द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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हम उत्पत्ति 32:29 में पढ़ते हैं कि, "परमेश्वर ने याकूब को आशीष दी"। चार कारण हैं कि परमेश्वर ने याकूब को वहाँ पर - पनीएल में आशीर्वाद दिया।

1 परमेश्वर के साथ अकेले
याकूब को उस जगह पर आशीष मिली जहाँ वह परमेश्वर के साथ अकेला था। उसने सभी को दूर भेज दिया और वहाँ वह अकेला था (उत्पत्ति 32:24)। 20 वीं सदी के विश्वासियों को परमेश्वर के साथ अकेले ज्यादा समय बिताना मुश्किल लगता है। जेट-युग (हवाई जहाज़) की भावना हम में से अधिकांश में आ गई गई है और हम निरंतर व्यस्तता की स्थिति में रहते हैं। परेशानी हमारे स्वभाव या हमारी संस्कृति के साथ नहीं है। हमारी प्राथमिकताएँ सही नहीं हैं - बस इतना ही। यीशु ने एक बार कहा था कि विश्वासी के लिए एक बात की आवश्यकता है कि वह उसके चरणों में बैठें और उसकी बात सुनें (लूका 10:42)। लेकिन हम इस पर विश्वास नहीं करते है और इसलिए यीशु के वचनों को अनदेखा करने के भयानक परिणाम भुगतते है। अगर हम हमेशा अपनी विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं और यह नहीं जानते कि उपवास और प्रार्थना में परमेश्वर के साथ अकेले रहना क्या होता है तो हम निश्चित रूप से परमेश्वर की सामर्थ्य या आशीष को नहीं जान पाएंगे – मेरे कहने का अर्थ उसकी वास्तविक शक्ति से है (सस्ती और नकली सामर्थ्य नहीं जिन पर बहुत से घमंड करते है)।

2 परमेश्वर द्वारा तोड़ा गया
याकूब उस जगह पर आशीषित हुआ जहां वह पूरी तरह से टूट गया था। पनीएल में एक व्यक्ति ने याकूब के साथ मल्लयुद्ध किया। परमेश्वर याकूब के साथ बीस साल से मल्लयुद्ध कर रहा था लेकिन याकूब ने समर्पण करने से इनकार कर दिया था। परमेश्‍वर ने याकूब को यह दिखाने की कोशिश की कि कैसे उसने अपनी चालाकी और योजना के बावजूद भी सब कुछ गलत कर दिया था। लेकिन याकूब अभी भी ज़िद्दी था। अंत में परमेश्वर ने याकूब के जाँघ की नस को छुआ जिससे उसकी जांघ उखड़ गई (उत्पत्ति 32: 25)। जांघ शरीर का सबसे मजबूत हिस्सा है और यही वह हिस्सा था जिसे परमेश्वर ने तोड़ा था।

3 परमेश्वर के लिए भूखा
याकूब को उस जगह पर आशीष मिली जहाँ वह परमेश्‍वर के लिए सच्चा और भूखा था। "मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा" उसने पुकारा, "जब तक तू मुझे आशीष न दे" (उत्पत्ति 32: 26)। कैसे परमेश्वर ने बीस सालों तक इन शब्दों को याकूब से सुनने के लिए इंतजार किया था। वह जिसने अपना सारा जीवन - जन्मसिद्ध अधिकार, स्त्रियों, धन और संपत्ति को हड़पने में व्यतीत किया, अब उन सब चीजों को जाने देता है और परमेश्वर को पकड़ लेता है। यह वह क्षण था जिसके लिए परमेश्वर याकूब के पूरे जीवन में काम कर रहा था। परमेश्वर का हृदय अवश्य इस बात से प्रसन्न हुआ होगा जब याकूब ने धरती की अस्थायी चीजों के लिए अपनी दृष्टि खो दी और परमेश्वर के लिए और उसके आशीर्वाद के लिए वह अभिलाषी और प्यासा हुआ। हमें होशे 12: 4 में बताया गया है कि याकूब रोया और पनीएल में उस रात एक आशीष के लिए विनती की। वह उस रात उसके पहले के वर्षों की तुलना में कितना अलग व्यक्ति था जो पहले केवल इस दुनिया की चीजों को चाहता था। अंत में परमेश्वर द्वारा किए गए व्यवहार ने याकूब के जीवन में फल को उत्पन्न किया!

4 परमेश्वर के साथ ईमानदार
याकूब को उस जगह पर आशीष मिली जहाँ वह परमेश्वर के साथ ईमानदार था। परमेश्वर ने उससे पूछा, "तेरा नाम क्या है?" बीस साल पहले, जब उसके पिता ने उससे वही सवाल पूछा था तो उसने झूठ बोला था और कहा था "मैं एसाव हूं" (उत्पत्ति 27:19)। लेकिन अब वह ईमानदार है। वह कहता है "परमेश्वर मैं याकूब हूं" - या दूसरे शब्दों में "परमेश्वर मैं एक हड़पने वाला, धोखेबाज और सौदेबाज हूं”। याकूब में अब कोई छल नहीं था। और इसलिए परमेश्वर उसे आशीष दे सका। परमेश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया - जब वह ईमानदार था, जब वह कोई और दिखावा नहीं करना चाहता था, जब उसने कबूल किया, "परमेश्वर मैं पाखंडी हूँ। मेरे जीवन में शर्मिंदगी और दिखावा है”। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि एक व्यक्ति को अपने हृदय की गहराई से यह स्वीकार करने के लिए उसे वास्तविक रूप में टूटना पड़ता है। कई मसीही अगुवे नम्र होने की प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए झूठी विनम्रता के साथ इस तरह के शब्द कहते हैं। मैं उस प्रकार के घृणित काम की बात नहीं कर रहा हूं। मेरा मतलब उस ईमानदारी से है जो वास्तव में टूटे और पिसे हुए हृदय से निकलती है। वह महँगी है। हम सभी में बहुत अधिक छल है। परमेश्वर हम पर दया करें जब हम पवित्र होने का नाटक करते है जबकि हम वास्तव में पवित्र नहीं होते। आइए हम अपने सारे हृदय से सच्चाई और ईमानदारी और खुलेपन की लालसा करे और फिर हमारे जीवन में परमेश्वर के आशीषों की कोई सीमा नहीं होगी।