एक कलीसिया के रूप में जब हमने सबसे पहले सहभागिता करना शुरु किया था, तब हमें जय के बारे में कुछ मालूम नहीं था न तो अपने व्यक्तिगत जीवन में, और न ही अपने पारिवारिक जीवन में। जब हम दूसरे विश्वासियों को देखते थे, तो उनकी दशा भी हमें अपनी दशा जैसी ही नज़र आती थी। इसलिए हम उनसे मदद पाने की कोई आशा नहीं कर सकते थे। इसलिए एक कलीसिया के रूप में हम अक्सर प्रार्थना और उपवास करते हुए परमेश्वर से इसका जवाब माँगते रहते थे। हमने अधिकांश सार्वजनिक छुट्टियाँ उपवास और प्रार्थना में बिताईं। धीरे-धीरे परमेश्वर ने उसके वचन में से हम पर नई वाचा के ऐसे सत्य प्रकट करने शुरु कर दिए जो हमने पहले कभी नहीं जाने थे। जैसे-जैसे हमें ये सत्य समझ आने शुरु हुए, हम आज़ाद होते चले गए और धीरे-धीरे हमारे जीवन और हमारे घर बदलते चले गए।
तब मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इन सत्यों का प्रचार दूसरों को भी करूँ। मैंने यह स्पष्ट रूप में जान लिया कि परमेश्वर बाइबल के इन सत्यों पर ज़ोर देने के लिए मुझे बुला रहा था क्योंकि इनके बारे में दूसरे मसीही प्रचार नहीं कर रहे थे। तब मैंने ध्यान देकर यह सुनना शुरु किया कि मेरे आसपास के मसीही क्या प्रचार कर रहे थे। इस तरह मैंने उन बातों को जाना जिन पर अपनी शिक्षा की सेवकाई में मुझे ज़ोर देना था।
सम्पूर्ण सुसमाचारः
मैंने कुछ प्रचारकों को "सम्पूर्ण सुसमाचार" अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते सुना। लेकिन जब मैंने उनकी शिक्षा की तुलना पवित्र शास्त्र से की तो मैंने पाया कि निश्चय ही वे पूरा सुसमाचार नहीं सुना रहे थे। इब्रानियों 4 में पवित्र-आत्मा "सुसमाचार" का वर्णन (पद 2) सिर्फ "मिस्र में से बाहर आने" के रूप में ही नहीं बल्कि "कनान में प्रवेश करने" के रूप में करता है। मैंने यह भी पढ़ा कि परमेश्वर के लोगों को "विश्राम के दिन" की जय में प्रवेश करना था। (पद 9)। इस तरह मैंने देखों कि पापों की क्षमा का सुसमाचार एक अधूरा सुसमाचार है। पूर्ण सुसमाचार में पाप पर जय पाना (हमारे पापमय शरीर में मौजूद भीमकाय लालसाओं को घात करना) शामिल है। जैसे-जैसे यह जीवन मेरे लिए एक वास्तविकता बनने लगा, मैं पूरे सुसमाचार का प्रचार करने लगा।
मन-फिरावः
ज़्यादातर सुसमाचार प्रचारक पापों की क्षमा के लिए सिर्फ मसीह में विश्वास का प्रचार कर रहे थे। पापों से मन फिराने का प्रचार शायद ही कहीं हो रहा था। और जहाँ मन-फिराव का ज़िक्र किया जा रहा था, वहाँ स्वार्थ, स्व-केन्द्रीयता, और अपनी मनमानी करने को एक स्पष्ट रूप में पाप के मूल के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा रहा था। इसलिए लोगों को यह मालूम नहीं था कि उन्हें किस बात से घृणा करनी है और किस बात से उनका मन फिराना है। मैंने यह देखा कि मेरी यह बुलाहट थी कि मैं पाप के मूल की ऐसी स्पष्ट व्याख्या करूँ कि सब यह जान लें कि वह क्या है जिससे उन्हें मन फिराना है।
शिष्यताः
हृदय परिवर्तन किए हुए ज़्यादातर लोगों को यही सिखाया नहीं जा रहा था कि उन्हें यीशु का शिष्य भी बनना था। शिष्य बनने की तीन शर्ते (जो यीशु ने तय की थीं) एक सही रूप में नहीं बताई जा रही थीं।
1. यीशु को सबसे बढ़कर प्रेम करना;
2. प्रतिदिन अपनी सूली उठाना (अपनी खुदी में मरना); और
3. अपने स्वामित्व की हरेक वस्तु को त्याग देना (भौतिक वस्तुओं से जुड़े न रहना) (लूका 14:26-33)।
इसलिए मैंने अपने प्रचार में इन बातों पर ज़ोर देना शुरु कर दिया।
पवित्र-आत्मा में बपतिस्माः
पवित्र-आत्मा में बपतिस्मा देने के बारे में सिखाने वाला लगभग हरेक समूह यह सिखाता था कि "अन्य-भाषा में बोलना" इसका प्राथमिक चिन्ह है। लेकिन मैंने यह देखा कि यह सिखाने वाले ज़्यादातर लोग सांसारिक मनोभाव वाले और धन से प्रेम करने वाले लोग थे। इसके विपरीत छोर पर, ऐसे विश्वासी थे जो यह मानते थे कि अन्य-भाषा की सारी बोली शैतान की तरफ से थी। लेकिन यीशु ने यह सिखाया था कि पवित्र आत्मा में बपतिस्मे का चिन्ह सामर्थ्य होगा - सिर्फ साक्षी देने की सामर्थ्य नहीं (हमारे बोलने द्वारा), बल्कि साक्षी होने की सामर्थ्य (हमारे जीवन द्वारा) (प्रेरितों. 1:8)। इसलिए, मैंने इसका प्रचार किया। अन्य भाषा में बोलना पवित्र-आत्मा दिया गया सिर्फ एक दान था जो उसने कुछ लोगों को ही दिया था। इस मुद्दे पर मेरे इस विचार की वजह से "पैन्टेकॉस्टल" भाइयों ने मुझे "ब्रेदरैन" घोषित कर दिया, और "ब्रेदरैन” भाइयों ने मुझे "पैन्टेकॉस्टल" घोषित कर दिया! मैं खुश था कि मैं इन दोनों अतिवादी मतों से एक बराबर की दूरी पर था।
(आगे जारी रहेगा …)