द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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उत्पत्ति 28:11 में लिखा है कि “सूर्य अस्त हो गया था”। हालांकि यह एक भौगोलिक वास्तविकता का जिक्र कर रहा है, लेकिन याक़ूब के जीवन पर सूर्य वास्तव में अस्त हो गया था, और यह उसके लिए आत्मिक रीति से भी कहा जा सकता था। वह संसार के लिए जी रहा था और उसने बेईमानी की थी और सब छिना ही था। फिर भी परमेश्वर अपनी दया में याक़ूब से मिला और उससे कहा कि उसके जीवन के लिए उसके पास एक महान योजना है। “मैं तेरे दादा अब्राहम का परमेश्वर हूँ,” परमेश्वर ने उससे कहा, “जिस भूमि पर तू लेटा है उसे मैं तुझे और तेरे वंश को दे दूंगा। तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएंगे” (उत्पत्ति 28:13,14)। इसे “अब्राहम की आशीष” कहा गया है (गलातियों 3:14)। परमेश्वर ने जब अब्राहम को बुलाया था तो उसने उससे कहा था, “मैं तुझे आशीष दूंगा, और पृथ्वी के सारे घराने तेरे द्वारा आशीष पाएंगे” (गलातियों 12:2,3)। परमेश्वर ने यही वचन यहाँ याक़ूब के लिए दोहराया है। गलातियों 3:14 में हमें बताया गया है कि जब हम पवित्र-आत्मा से भर जाते हैं, तब यह आशीष हमारी हो जाती है।

तो पवित्र-आत्मा से भरे जाने का उद्देश्य क्या है? निश्चय ही, वह अन्य-भाषाओं में बोलना तो नहीं है! यह सिर्फ परमेश्वर द्वारा उसके संतानों को दिए गए अनेक वरदानों में से एक है। दुर्भाग्यवश, बहुत से मसीहियों ने इसको बहुत बढ़ा-चढ़ा दिया है। लेकिन यह मुख्य उद्देश्य नहीं है। शारीरिक चंगाई भी मुख्य बात नहीं है। पौलूस को उसकी “देह में चुभाए गए कांटे” से कभी चंगाई नहीं मिली। पवित्र-आत्मा से भरे जाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि परमेश्वर हमें आशीष दे सके और हम पृथ्वी पर प्रत्येक परिवार जिनके संपर्क में आएँ, उनके लिए वह हमें एक आशीष बना सके (गलातियों 3:14)। जब परमेश्वर हमें पवित्र-आत्मा से भरता है, तो हम सभी लोगों के लिए एक आशीष होंगे।

कोई भी हमसे मिलने के बाद आशीष पाए बिना नहीं रहेगा! यह बात उन स्त्रियों की तरह है जो बहुत से सुंगंधित द्रव्य लगाती है। जब आप उनसे कुछ दूरी पर होते है, तब भी उनकी सुंगध पा सकते है! वे जहां भी जाती है, लोग उनके सुंगधित द्रव्य सूंघ सकते हैं। ऐसा ही हमारे साथ भी होगा। अगर हम किसी घर में प्रवेश करेंगे, तो हम वहाँ चाहे पाँच मिनट रहें या पाँच दिन, हम उस घर को आशीषित करेंगे। यह “अब्राहम की आशीष” है – हर जगह प्यासे लोगों के लिए आशीष के साथ बहती जीवन के जल की नदियों की धारा।

उत्पत्ति 32 में हम पाते है कि जब याक़ूब ने यह सुना कि एसाव उससे मिलने आ रहा है, तो वह उससे बचने की युक्ति सोचने लगा। जिन पत्नियों को वह पसंद नहीं करता था, उसने उन्हें आगे कर दिया और राहेल और स्वयं को सबसे पीछे रखा ताकि अगर वे सब मर भी जाएं, फिर भी राहेल और वह बच कर निकल सके! याक़ूब अभी तक पहले जैसा ही स्वार्थी व्यक्ति था। हमारे लिए यह बड़ी प्रोत्साहनजनक बात है कि परमेश्वर ने एक ऐसे स्वार्थी व्यक्ति को लेकर उसे “इस्राएल” में बदल दिया।

फिर हम पढ़ते है कि कैसे परमेश्वर याक़ूब से मिला, उससे कुश्ती की और उसके जांघ की नस दबाकर उसे लंगड़ा कर दिया। परमेश्वर हमें जिस जगह पर देखना चाहता है, हमें वहाँ तक लाने के लिए वह कठोर काम करता है। उसने उसे तोड़ा और उससे कहा, “अब से तू परमेश्वर का राजपुत्र (इस्राएल) होगा” (उत्पत्ति 32:28)। परमेश्वर उसे इस्राएल कब कह सका? उसके साथ 60 या 70 वर्षों तक कुश्ती लड़ने और आखिर में उसके कूल्हें का जोड़ उखाड़ कर उसे पूरी तरह तोड़ डालने के बाद। तब परमेश्वर ने कहा, “अब मुझे जाने दे”। अंततः याक़ूब बोला, “जब तक तू मुझे आशीष न दे, मैं तुझे न जाने दूंगा”। इस व्यक्ति ने, जिसने अपने पूरे जीवनभर पैसा छिना, पहलौठेपन का अधिकार छिना, स्त्रियाँ छिनी, भेंड़े छिनी, अब सब छोडकर परमेश्वर को कसकर पकड़ रहा था। वह मानो यह कह रहा था, “हे परमेश्वर, मैं अब तक धन, स्त्रियाँ, जायदाद और बहुत से पार्थिव बातों के लिए जीता रहा हूँ लेकिन अब मैं सिर्फ तुझे चाहता हूँ”। परमेश्वर हमारे जीवन में भी एक ऐसे दिन के आने का इंतजार कर रहा है। फिर उसने जो याक़ूब से कहा था, वही वह हमसे भी कहेगा “अब से तू पकड़ने या धोखा देनेवाला (याक़ूब) नहीं कहलाएगा। अब तू परमेश्वर का राजपुत्र (इस्राएल) कहलाएगा। क्योंकि तूने परमेश्वर के साथ संघर्ष किया है और तू प्रबल हुआ है”।

याक़ूब प्रबल होने वाला कब बन सका? जब उसके कूल्हें की हड्डी तोड़ी गई। हम पवित्र शास्त्र के आरंभ में ही इस महान सत्य को देखते है। हमें सामर्थ से भरने से पहले परमेश्वर को हमे तोड़ना पड़ता है। कोई महान, शक्तिशाली “विश्व-स्तर का योद्धा” नहीं, बल्कि एक टूटा हुआ व्यक्ति ही, जो याक़ूब की तरह अपनी लाठी का सहारा लेता है, परमेश्वर का राजपुत्र बन सकता है। प्रिय भाइयों और बहनों इससे पहले की परमेश्वर आपको वह बना सके जो वह आपको बनाना चाहता है, उसे आपको तोड़ना पड़ता है। फिर हम उत्पत्ति 32:31 में यह सुंदर शब्द पढ़ते है, “सूर्योदय हो गया”। यह फिरसे एक भौगोलिक वास्तविकता है लेकिन याक़ूब के जीवन में सच्ची आत्मिकता का उदय होना भी है। 20 साल पहले उस पर सूर्य अस्त हुआ था, पर अब सूर्य उदय हो गया था।