द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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एक ईश्वरीय जीवन जीने का रहस्य प्रभु यीशु मसीह में है जो इस संसार मे मनुष्य बन कर रहा और वह हर प्रकार से हमारे समान परीक्षण मे पडा, लेकिन कभी भी एक बार भी विचार, शब्द, कार्य, स्वभाव में या अन्य तरीके से पाप नहीं किया (1 तिमुथियुस 3:16, इब्रानीयों 4:15)

याकूब 1:14, 15 स्पष्ट करता है कि परीक्षा में पडना पाप नहीं है, हमारे मन को पाप करने से पहले परीक्षण को स्वीकृति देनी होती है। मत्ती 4 से स्पष्ट होता है कि यीशु भी परीक्षा मे पडा परन्तु उसके मन ने एक बार भी कभी परीक्षण को स्वीकृति नहीं दी, इस प्रकार उसने कभी भी पाप नहीं किया और उसने अपने ह्दय को शुध्द रखा।

यीशु हमारे ही समान हर परीक्षाओं मे पडा। परंतु वह हमेशा एक ही प्रकार के पाप से लगातार लडता नहीं रहा। यदि यीशु हमारे समान परीक्षा में पड़ा, तो वह अवश्य ही हमारे समान यौन परीक्षा में भी पड़ा होगा। परंतु अपनी संपूर्ण विश्वासयोग्यता के द्वारा उसने यौन परीक्षाओ पर अपनी किशोर अवस्था में ही जय पाई होगी। और परिणाम स्वरूप जब उसने अपनी सार्वजनिक सेवकाई में प्रवेश किया तो इस क्षेत्र में परीक्षा में नहीं पड़ा। स्त्रियाँ उसके पैरों को पोछ सकती थी और उससे वह परीक्षा में नहीं पड़ा। जो लोग इस क्षेत्र में परीक्षा के खिलाफ अपनी लड़ाई में विश्वासयोग्य नहीं हैं वे इस सच्चाई को नहीं समझ सकते हैं।

परीक्षा के विद्यालय में अन्य विद्यालयओं की तरह हम सब को बालवाड़ी (किंडर-गार्टन) से प्रारंभ करना होता हैं। हमारे प्रभु को भी सबसे पहले प्राथमिक परीक्षाओं से ही लुभाया गया होगा। लेकिन उसने कभी भी प्रत्येक कक्षा में आवश्यक न्यूनतम समय से अधिक समय नहीं बिताया। 33 वर्ष की आयु मे जब वह क्रूस पर मरा तो वह कह सकता था, "पूरा हुआ"। हर एक परीक्षा पर विजय प्राप्त कर ली गई थी। विधालय में हर एक परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की गई थी। वह सिद्ध बना दिया गया था। एक मनुष्य के रूप में उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई थी (इब्रानियों 5: 8,9)

एक ऐसे व्यक्ति का, जो बालवाड़ी (किंडर-गार्टन) वर्ग की परीक्षाओं के मामले में अविश्वासयोग्य है (जैसे यौन संबन्धित गंदे विचार, क्रोध, झूठ आदि), यह कोशिश करना और समझना कि यीशु ने पी.एच.डी. (डॉक्टरेट की उपाधि) में किन परीक्षाओं का सामना किया, उपहास्य और अभिमानी दोनों है। यदि आप स्वयं विश्वासयोग्य हैं, तो आप समझेंगे (यही यीशु ने यूहन्ना 7:17 में स्पष्ट रूप से कहा है)। यदि आप परीक्षाओं के क्षणों में अविश्वासयोग्य हैं, तो आप कभी नहीं समझ पाएंगे, चाहे आप कितनी भी किताबें पढ़ें या टेप सुने। परमेश्वर के रहस्यों को टेप के माध्यम से या किताबों से नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर के मुख से उसके वचन के माध्यम से सुना जाता है।

यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है कि हम एक ही प्रकार के पाप के साथ जीवनभर संघर्ष करते रहें। परमेश्वर चाहता है कि कनान के हर दैत्य मार डाले जाएँ। शारीरिक और आत्मिक उन्नति के हमारे हर पग में नयी-नयी तरह से परीक्षा होती हैं। एक चार वर्ष का बच्चा क्रोध की परीक्षा मे पडता हैं न कि यौन परीक्षा में। यौन परीक्षा बाद में अर्थात किशोर अवस्था में आती हैं। परमेश्वर नहीं चाहता की सालो-साल एक व्यक्ति यौन परीक्षण में हारता रहें, यह आशा रखते हुए कि कभी तो वह विजयी होगा। वह पूरी तरह से जय प्राप्त कर सकता है यदि वह सम्पूर्ण हृदय से समर्पित हो।

जब शैतान ने जंगल में चालीस दिनों तक यीशु को कठिन परीक्षा में डाला तो वह अच्छी तरह जानता था कि पैसे और यौन के क्षेत्र में उसकी परीक्षा लेना व्यर्थ है क्योंकि यीशु ने कई वर्ष पहले ही उन क्षेत्रो पर बहुत अच्छी तरह से विजय प्राप्त कर लिया था। जंगल में अंतिम तीन परीक्षाएँ इतने उच्च क्रम की परीक्षाएँ थी कि हम उनके सूक्ष्म उलझाव को केवल तभी समझ सकते हैं जब हम स्वयं यीशु की तरह चलने में विश्वासयोग्य रहेंगे।

सुसमाचार की खुशखबरी यह है कि क्योंकि यीशु एक मनुष्य बना और सभी क्षेत्रों में हमारी तरह परीक्षा में पड़ा और जयवंत हुआ, इसलिए हम भी जय पा सकते है जैसे उसने जय पाई (प्रकाशितवाक्य 3:21)