द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया परमेश्वर को जानना
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परमेश्वर हमारे अलग अलग स्वभावों और उपहारों का उपयोग करते है कि दुनिया को मसीह का एक संतुलित तस्वीर पेश हो। अपने में, हम में से प्रत्येक व्यक्ति अपनी उत्तम योग्यता में भी, केवल एक विकृत और असंतुलित मसीह के छवि को प्रदर्शित कर सकते है। किसी भी एक व्यक्ति की सेवकाई, स्वयं में, असंतुलित मसीही का ही उत्पादन कर सकती है। हमें आभारी होनी चाहिए कि मसीही शरीर में दूसरे लोग है जिनके भिन्न ज़ोर और भिन्न स्वभाव है। उदाहरण के लिए, यदि दो भाई परमेश्वर के वचन को, एक ही समूह के साथ बाट रहे है। और एक यह दबाव दे रहा है, "इतने निश्चित न रहो कि आप, पवित्र आत्मा से भर रहे हो क्योंकि हो सकता है कि आप अपने आप को धोखा दे रहे है”, और दूसरे भाई का यह दबाव है, "आपको निश्चित रूप से यह जानना चाहिए कि आप पवित्र आत्मा से भरे है या नहीं", सतह पर वे, एक दूसरे के विरोध प्रतीत हो सकते है। लेकिन दोनों दबावों की जरूरत है - ताकि दोनों सेवकाई परस्पर पूरक हो सके, एक दूसरी की सहायता कर सके।

मसीह के शरीर में, कलविनिस्ट और अर्मीनियन्स एक साथ काम कर सकते हैं, प्रत्येक अपने विशिष्ट लेकर आए - क्योंकि दोनों नजरियाँ बाइबिल में हैं। चार्ल्स शिमोन ने एक बार कहा था," सच बीच में नहीं है, और एक चरम में नहीं है, लेकिन दोनों चरम में हैं।" तो, हमें जरूरत है लोगों की जो दोनों के चरम पेश करे।

फिर से, `निवर्तमान' व्यक्तित्व वाले लोगों के साथ संकोची लोग रह सकते है। अलग स्वभाव परस्पर पूरक हो सकते है। कुछ लोग अति-सावधान होते है; बिना अधिक विवेचना के, वे एक कदम भी आगे नहीं लेते, वे सभी `पक्ष-विपक्ष' को वजन लगाते है, और एक कदम लेने के लिए, लंबे समय को लेते है। और कुछ ऐसे है जो अधिक लापरवाह हैं और उत्साह से आगे भागते जाते हैं, ये परिणाम के बारे में, गहराई से नहीं सोचते। क्योंकि यह दोनों (और अन्य) व्यक्तित्व के लोग, मसीह के शरीर में पाए जाते हैं, इस कारण से, वहाँ एक संतुलन है। यदि मसीह के शरीर में केवल संकोची, गहरी सोच व्यक्तित्व वाले लोग होते हैं, तो प्रगति बहुत धीमी गति से होती। इसके विपरीत, यदि शरीर केवल अविवेकी उत्साही से भरे होते, तो कई परियोजनाएं अधूरी ही रहती।

प्रत्येक स्वभाव की अपनी शक्तियां और कमजोरियां है। लोगों में और उनके स्वभाव में विविधता, ऐसे मसीही मिलकर जब काम करते है तो एक अधिक पूर्ण और अधिक परिशुद्ध तस्वीर दुनिया को पेश कर सकते हैं। इसलिए हमें मसीह के शरीर के हर किसी को अपने समान बनाने की कोशिश में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमें हर एक व्यक्ति को स्वयं होने की अनुमति देनी चाहिए। हमें इस बात पर ध्यान करना चाहिए कि कैसे हमारी ताकत दूसरे की कमजोरियों का समर्थन कर पाए। उसकी ताकत बदले में हमारी कमजोरियों का समर्थन करेगी।

एक साथ काम करके, पतरस और यूहन्ना (अलग स्वभाव के पुरुषों) ने परमेश्वर के लिए अधिक महिमा लेकर आए, इनके स्वतंत्र रूप से काम करने से ज्यादा। पौलुस और तिमुथियुस- बिलकुल विचित्र स्वभाव के व्यक्ति - सुसमाचार के प्रचार में एक साथ श्रम कर सकते थे और एक शक्तिशाली समूह का निर्माण कर सकते थे।

कलीसिया में प्रतिभाशाली बुद्धिमान लोगों के साथ ही साथ मंदबुद्धि लोग भी रहते हैं। स्वाभाविक रूप से, परमेश्वर की सच्चाई की उनकी प्रस्तुतियां अलग अलग होंगे। लेकिन एक समूह दूसरे को तुच्छ या उनकी आलोचना नहीं कर सकते, दोनों की समान रूप से शरीर में जरूरत है, जिससे की सुसमाचार का पदर्शक इस दुनिया को मिले जो बुद्धिजीवियों और गैर-बुद्धिजीवियों, दार्शनिकों और गृहिणियों, छात्रों और किसानों, आदि से भरी है। परमेश्वर को अपने काम के लिए एक प्रतिभाशाली और शास्री पौलुस की जरूरत थी। साथ ही साथ पतरस की तरह एक अशिक्षित मछुआरे की भी। उनमें एक ही संदेश को विभिन्नता में उपदेश करने की शैली थी, लेकिन हर एक की विशिष्ट भाग निभाने के लिए थी, और कोई भी एक इतने योग्यता से, दूसरे के काम को न कर पाते जैसा कि परमेश्वर ने किया था।

यीशु को ग्रहण करने के साथ उस व्यक्ति के बौद्धिक क्षमता में परिवर्तन नहीं होता। न तो यह उन्हें उसकी सामाजिक स्थिति को बदलने के लिए मजबूर करता है। सुसमाचार इस धरती पर समाजिक विषम प्रकृति को नहीं मिटाती, हालांकि सामाजिक भेद अभी मसीह में व्यर्थ हो जाती है। परमेश्वर को एक अमीर व्यक्ति फिलेमोन की जरूरत थी, साथ-साथ उनेसिमुस की, जो फिलेमोन के घर में एक नौकर था। उनका सामाजिक स्तर और जीवन स्तर अपरिवर्तित रहा। लेकिन प्रत्येक में मसीह के शरीर को बनाने के लिए एक विशिष्ट योगदान था, जिसे अन्य कभी नहीं कर सकता था। और इसलिए वे सुसमाचार में एक साथ श्रम कर सकते थे।

परमेश्वर की इच्छा यह कभी नहीं थी कि मसीह के शरीर में लोग हर तरह से बिल्कुल एक जैसे होते - एक कारखाने के बाहर मोटर कारों की तरह। नहीं । शरीर की सेवकाई अपने सदस्यों के विविधता पर निर्भर है। हम में ठहराव और आध्यात्मिक मौत हो गया होता अगर सब एक जैसे होते। यहां तक कि एक दूसरे के प्रति हमारे असहमति, परमेश्वर द्वारा प्रयोग किया जा सकता है कि हमारे संगति में गहराई और हमारे आध्यात्मिक परिपक्वता के लिए नेतृत्व लेकर आए। नीतिवचन 27:17 में कहां गया है, जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है। चिंगारी तो आने ही वाली हैं, लेकिन इस तरह से लोहे के दोनों टुकड़े तेज हो रहे हैं।

कभी कभी परमेश्वर दो अलग स्वभाव के लोगों को साथ मिलाकर अपने काम में लेकर आते है, और जैसे वे साथ में श्रम करते है, उनके दोनों के बीच में चिंगारी उड़ सकते है, लेकिन यह तरीका परमेश्वर की हो सकती है कि वे “तेज” हो जाए। यदि एक व्यक्ति लोहे के तरह और दूसरा मिट्टी की तरह है, वहाँ कोई चिंगारी और कोई तेज़ नहीं होगा। इसके बजाय वहां मिट्टी पर लोहे की छाप होगी - एक मजबूत इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति की राय कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति पर। परमेश्वर की इच्छा यह नहीं है कि एक व्यक्ति दूसरे पर अपने विचार दबाए, लेकिन दोनों एक-दूसरे से सीखे। हम असहमत हो सकते हैं, लेकिन हम अभी भी एकता में बंधे हो सकते है, और अभी भी एक दूसरे से प्रेम कर सकते है - और यही नहीं, हम पहले की तुलना में एक दूसरे से अधिक गहराई से प्रेम कर सकते हैं।