लिए कहते हैं (यहेजकेल 36:37)। यदि हम इस जीवन को न मांगे, तो वह हमें नहीं मिलेगा। और जब हम इस महिमामय जीवन में प्रवेश करेंगे, तब ''हम अपने आपसे घृणा करेंगे'' (यहेजकेल 36:31), जब हम अपने जीवन के विषय में सोचेंगे। पवित्र आत्मा से परिपूर्ण व्यक्ति का यह चिन्ह है कि वह उसके शरीर में रहने वाले सब प्रकार के पापों के लिए खुद से घृणा करता है और यह कहकर पुकारता है, ''हाय मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं; मैं सबसे बड़ा पापी हूं'' (रोमियों 7, 1 तीमु. 1:15)।

पवित्र आत्मा से भरा हुआ व्यक्ति दूसरों में कोई पाप नहीं देखता। पहले वह खुद के जीवन में पाप देखता है और फिर वह खुद से घृणा करता है। जितना अधिक हम परमेश्वर के निकट आते हैं, उतने अधिक हम अपने विषय में सचेत हो जाते हैं। परमेश्वर यहेजकेल को सूखी हड्डी की तराई में ले गया और उसने उसे बताया कि सबसे पहले वह उन हड्डियों से भविष्यद्वाणी करे (यहेजकेल 37)। परमेश्वर के वचन ने जाकर हड्डियों को इकट्ठा किया और मांस ने उन्हें ढांप दिया। परंतु उन्हें परमेश्वर के वचन से अधिक कुछ चाहिए था - उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ की भी ज़रूरत थी, जैसा कि हम उत्पत्ति 1 में देखते हैं। यहां पर हम देखते हैं कि यह परमेश्वर के वचन का और पवित्र आत्मा का एकत्र कार्य था जो मृत्यु में से जीवन ले आया। यहां पर भी वही है और आज भी यही है।जब पवित्र आत्मा इन मरे हुए शरीरों पर आया, तब वे खड़े हो गए और तुरंत प्रभु के लिए एक सामर्थी सेना तेयार हो गई। परमेश्वर आज कलीसिया में क्या करना चाहता है इसका यह चित्र है। कई मसीही लोग आरम्भ में इन सूखी हड्डियों के समान मृत थे, भले ही उनके सभी सिद्धांत सही थे। जब उन्होंने परमेश्वर के वचन के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब वे मसीही विश्वासियों के रूप में इकट्ठा होने लगे (हड्डी से हड्डी जुड़ गई) और वे उत्तम जीवन व्यतीत करने लगे (जब मांस हड्डियों को ढांप लेता है तब उसमें सुंदरता आती है)। परंतु यदि ये मसीही विश्वासी परमेश्वर के लिए सामर्थी सेना बनना चाहते हैं, तो उन्हें एक और बात की ज़रूरत है। उन्हें पवित्र आत्मा की अलौकिक सामर्थ को प्राप्त करने की ज़रूरत है।

यहां पर नई वाचा के जीवन का और यहेजकेल 40-48 में कलीसिया का भी चित्र है। इसे चित्र रूप में मंदिर के रूप में वर्णन किया गया है। हमारा शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है (1 कुरिं. 6:19) और कलीसिया परमेश्वर का मंदिर भी है (1 कुरिं. 3:16)। यहेजकेल 43 में, हम परमेश्वर की महिमा के विषय में पढ़ते हैं जो मंदिर को छोड़कर चली गई और वह नये मंदिर में लौट गई - नई वाचा की कलीसिया जो पिन्तेकुस्त के दिन से स्थापन की गई। परमेश्वर इस कलीसिया को ''मेरे सिंहासन का स्थान'' (यहेजकेल 43:7) कहता है। इस नई वाचा की कलीसिया का वर्णन इस प्रकार किया गया हैः ''यह संपूर्ण भाग परम पवित्र होगा'' (यहेजकेल 43:12)। पुरानी वाचा के मंदिर में, उसके पश्चिम छोर पर एक छोटा सा कमरा था जिसे ''महापवित्र स्थान'' कहा जाता था - जहां पर परमेश्वर का वास था। परंतु इस नई वाचा की कलीसिया में संपूर्ण कलीसिया (मंदिर) महापवित्र स्थान है। कलीसिया को आज परमेश्वर के मंदिर के रूप में बनाने के लिए, हमें इस मूल व्यवस्था का अनुसरण करना है - उसके हर सदस्य के लिए संपूर्ण पवित्रता। पाप को किसी तरह से किसी में भी सहन नहीं करना चाहिए।

परमेश्वर अपने मंदिर में दो तरह के सेवकों के विषय में कहता है - यहेजकेल 44:9-19 में वर्णित सादोक के पुत्र लैवी के पुत्र। सादोक के पुत्र मसीह के पीछे संपूर्ण हृदय से चलने वाले शिष्यों का प्रतीक है जिन्हें ''उसकी सेवा करने की'' अनुमति दी गई है। लेवी उन समझौता करने वाले लोगों का प्रतीक है, जिन्हें केवल ''लोगों की सेवा करने'' की अनुमति है। इन दो प्रकार की सेवाओं में भारी अंतर है। यीशु ने मुख्य रूप से कभी लोगों की सेवा नहीं की। उसकी संपूर्ण सेवा केवल परमेश्वर के लिए थी, उस समय भी जब वह लोगों की सेवा करता था - और हमें भी परमेश्वर की सेवा इसी तरह करनी चाहिए। जब हम लोगों की सेवा करने लगते हैं तब समझौता करने की और लोगों को प्रसन्न करने की परीक्षा हमारे सामने आती है। इस पवित्र मंदिर से (पवित्र आत्मा से परिपूर्ण कलीसिया या पवित्र आत्मा से परिपूर्ण व्यक्ति) पानी की बूंदें झरने लगती है और एक नदी बन जाती है और अंत में कई नदियां बनती हैं (यहेजकेल 47)। इसी अनुच्छेद का उल्लेख यीशु ने यूहन्ना 7:37-39 में किया, जहां पर उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण व्यक्ति में से ''जीवन जल की नदियां बहने" का वर्णन किया है। पिन्तेकुस्त के दिन की शुरूवात यहीं से शुरू हुई और वह उस समय से धर्मी पुरुष और स्त्रियों में से बह रहा है। इस जीवन का आरम्भ एक छोटी सी बूंद से होता है और वह अंत में वह एक बड़ी नदी और कई नदियां बन जाती हैं।

यहेजकेल 47:3-6 में प्रभु ने यहेजकेल को पवित्र आत्मा से परिपूर्ण जीवन जीने का एक छोटा सा स्वाद चखाया। वह धीरे धीरे यहेजकेल को इस नदी में ले गया। पांच सौ मीटर चलने के बाद, पानी यहेजकेल के टखनों तब आया और पांच सौ मीटर चलने के बाद, पानी उसके घुटनों तक आया और पांच सौ मीटर चलने के बाद पानी उसकी कमर तब आया, और पांच सौ मीटर चलने के बाद, पानी इतना गहरा हो गया कि यहेजकेल को ज़मीन पर से अपने पांवों को ऊपर उठाना पड़ा और नदी के प्रवाह में बहते रहना पड़ा। हम यहेजकेल के समान परमेश्वर के साथ अपनी चाल में आगे बढ़ सकते हैं। या हम किसी स्थान में रूक सकते हैं। हम जहां तक जाना चाहते हैं, उससे आगे जाने के लिए परमेश्वर कभी हमें मज़बूर नहीं करेगा। जब एलीशा एलिय्याह के पीछे चला (2 राजा 2), उसने लगातार यह देखने के लिए एलीशा की परीक्षा की कि वह और पाने के लिए भूखा है या जो कुछ उसके पास पहले से है, उससे वह संतुष्ट है। परंतु एलीशा को जब तक परमेश्वर की उत्तम आशीष नहीं मिली, तब तक वह संतुष्ट नहीं हुआ, इस कारण उसके जीवन पर दुगुना अनुग्रह प्राप्त हुआ।

इसी तरह हम यहां पर यहेजकेल की भी परीक्षा देखते हैं। वह भी नदी में और आगे प्रवेश करना चाहता था, जब तक कि वह तैरने न लगे। आप अपने जीवन में एक प्रमाण में पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करने के बाद एक ऐसे स्थान में आकर रूक सकते हैं जो परमेश्वर के उत्तम से कम है। यह भी देखें: जब पानी यहेजकेल के टखनों तक आया, या घुटनों तक आया, या कमर तब आया, उसके कदम ज़मीन पर ही थे। जब हमारे कदम धरती से ऊपर उठा लिए जाते हैं, तब हम जानते हैं कि हम वास्तव में आत्मा से भर गए हैं। इस क्षण हम "पृथ्वी और पृथ्वी की बातों से और भौतिक वस्तुओं के लगाव से दूर हो जाते हैं" और हम "परमेश्वर की इच्छा से, आत्मा के चलाए चलते हैं, और अपनी इच्छा से नहीं।" यहेजकेल 48:35 का अंतिम पद इस नई वाचा की कलीसिया के नये नाम का उल्लेख करता है, "प्रभु वहां है" - यहोवा शाम्मा। यह कलीसिया है जिसे बनाने के लिए आपको और मुझको बुलाया गया है - जब लोग जान लेते हैं कि प्रभु अपनी सारी महिमा में वहां हमारे मध्य में है। परंतु इसे बनाने के लिए, परमेश्वर को यहेजकेल के समान लोगों की आवश्यकता है जो पूर्ण रूप से आज्ञा का पालन करे।