द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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नीतिवचन 12:12 “प्रेम सब अपराधों को ढाँप देता है”। अपनी पत्री में पतरस ने इसका उल्लेख (1 पतरस 4:8) किया है। अगर आप वास्तव में एक व्यक्ति से प्रेम करते है, तो आप उसकी कमज़ोरियों को उघाड़ेंगे नहीं बल्कि उन्हें ढांपेंगे। परमेश्वर ने हमसे इसी तरह व्यवहार किया है। उसने हमारे भूतकाल के पापों को किसी के सामने उघाड़ा नहीं। हमें भी दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा परमेश्वर ने हमारे साथ किया है। अगर आप बुद्धिमान होना चाहते हो, तो आपकी युवावस्था में मैं आपको एक सलाह देना चाहता हूँ। अगर आप किसी के विषय में कुछ बुरी बात जानते है, तो उस बुराई को अपने साथ ही मर जाने दे। उसके विषय में चर्चा करते हुए न घूमें। अगर आप ऐसा करेंगे, तो परमेश्वर आपका आदर करेगा, खास तौर पर तब जब वह बुरी बात उसके किसी संतान के विषय में होगी। वह आपसे खास तौर पर प्रेम करेगा। एक ऐसे पिता के बारे में सोचे जिसके बच्चे ने कुछ गलत किया हैं और मैं उस विषय को जानता हूँ। लेकिन मैं किसी से नहीं कहता कि उसके बेटे ने क्या किया है। आपके विचार में, क्या वह पिता इस बात के लिए मुझसे प्रेम न करेगा? परमेश्वर भी तब ऐसा ही करेगा जब वह यह देखेगा कि हमने भी उसके बच्चों के साथ ऐसा ही बर्ताव किया है।

नीतिवचन 11:24: “ऐसे हैं, जो उदारता से देते हैं, तौभी उनकी बढ़ती ही होती है”। मसीही जीवन के अनेक विरोधाभासों में से यह एक है कि जो देता है वही ज्यादा पाता है, क्योंकि परमेश्वर उसे आशिषित करता है। और जो कंजूस है, वह और भी गरीब हो जाता है। जब एक कंजूस व्यक्ति मन फिराता है तो वह उदार (दानी) बन जाता है। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुमने सेंतमेंत पाया है, इसलिए सेंतमेंत दो” (मत्ती 10:8)। परमेश्वर ने हमें मुफ्त में बहुत सारी चीजें दी है। हमें भी दूसरों को मुफ्त में देना चाहिए। सुसमाचारों में जिस विधवा का विवरण है, उसके पास सिर्फ दो दमड़ी थी। उसके पास जो था उसने वह दे दिया, और मुझे यकीन है कि परमेश्वर ने उसका आदर किया होगा और उसे कुछ घटी नहीं हुई होगी। “जो दूसरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी” (नीतिवचन 11:25)। यदि आप चाहते है कि परमेश्वर आपको सींचे और आप को तरोताजा रखे, तो आपको दूसरों को सींचना चाहिए। बहुत से मसीही इतने बासी (फफूंदा) और सूखे हुए क्यों है? इसलिए क्योंकि परमेश्वर उन्हें नहीं सींच रहा। और परमेश्वर उन्हें क्यों नहीं सींच रहा? क्योंकि वे दूसरों को नहीं सींच रहें। दूसरों की आवश्यकता के विषय में सोचना आरम्भ कर दे और यह देखने का प्रयास करें की किस रीति से आप उन्हें आशीषित कर सकते है। और तब आप पाएंगे कि परमेश्वर आपको बहुतायत से आशिषित कर रहा है।

नीतिवचन 15:13: “मन के आनंदित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है”। यह तो हमारे मन (हृदय) का आनंद है जो हमारे मुख को ज्योतिर्मय करता है। “जिसका मन प्रसन्न रहता है वह मानो नित्य भोज में जाता है” (नीतिवचन15:15)। नीतिवचन की पुस्तक में, हमारे जीवन में आनंद के होने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। “प्रसन्न हृदय (मन का आनन्द) अच्छी औषधि है” (नीतिवचन 17:22)। इसलिए आनंद भी हमें स्वस्थ कर सकता है। परमेश्वर का राज्य सिर्फ धार्मिकता नहीं है, परन्तु पवित्र-आत्मा में धार्मिकता के साथ आनंद है। पुराने नियम में उनके पास आनंद रहित धार्मिकता थी। परन्तु अब हमारे पास आनंद सहित धार्मिकता है। यीशु का अनुसरण करते हुए, हमारी चाल में एक उछाल है, ह्रदय में एक गीत है और मुख पर एक चमक है जैसे हम।

नीतिवचन 18:16: “भेंट मनुष्य के लिये मार्ग खोल देती है, और उसे बड़े लोगों के सामने पहुंचाती है”। परमेश्वर हमें जो वरदान देता है, उसके द्वारा वह हमारे लिए कलीसिया में सेवा करने का द्वार खोलता है। आज यह देखना अत्यंत दुःखद है कि जिन लोगों को परमेश्वर द्वारा कोई वरदान नहीं दिया गया हैं, वे कलीसिया में ओहदे और सम्मान की खोज कर रहे हैं और उसके लिए लड़ रहे हैं। हमें इस बात के लिए जोर दिया गया है कि हम “आत्मिक वरदानों की खोज में रहें, खास तौर पर यह की भविष्यद्वाणी कर सकें"(1 कुरिन्थिन्यों 14:3)। परमेश्वर अपने वरदान उन्हें नहीं देता जो उसका मूल्य नहीं जानते। लोग एक ऐसे व्यक्ति का संदेश सुनने के लिए सैकड़ो मील चले जाते है जिसके पास परमेश्वर की ओर से संदेश होता है। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला जंगल में रहा करता था, और पुरे यहूदिया से लोग उसकी सुनने के लिए आते थे, क्योंकि उसके पास स्वर्ग से सन्देश होता था।

नीतिविचन 18:21: “जीवन और मृत्यु जीभ के वश में होते है”। पेन्तिकुस्त के दिन, शिष्यों के ऊपर आग की जीभें यह दर्शाने के लिए उतरी थी कि परमेश्वर उनकी जीभों को पवित्र आत्मा की अग्नि में स्थापित करना चाहता था। याक़ूब 3:6 कहता है, कि जीभ नरककुंड की आग से जलती रहती है। हमारी शारीरिक भ्रष्टता के बावजूद, हमारी जीभ मृत्यु फैलाने से केवल तभी बची रह सकती है जब वह पवित्र-आत्मा के नियंत्रण में हो।

नीतिवचन 22:4: “नम्रता व परमेश्वर का भय मानने का प्रतिफल धन, महिमा और जीवन होता है”। आत्मिक धन (समृद्धि), आत्मिक महिमा और आत्मिक जीवन परमेश्वर से प्राप्त होते है, और ये केवल दो गुणों के आधार पर ही दिए जाते है जिन्हें परमेश्वर एक मनुष्य में देखना चाहता है: नम्रता और परमेश्वर का भय। जब कलीसिया में किसी को अगुवाई की कोई ज़िम्मेदारी देने पर विचार-विमर्श किया जाता है, तो इन्हीं दो मुख्य गुण पर ध्यान देना चाहिए।