द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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एक संतुलित मसीही जीवन वह है जो तीन दिशाओं में देखता है:

1. ऊपर की ओर - परमेश्वर और यीशु मसीह की आराधना और समर्पण में।
2. भीतर की ओर - मसीह की महिमा को देखने के परिणामस्वरूप, खुद के जीवन में मसीह के विपरीति क्षेत्रों की खोज करना और उनसे मन फिराना।
3. बाहर की ओर - दूसरों के लिए आशीष बनते हुए, पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की खोज करना।

ऊपर की ओर देखना
परमेश्वर ने हमें सबसे पहले उसके आराधक होने के लिए बुलाया है अर्थात उसके लिए भूखे और प्यासे होने के लिए। एक आत्मिक मन का व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करता है। उसकी एक मात्र इच्छा केवल परमेश्वर है। वह पृथ्वी या स्वर्ग में, परमेश्वर के अलावा किसी भी चीज़ या किसी और व्यक्ति की इच्छा नहीं करता है (देखें भजन 73: 25)। धन और सांसारिक सम्मान उसे आकर्षित नहीं करते हैं। जैसे जल के सोतों के लिए हरिणी प्यासी है, वैसे ही वह परमेश्वर का प्यासा है। प्यास की वजह से मरने वाले व्यक्ति से अधिक वह परमेश्वर के लिए तरसता है। वह किसी भी सांसारिक आराम या सुख से अधिक परमेश्वर के साथ संगति के लिए तरसता है। वह परमेश्वर से प्रतिदिन सुनने के लिए भी प्यासा है।

जो लोग धन, सांसारिक आराम और अपनी सुविधा की खोज करते हैं, उन्हें हमेशा शिकायत करने के लिए कुछ न कुछ मिल जाएगा। लेकिन आत्मिक मन के व्यक्ति के पास कोई शिकायत नहीं होती, क्योंकि वह केवल परमेश्वर को चाहता है और परमेश्वर हमेशा उसके पास है। वह अपने जीवन की परिस्थितियों से कभी निराश नहीं होता है, क्योंकि वह अपनी सभी परिस्थितियों में परमेश्वर का सामर्थी हाथ देखता है और वह हर समय आनंद से परमेश्वर के हाथ के नीचे खुद को नम्र करता है।

ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन को चलाने के लिए किसी भी व्यवस्था या नियमों की आवश्यकता नहीं होती है - क्योंकि वह हर समय अपनी आत्मा में मौजूद पवित्र आत्मा की गवाही की अगुवाई से चलता है। वह "भलाई और बुराई" की किसी भी मानवीय समझ से नहीं जीता है क्योंकि वह मसीह के लिए मन की सीधाई और पवित्रता के साथ जीता है, इसलिए वह दूसरे विषयो से विचलित नहीं होता है। यीशु को देखते हुए ऐसा व्यक्ति अधिक और अधिक अपने प्रभु के समान बनता जाता है।

परमेश्वर की ओर ऊपर देखने वाला ऐसा व्यक्ति स्वयं को लगातार विनम्र बनाता जाता है। वह अपने अच्छे कामों को मनुष्य की नज़रों से छिपाएगा। परमेश्वर उसे निरंतर अनुग्रह देगा और इसलिए वह पाप के ऊपर जयवंत होगा और अपने स्वर्गीय पिता के साथ घनिष्ठ और घनिष्ठ संबंध में बढ़ता जाएगा।

भीतर की ओर देखना
उपर की ओर देखना ऐसे व्यक्ति को उसके हृदय के भीतर की ओर देखने में अगुवाई करता है। जैसे ही यशायाह ने प्रभु की महिमा को देखा, वह तुरंत अपने स्वयं के पाप से अवगत हो गया (यशायाह 6: 1-5)। अय्यूब, पतरस और यूहन्ना के साथ भी ऐसा ही था (अय्यूब 42: 5,6; लुका 5: 8; प्रकाशितवाक्य 1: 17)। जब हम परमेश्वर की उपस्थिति में रहते हैं, तो हम अपने जीवन में मसीह के विपरीत कई ऐसे क्षेत्रों के बारे में जान पाते है जो हम अन्यथा नहीं खोज पाते। इसलिए आत्मिक मन का व्यक्ति अपने जीवन में अचेतन पाप के छिपे हुए क्षेत्रों पर निरंतर प्रकाश प्राप्त करता है। वह भीतर अपने आप को नहीं देखता, इससे वह निराश होगा। वह परमेश्वर को देखता है और इस प्रकार अपने जीवन में अचेतन पापों पर प्रकाश पाता है। इससे वह प्रोत्साहित होने की ओर बढ़ता है और कभी निराश नहीं होता।

ऐसा व्यक्ति "हर समय परमेश्वर और मनुष्यों के सामने अपने विवेक को सदा निर्दोष रखने की पूरी कोशिश करता है" (प्रेरितों के काम 24:16)। जिस तरह एक व्यवसायी अधिक पैसा बनाने की पूरी कोशिश करता है, और शोध वैज्ञानिक नई खोज करने की पूरी कोशिश करता है। यहां तक कि आत्मिक मन का व्यक्ति हर समय अपने विवेक को शुद्ध रखने की पूरी कोशिश करता है।

ऐसा व्यक्ति अपने आप को लगातार जाँचता है, क्योंकि वह अपने जीवन में कई चीजों को ढूंढ निकालता है, जिनसे शुद्ध होने की आवश्यकता होती है - ऐसी चीजों से जिससे अन्य विश्वासी विचलित भी नहीं होते।

ऐसे व्यक्ति को एहसास होता है कि उसे हर दिन भीतर से कई चीजों के लिए मरना है, जो उसे परमेश्वर के लिए प्रभावी होने में बाधा डालती हैं। इसलिए उसकी जीवनशैली रोज़ अपना क्रूस उठाने वाली बन जाती है - "यीशु की मृत्यु को हर समय लिए फिरना” (2 कुरिन्थियों 4: 10)।

उसे किसी के सामने खुद को नम्र बनाने या किसी से माफी मांगने में कोई समस्या नहीं है - चाहे वह व्यक्ति उससे बड़ा हो या छोटा। उसे एहसास होता है कि उसकी प्रार्थना और उसकी सेवा कभी भी परमेश्वर द्वारा स्वीकार नहीं की जाएगी, यदि उसने किसी एक भी व्यक्ति को - चाहे पत्नी, भाई या पड़ोसी को किसी भी तरह से चोट पहुंचाई हो। और इसलिए, जैसे ही उसे पता चलता है कि उसने किसी को चोट पहुंचाई है, वह "अपनी भेंट को वेदी के सामने छोड़ कर पहिले जाकर अपने भाई से मेल मिलाप करता है और तब आकर अपनी भेंट चढ़ाता है” (मत्ती 5: 23,24)।

बाहर की ओर देखना
ऊपर की ओर देखना और अपने भीतर देखना, बाहर की ओर देखने की अगुवाई करता है।

एक आत्मिक मन के व्यक्ति को एहसास होता है कि परमेश्वर ने उसे आशीष दी है ताकि वह दूसरों के लिए स्वयं एक आशीष बन सके। चूंकि परमेश्वर ने उसे इतना ज्यादा माफ किया है कि वह खुशी से और आसानी से सभी को माफ कर देता है, जिन्होने उसे नुकसान पहुंचाया है। चूँकि परमेश्वर उसके लिए बहुत भला रहा है, उसी प्रकार वह दूसरों के लिए भी भला बना रहता है। उसने परमेश्वर से मुफ़्त में बहुत कुछ प्राप्त किया है और इसलिए वह दूसरों को भी सेंतमेंत देता है। उसके जीवन पर परमेश्वर की आशीष ने उसे सभी मनुष्यों का ऋणी बना दिया है।

परमेश्वर गिरे हुए मनुष्य के लिए चिंतित है - उसकी मदद करने, उसे आशीष देने, उसे उठाने और शैतान के बंधन से छुड़ाने के लिए। आत्मिक मन के व्यक्ति की चिंता भी इसी समान है। और इसलिए यीशु की तरह वह अपने आस-पास के लोगों की सेवा करना चाहता है, न कि उनके द्वारा सेवा करवाना। यीशु भलाई करता और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा (प्रेरितों के काम 10:38)। आत्मिक मन का व्यक्ति ऐसा ही करता है।

ऐसा व्यक्ति लोगों के लिए अपनी सेवा के माध्यम से उनसे कुछ हासिल करना नहीं चाहता है - न तो पैसा और न ही सम्मान। परमेश्वर की तरह, वह केवल अपने जीवन और अपने मजदूरी के माध्यम से दूसरों को आशीष देना चाहता है। वह कभी भी किसी से कोई भी उपहार की अपेक्षा नहीं करता है - क्योंकि वह अपनी हर जरूरत के लिए अकेले परमेश्वर पर भरोसा करता है।

इसलिए हम देखते हैं कि एक सच्चा आत्मिक मन का व्यक्ति ऊपर की ओर, अपने भीतर और बाहर की ओर देखता है।

यदि वह केवल ऊपर की ओर देखता है, तो वह अवास्तविक सोच वाला हुआ - "बहुत ज्यादा स्वर्गीय-मन का, जो पृथ्वी के लिए कुछ भी उपयोगी नहीं"।

यदि वह केवल भीतर की ओर देखता, तो वह उदास हो जाएगा।

और अगर वह केवल बाहर की ओर देखता, तो उसका काम खोखला और बनावटी होगा।

लेकिन एक आत्मिक मन वाला व्यक्ति लगातार तीनों दिशाओं में देखता है।

प्रार्थना करें कि परमेश्वर आपको इस नए साल में इस संतुलित मसीही जीवन मे अधिक से अधिक बढ्ने में सक्षम बनाए।

आमीन (ऐसा ही हो)।