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1. प्रेम प्रशंसा व्यक्त करता है:
विवाहित प्रेम पर एक पूरी किताब है जिसे परमेश्वर ने बाइबल में शामिल किया है - सुलैमान का गीत। गौर कीजिए कि पति अपनी पत्नी से यहाँ क्या कहता है सुलैमान के गीत में (मेसेज बाइबिल अनुवाद के विभिन्न छंदों से): "तुम सुंदर हो मेरी प्रियतमा, सिर से पाँव तक तुलना से अपार, सुंदर और एकदम निपुण। तुम मेरे परम आनंद की स्थिति में एक मनमोहक स्वप्न की तुम सुंदर हूँ। तुम्हारी वाणी शांति प्रदान करने वाली है, और तुम्हारा चेहरा मनमोहक है। तुम्हारी सुंदरता भीतरी और बाहरी रूप से संपूर्ण है, मेरी प्रियतमा तुम स्वर्ग हो”। तुमने मेरे दिल को जीत लिया है तुमने मुझे देखा और मुझे प्यार हो गया मेरी ओर एक दृष्टि और मैं प्रेम में डूब गया। मेरा दिल सम्मोहित हो गया है जब तुम्हें देखता हूँ मेरी भावनाए और मेरी चाहत कैसे जाग उठती है मैं तुम्हें छोड़ किसी ओर के लिए नहीं हूँ!”। “तुम्हारे समान इस पृथ्वी पर कोई नहीं, अब तक कोई नहीं, और न कभी भी रहेगा तुम ऐसी स्त्री हो जिसकी कोई तुलना नहीं।" और अब सुनिए पत्नी क्या कहती है, यह उसका प्रत्युत्तर है, “और तुम मेरे प्रेमी, कितने खूबसूरत हो तुम करोड़ो में एक हो तुम्हारे समान और कोई नहीं तुम सोने के समान हो, तुम एक मजबूत पर्वत समान पुरुष हो। तुम्हारे शब्द प्रेमपूर्ण और आश्वासन देनेवाले है तुम्हारे हर शब्द चुंबन के समान है। तुम्हारे विषय में सारी चीजे मुझे आनंदित करती है। तुम मुझमें रोमांच उत्पन्न करते हो। मुझे तुम्हारी लालसा है और हर एक हालत में मैं तुम्हें चाहती हूँ। तुम्हारी कमी मेरे लिए दर्दनाक है। जब मैं तुम्हें देखूँगी, तब मैं तुम्हें अपनी बाहों में ले लूँगी। मैं तुम्हें खुद से अलग नहीं होने दूँगी। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ और तुम मेरे प्रेमी हो और सिर्फ तुम ही मेरे पुरूष हो ।”

2. प्रेम जल्दी माफ कर देता है:
प्रेम दोष लगाने में धीमा परंतु क्षमा करने में तत्पर है । हर एक विवाह में पति और पत्नी के बीच समस्याएँ आ सकती है । परंतु यदि आप उन समस्याओं को ऐसे ही छोड़ देंगे, तो वह अवश्य ही उबलने लग जाएगी (अर्थात यदि आप उन समस्याओं को कम प्राथमिकता देते हैं - उन्हें तुरंत निपटाने के बजाय - तो वे समस्याएँ और भी बदतर हो जाएँगी)। इसलिए क्षमा करने में और क्षमा मांगने में देरी न करे । ऐसा करने के लिए शाम तक इंतजार भी न करे। अगर सुबह आपके पैर में काँटा चुभ जाये तब आप उसे तुरंत ही निकाल दोगे, उसे निकालने के लिए शाम तक इंतजार नहीं करोगे । यदि आप अपने पति और पत्नी को चोट पहुँचाते हो तो यह उसी समान है जैसे आपने उसपर काँटा चुभा दिया हो । उसे जल्द ही निकाल दे । शीघ्र ही क्षमा मांगे और शीघ्र ही क्षमा भी करे ।

3. प्रेम अपने साथी के साथ मिलकर चीजों को करने के लिए उत्सुक रहता है, अकेले नहीं:
उस अदन की वाटिका में जब शैतान हव्वा की परीक्षा लेने आया, तब यदि हव्वा उससे कहती “निर्णय लेने से पहले मैं अपने पति की राय लेना चाहती हूँ"- तब शायद मनुष्य जाति का इतिहास कितना अलग होता । और तब कहानी बिल्कुल अलग होती । याद रखें कि इस संसार की सब समस्याएँ तब शुरू हुई जब एक स्त्री ने से निर्णय लिया, जबकि परमेश्वर ने उसे एक साथी दिया था जिसके साथ खुद वह निर्णय लेने से पहले विचारविमर्श कर सकती थी । सच्चा प्रेम हर काम साथ मिलकर करता है । दो हरदम एक से बेहतर होते है।