द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   परमेश्वर को जानना चेले
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संसार के सभी लोग आनंद ढूँढ रहे हैं। लेकिन वे सभी उसे एक गलत तरीके से ढूँढ रहे हैं। वे सोचते हैं कि उन्हें वह अवैध लैंगिक सम्बंधों में, या बहुत से धन में, या बड़े नाम, सम्मान, पद और प्रतिष्ठा आदि में मिल जाएगा। इसमें कोई शक नहीं कि इन बातों में काफी कामुक उत्तेजना होती है। लेकिन ये खुशी स्थाई नहीं होती।

परमेश्वर भी चाहता है कि हम आनंदित रहें। लेकिन वह कहता है, "वे आनंदित हैं जिनके हृदय शुद्ध हैं" (मत्ती 5:8 लिविंग)। हम सिर्फ पवित्र होने द्वारा ही सच्चा आनंद पा सकते हैं। एक मसीही होते हुए, आपकी बुलाहट यह है कि आप अपने आसपास के संसार के सामने यह प्रदर्शित करें कि आप सबसे ज़्यादा आनंदित हैं क्योंकि आप पवित्र हैं। और आपको दूसरों को यह दिखाना है कि जिन बातों को परमेश्वर ने प्रतिबंधित किया है, आपको ऐसी पापमय बातों में अपना आनंद ढूँढने की कोई ज़रूरत नहीं है।

हम अपना आनंद उचित बातों का पीछा करने द्वारा भी नहीं पा सकते, जैसे विवाह या एक नौकरी। हम यह कर सकते हैं, लेकिन इनसे हमें आनंद नहीं मिल सकता। हम सिर्फ प्रभु में आनंदित रह सकते हैं। हम सिर्फ तभी सुसमाचार के लिए प्रभावाली साक्षी हो सकते हैं।

यीशु हमें न सिर्फ पाप से बचाने आया था, बल्कि संसार की व्यवस्था से भी बचाने आया था। शैतान संसार का शासक है। हमें संसार में जो लोकाचार (फैशन), मनोरंजन, शिक्षा की प्रणालियाँ व पद्धतियाँ, और जो अनेक तटस्थ बातें नज़र आती हैं, उन सब के पीछे शैतान मौजूद है। उदाहरण के तौर पर, अगर हम अपना सारा ख़ाली समय अच्छा मसीही संगीत सुनने में ही ख़र्च करते है, तो यह शैतान की एक युक्ति हो सकती है जिसमें वह मुझे ऐसा शांत नहीं होने देता कि मैं परमेश्वर की (धीमी) आवाज़ को सुन सकूँ। तब वह अच्छी बात सबसे सर्वोत्तम बात की दुश्मन बन जाती है!

प्रभु हमें इस संसार में से उठा नहीं लेता। उसने यूहन्ना 17:5 में पिता से प्रार्थना की कि वह उसके शिष्यों को संसार में से उठा न ले बल्कि उन्हें बुराई से बचा ले। हम सिर्फ संसार के बीच में रहते हुए ही पवित्र किए जाने का प्रशिक्षण पा सकते हैं। एक जहाज़ का जल - कसाव समुद्र के बीच में परखा जाता है, बन्दरगाह की सूखी ज़मीन पर नहीं !

यीशु ने कहा कि नूह और लूत के दिनों में, लोग खाने, पीने, बेचने, ख़रीदने, घर बनाने, बोने-काटने, शादियों में बेटे-बेटियों को लेने व देने आदि कामों में लगे हुए थे (लूका 17:26-28) - जो सभी उचित गतिविधियाँ थीं। हम "संसार की इन चिताओं" में इस तरह से घिर सकते हैं कि फिर हमारे पास परमेश्वर के लिए समय ही न हो। अंत के दिनों में यह ख़तरा है। और हम इन्हीं दिनों में रह रहे हैं। जब हम आर्थिक रूप में सम्पन्न् ( धनवान ) हो जाते हैं, एक भोग-विलास का जीवन बिताने लगते हैं, तब हम आसानी से परमेश्वर से दूर खिसक जाते हैं। बाइबल कहता है, “भक्ति का ऐसा जीवन जिसमें हम कम ख़र्चीले हों, सच्चे आत्मिक फायदे हासिल करने का तरीका है" (1 तीमु. 6:6 भावानुवाद)।

उद्धार का दिन आज ही है। स्वयं परमेश्वर के अलावा जिन बातों ने हमें उलझा लिया है, हमें उनकी तरफ से अपने मन फिरा लेने की ज़रूरत है। जब हमारे हृदय अशुद्ध होते हैं, तब हम कभी सच्ची खुशी नहीं पा सकते। हमारे गुप्त पाप और दूसरों के प्रति हमारे गलत मनोभाव हमारे चेहरों को उदास कर देते हैं, वैसे ही जैसे कैन का चेहरा उतरा हुआ था जिससे परमेश्वर ने यह पूछा था, "तेरा मुँह क्यों उतरा हुआ है?" (उत. 4:6)। परमेश्वर ने कैन को उस ख़तरे के प्रति सचेत किया था जो अब उसके सामने था। पाप उसके हृदय के द्वार पर लपक कर बैठा था जो अब उसे निगलने के लिए तैयार था। और परमेश्वर ने उसे उस पर जयवंत होने के लिए कहा।

पाप हर समय हम सभी के बहुत पास होता है। धन्य हैं वे जिन्हें हर समय इसका अहसास होता रहता है- क्योंकि तब वे प्रलोभन / परीक्षा की घड़ी में सचेत और सतर्क रहेंगे। जिसे अपने शरीर की निर्बलता का अहसास रहता है और जो मदद पाने के लिए लगातार परमेश्वर को पुकारता रहता है, वह नहीं गिरेगा।