द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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1. यीशु पाप बना कि हम धर्मी हो जाएँ: “जो पाप से अनजान था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया, कि हम उसमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ” (2 कुरिन्थियों 5:21)। मसीह हमारे लिए पाप बना कि हम उस में परमेश्वर की धार्मिकता बन जाए। यह न्यायोचित ठहराया जाना है और यह उन लोगों के लिए परमेश्वर का एक मुफ्त उपहार है जो विनम्र पर्याप्त हैं यह पहचानने के लिए कि वे परमेश्वर के पवित्र मानकों को पूरा करने के लिए कभी भी धर्मी नहीं बन सकते हैं। हम सिर्फ और सिर्फ अनुग्रह से ही दोषमुक्त होते है, और जैसा कि बाइबल कहती है, “अगर यह अनुग्रह से हुआ है, तो कर्मों के आधार पर बिलकुल नहीं, वर्ना अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा” (रोमियों 11:6)। यीशु ने न केवल हमारे पापों के लिए दंड सहा । वह वास्तव में पाप बना। परमेश्वर की धार्मिकता पृथ्वी के सबसे पवित्र मनुष्य की धार्मिकता से उतनी ही ऊंची है जितना आकाश पृथ्वी से ऊंचा है (यशायाह 55:8,9)। निष्पाप स्वर्गदूत भी परमेश्वर के मुख को नहीं देख सकते और उसके सामने उन्हें भी अपने मुख ढाँपने पड़ते है (यशायाह 6:2,3)। सिर्फ मसीह ही सीधा पिता के मुख को देख सकता है। इसलिए परमेश्वर हमें मसीह में रखता है, कि हम निर्भय होकर उसके सामने आ सकें – क्योंकि हम मसीह में है। हमें मसीह में रखने द्वारा परमेश्वर हमें निर्दोष ठहराता है, और जैसा मसीह धर्मी है वह हमें वैसा ही धर्मी जानकार स्वीकार करता है। हम अब परमेश्वर के सामने अपनी पूर्ण स्वीकृति में आनन्दित हो सकते हैं, क्योंकि हम मसीह में परमेश्वर की धार्मिकता बन गए हैं।

2. "यीशु निर्धन बना कि हम धनवान हो सके: "यीशु धनी होते हुए भी तुम्हारे लिए निर्धन बना कि तुम उसकी निर्धनता द्वारा धनवान बन जाओ” (2 कुरिन्थियों 8:9)। यीशु क्रूस पर निर्धन हो गया, ताकि हम धनवान बन सकें - या दूसरे शब्दों में, कि हमारे जीवनों में “किसी वस्तु की कमी” न हो। परमेश्वर ने हमारी अभिलाषा नहीं बल्कि हमारी जरूरत पूरी करने की प्रतिज्ञा की है (फिलिप्पियों 4:19)। समझदार माता-पिता अपने बच्चों को वह सब नहीं देते जो वे चाहते या मांगते है, लेकिन वे उन्हें वही देते है जो उनकी जरूरत होती है। परमेश्वर भी यही करता है। पुरानी वाचा में व्यवस्था का पालन करने वालों के लिए पृथ्वी की धन-सम्मपति की आशीषों की प्रतिज्ञा की गई थी। लेकिन नई वाचा में, परमेश्वर हमसे यह प्रतिज्ञा करता है कि अगर हम पहले उसके राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करेंगे तो वह हमारे लिए कुछ बेहतर करेगा: इस पृथ्वी पर जीने के लिए वह हमारी सारी जरूरतो को पूरी करेगा (मत्ती 6:33, 2 पतरस 1:4)। यीशु निर्धन बना, कि हम धनवान बन सकें। इसलिए हमें अपने जीवनों में कभी किसी कमी-घटी में रहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। हमें भविष्य के बारे में कोई चिंता नहीं होनी चाहिए – न अपने लिए और न अपने बच्चों के लिए। यीशु ने क्रूस पर हमारी और हमारे परिवार के सदस्यों की हर एक जरूरत को पूरा करने के लिए सब कुछ खरीद कर पूरा कर दिया है। इसलिए प्रिय भाई बहनो अपने भीतर के हर प्रकार के भय से आज़ाद हो जाएँ। यीशु क्रूस पर हमारे लिए पहले ही निर्धन बन चुका है। अब आपको निरंतर आर्थिक कमी-घटी में अपना जीवन बिताने की जरूरत नहीं है। अब आप अपनी जरूरत की हर एक चीज प्राप्त कर सकते है। अब आप सुसमाचार में आपको प्राप्त हुए जन्माधिकार पर अपना दावा कर सकते है।

3. यीशु हमें आशीष देने के लिए श्रापित बना: “मसीह ने जो हमारे लिए श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया, क्योंकि लिखा है, “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है”, यह इसलिए हुआ कि अब्राहम की आशीष मसीह यीशु द्वारा हम तक पहुचे और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करे जिसकी प्रतिज्ञा हुई है” (गलातियों 3:13,14)। सुसमाचार की खुश खबरी यह है कि क्योंकि यीशु हमारे लिए पहले ही श्राप बन चुका है इसलिए यह जरूरी नहीं है कि व्यवस्था के ये श्राप अब हमें भी प्रभावित करें। हमारे लिए तो यही एक खुशखबरी होती। लेकिन इससे भी बढ़कर कुछ है। इसकी बजाय हम अब्राहम की वह आशीष पा सकते है जिससे परमेश्वर ने उसे आशिषित किया था। परमेश्वर ने अब्राहम को जिस आशीष से आशिषित किया था उसका वर्णन उत्पत्ति 12:2,3 में इस तरह किया गया है: “मैं तुझे आशीष दूंगा..... कि तू एक आशीष बने...., और तुझे में पृथ्वी के सब घराने आशीष पाएंगे”। मसीह ने क्रूस पर हमारे लिए श्राप बन जाने द्वारा इस आशीष को खरीदा है। वह हमें आशीष देना चाहता है और हमारे पूरे जीवनभर हम पृथ्वी पर जिस किसी के भी संपर्क में आएंगे, वह हमें उसके लिए एक आशीष बनाएगा। यह आशीष (जो यह वचन हमें बताता है), हमें पवित्र आत्मा प्राप्त करने द्वारा मिलती है। यीशु ने पवित्र आत्मा का वर्णन जीवन जल के एक ऐसे सोते के रुप में किया है जो हमारे हृदय में से उमड़ता है और हमें आशीष देता है (यूहन्ना 4:14) और फिर हममें से जल की नदियों की तरह बहते हुए दूसरों को आशीष देता है (यूहन्ना 7:37-39)। पाप और असफलता में जीवन बिताने वाले सबसे गंदे पापी से भी आज यीशु की यही प्रतिज्ञा है “जैसे बीते समय में तू एक श्राप था, वैसे ही आने वाले समय में तू दूसरों के लिए एक आशीष बन सकता है” (जकर्याह 8:13)। परमेश्वर की यही इच्छा है कि पृथ्वी पर रहने वाले जिस परिवार के साथ भी हमारी मुलाक़ात हो, उसके लिए हम एक आशीष बन जाए।