द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मसीह के प्रति समर्पण
WFTW Body: 

प्रकाशितवाक्यउत्पनि 1:9-10 मे यूहन्ना स्वयँ को "उस क्लेश का सहभागी बताता है जो मसीह में है।" हर एक समर्पित विश्वास को जब तक वह इस संसार में है चाहिये कि वह उस क्लेश का सहभागी होने के लिये तैयार रहना चाहिये जो मसीह यीशु में है। यूहन्ना को यह प्रगटीकरण वैभवपूर्ण जीवन में नहीं मिला। यह प्रगटीकरण उसे पतमुस में क्लेश भोगते समय मिला क्योंकि वह "परमेश्वर के वचन और यीशु की गवाही" के विषय विश्वासयोग्य था। (प्रकाशितवाक्य 1:9)। अंतिम दिनों में ख्रीष्ट विरोधी द्वारा संतों को दिये जाने वाले क्लेश के विषय लिखने हेतु उसे पहले स्वयँ को क्लेश का अनुभव करना पड़ा। जो क्लेश से गुजर रहे हैं उनकी सेवकाई करने के लिये परमेश्वर पहले हमें परीक्षाओं और क्लेशों से गुजरने देता है। पौलुस ने कहा, ''वह हमारे सब क्लेशों में शांति देता है; ताकि हम उस शांति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शांति दे सकें जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।'' (2 कुरि 1:4)।

19 वी शताब्दी के मध्य में पहली बार इंग्लैंड में यह सिद्धांत बताया गया कि मसीह की कलीसिया को बड़े क्लेश के काल के पूर्व उठा लिया जाएगा। इस सिद्धांत का फैलाव हुआ इसमें आश्चर्य नहीं। इंग्लैंड में विश्वासियों के विश्वास के कारण उन्हें कोई सताव नही हो रहा था। आज यही सिद्धांत उन्हीं मसीहियों के द्वारा घोषित किया जा रहा है और विश्वास किया जा रहा है जो उन देशों में चैन से रहते हैं जहाँ मसिहियों को बिलकुल भी कोई सताव नहीं है। चूँकि अधिकांश मसीहियों की प्रार्थना इस प्रकार की होती है : "प्रभु संसार में मेरे जीवन को ज्यादा आरामदेह बना दे", इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने क्लेश से पूर्व कलीसिया के उठा लिये जाने के सिद्धांत की शिक्षा को खुशी खुशी स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार शैतान कई मसीहियों को झूठे शांति से सुला देने में सफल हुआ है ताकि जब महाक्लेश उन पर आए तो वे उसके लिये तैयार न रहें। यीशु के शब्द स्पष्ट हैं : ''संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परंतु, ढाढ स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है'' (यूहन्ना 16:33)। उसने कभी यह प्रतिज्ञा नहीं किया कि हम क्लेश से बच जाएँगे - चाहे क्लेश छोटे हों या बड़ें। परंतु उसने कहा कि हम भी उसके समान क्लेश पर विजय पाएँगे। वह हमें क्लेश से बचाने की बजाय चाहता है कि हम क्लेश पर विजय पाएँ क्योंकि वह हमारे सुरक्षा से ज्यादा हमारे चरित्र में ज्यादा रूचि रखता है। यीशु ने यह नहीं कहा कि महाक्लेश से बचना विश्वासयोग्यता का प्रतिफल है जैसा कुछ लोग सिखाते हैं। इसके विपरीत उसने कहा कि जिन्होंने उसके पीछे चलने के लिये सब कुछ छोड दिया उन्हें अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा क्लेश उठाना पडे गा जो उसके पीछे नही चलतॆ (मरकुस 10:30)। जब उसने पिता से अपने चेलों के लिये प्रार्थना किया, उसने कहा, ''मैं यह विनती नहीं करता कि तू उन्हें जगत से उठा ले; परंतु, यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख'' (यूहन्ना 17:15)। वह इसलिये उनका संसार से उठाया जाना नहीं चाहता था कि वे क्लेश से गुजरने वाले थे।

3 री शताब्दी में जब मसीहियों को रोमी रंगभूमी में सिंहों के सामने फेंका जाता था और रोमी साम्राज्य के विभिन्न भागों में जलाया जाता था, प्रभु ने उन्हें ऐसे क्लेशों से नहीं बचाया। वह परमेश्वर जिसने सिंहो का मुँह बंद कर दिया था, और दानिएल के दिनों में आग की भट्टी की ताकत को खत्म कर दिया था, उसने यीशु के चेलों के लिये ऐसे चमत्कार नहीं किया - क्योंकि वे नई वाचा के मसीही थे जो मृत्यु के द्वारा परमेश्वर की महिमा करने वाले थे। उनके स्वामी यीशु के समान उन्होंने भी न आशा किया और न ही शत्रु से उनकी रक्षा के लिये स्वर्ग से स्वर्गदूतों की अपेक्षा की।

स्वर्ग से परमेश्वर ने उसके पुत्र की दुल्हिन को सिंहों द्वारा फाड़े जाते और आग में जलाते हुए देखा था, और उनकी गवाही से उसकी महिमा हुई थी - क्योंकि वे ''जहाँ मेम्ना जाता था उसके पीछे चलते थे॥'', यहाँ तक कि हिंसक शारीरिक मृत्यु तक भी (प्रकाशितवाक्य 14:4)। एक ही बात जो प्रभु ने उनसे कहा था वह थी, ''प्राण देने तक विश्वासयोग्य रह तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूँगा'' (प्रकाशितवाक्य 2:10) यहाँ तक कि आज भी जब यीशु के शिष्यों को कई देशों में सताया और यातना दिया जाता है, प्रभु उन्हें संसार से उठा नहीं लेता और न ही वह हमें महाक्लेश के पहले स्वर्ग में उठाएगा। वह इससे भी बेहतर कुछ करेगा। वह हमें महाक्लेश में भी विजयी बनाएगा। यीशु हमें क्लेश की बजाय दुष्ट से बचाने में ज्यादा रूचि रखता है। वह हमें क्लेश से गुजरने देता है क्योंकि वह जानता है कि वही एक मार्ग है जिससे हम आत्मिक रीति से मज़बूत बन सकते है। यह संदेश उन आराम-प्रेमी मसीहियों के लिये अनोखा है जिन्होंने वर्षों से हर रविवार को चर्च की बेंच पर बैठकर कान खुजाने वाले प्रचारकों को सुनने का अभ्यास कर रखा है। परंतु यह वही संदेश है जो प्रेरितों ने आरंभिक कलीसिया को प्रचार किया था। ''वे (प्रेरित पौलुस और बरनबास) चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, हमें बड़ें क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा'' (प्रेरितों के काम 14:22)। हम अपने घर और कार्य क्षेत्र में जो थोड़ी परीक्षा का सामना करते हैं, वे आने वाले दिनों में बडे क्लेशों को सहन करने की तैयारी होती हैं। यही कारण है कि हम अभी विश्वासयोग्य हैं। क्योंकि परमेश्वर कहता है ''तू जो प्यादों ही के संग दौड कर थक गया है तो घोडों के संग कैसे बराबरी कर सकेगा?'' (यिर्मयाह 12:5)।

यूहन्ना यहाँ ''क्लेश, राज्य और धीरज में सहभागी'' होने के विषय कहता है'' जो मसीह में हैं।'' सबसे पहले हमें यीशु के साथ क्लेश में सहभागी होना होगा, इससे पहले कि हम उसके राज्य में उसके सिंहासन कें सहभागी होवें। धीरज एक महान बात है जिसपर पूरे नए नियम में बल दिया गया है। स्वयँ यीशु ने कहा, ''तब वे क्लेश देने के लिये तुम्हें पकड़वाएंगे.... परंतु जो अंत तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा'' (मत्ती 24:9,13).