द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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पहली परीक्षा
जब अब्राहम 75 वर्ष का था, परमेश्वर ने उसे बुलाया कि अपना घर-बार और रिश्तेदारों को कसदियों के ऊर देश में छोडकर और परमेश्वर के ऊपर विश्वास से एक अनजान देश को निकल जाये। वह पहली परीक्षा थी जिसमें वह सफल हुआ। अपने माता-पिता, भाई-बहनों के साथ संबंध को तोड़ना सरल नहीं है। परंतु जब तक वह अवनाल (माता से शिशु को जोडनेवाली नाल) जो हमें इन बंधनों में बांधे रखती है, काटी नहीं जाती तब तक हम यीशु के चेले नहीं हो सकते! यीशु ने कहा, “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और अपने बच्चों और भाइयों और बहनों वरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:26)। अब्राहम ने परमेश्वर की आज्ञा तुरंत ही मान ली। मैं सोचता हूँ, कि यदि अब्राहम परमेश्वर की बुलाहट को ठुकरा देता तो क्या होता। निश्चय ही परमेश्वर ने उस पर ज़ोर नहीं दिया होगा। परमेश्वर को कोई और मिल जाता; और हम अब्राहम के विषय में फिर कभी न सुनते। वह कोई और होता जो परमेश्वर की बुलाहट का प्रतिउत्तर देता और विश्वास का पिता और मसीह का पूर्वज बन गया होता! कितना कुछ अब्रहाम खो देता यदि वह पहली परीक्षा में असफल हो गया होता! जब वह अपने रिश्तेदारों की विनती की ओर ध्यान न देते हुए ऊर नगर से निकला, शायद ही उसने महसूस किया कि परमेश्वर ने उसके लिए कितना उत्तम भविष्य तैयार किया था। आज भी परमेश्वर लोगों को बुलाता है, ठीक वैसे ही जैसे उसने अब्राहम को बुलाया था। जो बुलाए जाते है शायद ही यह महसूस करते है कि भविष्य में कितना उत्तम परिणाम परमेश्वर ने उनके लिए रखा है यदि वे परमेश्वर की बुलाहट को सुनते है। इन 20 शताब्दियों में कलीसियाई इतिहास, उन स्त्री-पुरुषों की कहानियों से भरा पड़ा है जिन्होने परमेश्वर की बुलाहट को अब्राहम के समान तुरंत, सहर्ष और सम्पूर्ण हृदय से स्वीकार किया और परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा किया।

दूसरी परीक्षा
जब अब्राहम अपने रिश्ते नातों से मुक्त हो गया, तब परमेश्वर ने उसे भौतिक वस्तुओं के संबंध में परखा। शिष्यता में आगे बढ्ने के लिए यह बात आवश्यक है। यीशु ने कहा, “जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:33)। उत्पत्ति 13 और 14 अध्यायों में, हम दो ऐसी घटनाओं के विषय में पढ़ते है जहां पर अब्राहम धन-संपत्ति के विषय में परखा गया। पहली बार तब, जब लूत और उसे अलग होना पड़ा, क्योंकि उनके झुंड इतने बढ़ गए थे कि एक साथ नहीं रह सकते थे। बड़ा होने और कनान देश में जाने के लिए बुलाए जाने के नाते यह अब्राहम के लिए आसान और सही भी होता, कि वह पहले अपने लिए भूमि का चुनाव करे। परंतु सच्ची निस्वार्थता और हृदय की विशालता के कारण, उसने लूत को पहले चुनने के लिए कहा। लूत ने मानवीय दृष्टि में सबसे उत्तम दिखाई देने वाली, सदोम की भूमि को चुन लिया। परंतु न तो अब्राहम और न ही लूत यह महसूस कर सके कि परमेश्वर इस लेन-देन का मूक गवाह था – जैसे वह हमारे सभी आर्थिक लेन-देन का भी गवाह होता है। अब्राहम के द्वारा प्रदर्शित निस्वार्थ भावना से परमेश्वर बहुत आनंदित हुआ, और तुरंत ही परमेश्वर ने उसे बताया कि उसका वंश उस सारी भूमि पर, जहां तब अब्राहम देख सकता है चारों दिशाओं में फैल जाएगा। इसमें वह हिस्सा भी शामिल था जो लूत ने चुना था। “जब लूत अब्राहम से अलग हो गया तब उसके पश्चात यहोवा ने अब्राम से कहा, “आँख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहाँ से उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, चारों और दृष्टि कर। क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिए दूंगा” (उत्पत्ति 13: 14, 15)। उत्पत्ति 14 में हम पाते है, परमेश्वर का सच्चा दास होने के नाते अब्राहम दुबारा भौतिक वस्तुओं के विषय में खराई के साथ व्यवहार करता है। अब्राहम ने सदोम के राजा के लोगों और संपत्ति को शत्रुओं से छुड़ाया। इसके बदले में पुरस्कार स्वरूप सदोम का राजा अब्राहम को अपनी सारी संपत्ति देता है। परंतु अब्राहम कुछ भी लेने से इनकार कर देता है। और अब्राम ने सदोम के राजा से कहा, “परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, उसकी मैं यह शपथ खाता हूँ, कि जो कुछ तेरा है उसमें से न तो मैं एक सूत, और न जुती का बंधन, न कोई और वस्तु लूँगा कि तू ऐसा न कहने पाए कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ” (उत्पत्ति 14:22,23)। वास्तविकता में, अब्रहाम यह कह रहा था कि, “मेरा परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी का मालिक है मुझे तेरी किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है”। एक बार फिर परमेश्वर इस वार्तालाप का मूक गवाह था। वह तुरंत ही अब्राहम के समक्ष उपस्थित हुआ और उसे बताया की वह स्वयं ही उसे पुरस्कार देगा। “इन बातों के पश्चात यहोवा का यह वचन दर्शन के द्वारा अब्राम के पास पहुंचा: “है अब्राम, मत डर; तेरी ढाल और अत्यंत बड़ा प्रतिफल मैं हूँ” (उत्पत्ति 15:1)। यदि हम परमेश्वर का आदर करें तो वह निश्चय ही हमारा आदर करेगा।

तीसरी परीक्षा
अब्रहाम की परीक्षा उसके माता पिता के साथ उसके रिश्तों और भौतिक संपत्ति के संबंध में हुई थी। अब उसकी परीक्षा उसके पुत्र के साथ उसके संबंध में भी होनी थी। उत्पत्ति 22:2 में परमेश्वर ने अब्राहम से कहा: “अपने पुत्र को अर्थात अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिसे से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा”। यह बहुत ही बहुमूल्य चीज थी जिसे परमेश्वर ने उस रात उससे मांगी। अब्रहाम अगले दिन बिना कुछ किए ऐसे ही बिता सकता था और किसी को यह पता भी नहीं चलता कि अब्रहाम ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी। इस प्रकार परमेश्वर अब्राहम को परख रहा था कि वह उसका भय मानता है या नहीं। इसी प्रकार हमें भी परमेश्वर परखता है। वह हमसे गुप्त में हमारे हृदय में बात करता है – इतना धीमे कि वे भी जो हमारे साथ रहते है सुन नहीं पाते कि परमेश्वर ने हम से क्या कहा। परमेश्वर द्वारा हम सबके जीवन में पूरी तरह गुप्त क्षेत्र अर्थात हमारे विचारों को देने का कारण यह परखना है कि हम उसका भय मानते है या नहीं। अब्राहम ने परीक्षा में सफलता को प्राप्त किया। उसने लोगों के समक्ष एक अच्छी गवाही की खोज नहीं किया। वह गुप्त क्षेत्रों में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहता था। और इसलिए अगली सुबह ही उसने इसहाक को लिया और मोरिय्याह पर्वत की ओर अपने प्रिय पुत्र को परमेश्वर के लिए बलि करने के लिए निकल पड़ा, यह कहते हुए, “प्रभु मैं आप से इस पृथ्वी पर किसी से भी और किसी भी वस्तु से बढ़ कर प्रेम करता हूँ”। यही बात थी जिस पर परमेश्वर ने अब्रहाम को अपनी स्वीकृति का प्रमाण पत्र दिया और उसे अनगिनत आशीषों का वायदा किया: “मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तूने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों से समान अनगिनत करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी : क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है” (उत्पत्ति 22: 16-18)। कोई भी बात परमेश्वर को उतना प्रसन्न नहीं करती है जितना की त्यागपूर्ण आज्ञापालन। जो यहाँ परीक्षा में ऊत्तीर्ण नहीं होता, वह परमेश्वर की स्वीकृति को प्राप्त नहीं कर सकता। केवल जब हम उस स्थान पर आते है जहां पर हम गंभीरता से परमेश्वर से कह सकते है, “स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता” (भजन 73:25), तो हम इसके योग्य हो जाते है जहां तक परमेश्वर का संबंध है। यह मोरिय्याह पर्वत है जिस पर हम में से प्रत्येक को चढ़ना है, जहां हमें उन सभी चीजों को जो प्रिय है परमेश्वर के लिए लिए वेदी पर चढ़ाना है और अकेले परमेश्वर के साथ रह जाना है।