द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया चेले
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नई वाचा वह अनुबंध है जो परमेश्वर ने मनुष्य के साथ किया है जिस - पर " यीशु के लहू से हस्ताक्षर" किया गया है ( इब्रानियों 13:20 - लिविंग)। अब हमें अपने खुदी - के जीवन के लहू से इस पर हस्ताक्षर करने हैं। परमेश्वर के साथ इस अनुबंध/वाचा में प्रवेश करने का दूसरा कोई तरीका नहीं है। अनेक लोग क्योंकि इस अनुबंध पर अपनी खुदी के जीवन के लहू से हस्ताक्षर नहीं करते, इसलिए वे कभी एक संतोषजनक मसीही-जीवन में प्रवेश नहीं कर पाते।

यीशु ने अपने पिता के साथ यह वाचा बांधी थी कि वह अपनी देह को एक बार भी अपनी इच्छा पूरी करने के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा (इब्रा. 10:5)। वह अपनी स्वेच्छा को मृत्यु के हवाले करता रहेगा, इस तरह उसने अपनी स्वेच्छा के “लहू" (सूली) से उस वाचा पर हस्ताक्षर किए। अब हमें उसके साथ इसी मार्ग से चलते हुए सहभागिता करने के लिए बुलाया गया है। इस मार्ग पर चलना बिलकुल भी मुश्किल या थकाने वाला नहीं है। इसके विपरीत, यह आपको सबसे प्रसन्नचित्त जीवन में पहुँचा सकता है (जिस जीवन में कोई तनाव / खिंचाव नहीं होगा)। जब हम बपतिस्मा लेते हैं और जब मिलकर रोटी तोड़ते हैं, तब हम इस वाचा में प्रवेश करने की साक्षी देते हैं।

लूका 5:38 में यीशु ने जिस नए दाखरस की बात की थी, वह असल में परमेश्वर का वह जीवन है जिसमें हम अब नई वाचा में सहभागिता कर सकते हैं। पुराना दाखरस पुरानी वाचा के अधीन रहने वाला जीवन था – नियमों और अधिनियमों का जीवन। अदन की वाटिका के दो पेड़ भी इन दोनों वाचाओं के जीवनों के प्रतीक हैं। एक ऐसा जीवन जिसमें नियमों और अधिनियमों द्वारा पाप को रोक कर रखा गया है (जो ऊपर से सही/खरा नज़र आता है, और अनेक झूठे मसीही पंथों में भी पाया जाता है) मृत्यु में पहुँचाता है - जो चेतावनी परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के पेड़ के बारे में आदम को दी थी। सच्ची मसीहियत वह जीवन है जो भीतर से यीशु के जीवन में सहभागी होने से मिलता है, जो हमें सचेत करता रहता है कि कुछ बातें अशुद्ध हैं और कुछ शुद्ध हैं। हमें चुनाव करने की आज़ादी है, लेकिन हम अशुद्ध बातों से इसलिए दूर नहीं रहते क्योंकि हम नियमों से बंधे हैं ("यह मत छुओ, यह मत चखो" कुलुस्सियों 2:21), या हम दूसरों मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहते हैं।

नई मशक मसीह की देह के बारे में बताती है, जिसकी रचना तब होती है जब हम अपनी देह को प्रतिदिन एक जीवित बलिदान के रूप में अर्पित करते हैं, और उससे हमें पवित्र आत्मा से भरने के लिए कहते हैं, कि फिर वही काम जो पवित्र आत्मा ने यीशु के पृथ्वी पर रहने के दिनों में उसकी देह के द्वारा किया था, वही हममें भी किया जा सके। तब हम उनके साथ एक हो जाते हैं जो इसी मार्ग में चल रहे हैं। इस तरह, हम मसीह में एक देह - कलीसिया बनते हैं, जिसमें वह हमें उन दान - वरदानों से सुसज्जित करता है एक-दूसरे को उन्नत करने के लिए ज़रूरी होते हैं।

और इस तरह, शैतान हमारे पैरों तले कुचला जाता है (रोमि. 16:20)। जब हम शैतान को हम पर दोष लगाने की और हमें दोषी महसूस कराने की जगह दे देते हैं, तब वह हमारे सिर पर बैठ जाता है। लेकिन उसकी जगह हमारे पैरों के नीचे है।

पाप की व्याख्या (रोमियों 3:23 में) परमेश्वर की महिमा से रहित होने के रूप में की गई है - और यीशु के जीवन में परमेश्वर की महिमा नज़र आई। इसलिए याद रखें कि जो कुछ भी हम यीशु के साथ सहभागिता में नहीं कर सकते, वह पाप है।

पुरानी वाचा में, पाप को ढाँपा जा सकता था (बैलों व बकरों के लहू द्वारा), लेकिन उसे मिटाया नहीं जा सकता था (भज. 32:1,2)। उससे कोई शुद्ध नहीं हो सकता था और न ही उसे मिटाया जा सकता था। उसे हर साल लगातार याद किया जाता था (इब्रा. 10:3,4)। लेकिन नई वाचा में, हमारे पाप न सिर्फ यीशु के लहू द्वारा मिटा दिए गए हैं, बल्कि परमेश्वर यह प्रतिज्ञा करता है कि अब वह उन्हें कभी याद भी नहीं करेगा (इब्रानियों 8:12)। दोनों वाचाओं के बीच इस फर्क को आप एक स्पष्ट रूप में समझ लें।