द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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उत्पत्ति 14 में, हम पाते हैं कि अब्राहम युद्ध से लौटते समय थका हुआ था, शायद उसे यह घमंड भी हो रहा होगा की उसने सिर्फ अपने 318 सेवकों द्वारा ही अनेक राजाओं की सेनाओ को पराजित कर दिया था। वह सारी धन-संपति इकट्ठा करने के खतरे में भी था जो उसने इस युद्ध को जीतने के द्वारा हासिल की थी। उन दिनों में यदि आप कोई युद्ध को जीतते, तो शत्रु का सारा सोना और चांदी आपका हो जाता था। उस समय परमेश्वर ने अपने एक सेवक को अब्राहम के पास भेजा। क्या यह देखना अद्भुत नहीं है? एक अनजान व्यक्ति जिसका नाम मलिकिसिदक था, जो उस मरुस्थल में रहता था, वह परमेश्वर के संपर्क में था (उत्पत्ति 14:18)। मलिकिसिदक क्यों महत्वपूर्ण है इसका कारण यह है कि भजन 110: 4 में यीशु को मलिकिसिदक की रीति के अनुसार याजक कहा गया है और इब्रानियों 7 अध्याय में इसकी पुष्टि की गई है। पवित्रशास्त्र में सिर्फ यही एकमात्र जगह है - उत्पत्ति 14: 18–20, जिसमें मलिकिसिदक का वर्णन है – केवल तीन वचनों में ही। मलिकिसिदक प्रकट होता है, अपनी सेवकाई पूरी करता है और लुप्त हो जाता है। और परमेश्वर ने अपने पुत्र से कहा, "तू मलिकिसिदक की रीति के अनुसार सदा के लिए याजक होगा”। ऐसा याजक नहीं जो लेवी की रीति के अनुसार है – जो पुरानी वाचा का याजक है। यह पुरुष मलिकिसिदक, जो बाइबल के सिर्फ तीन वचनों में पाया जाता है, इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? इसका कारण जानना हमारे लिए अच्छा है।

सबसे पहली बात यह कि वह शालेम का राजा था (उत्पत्ति 14:18) - यरूशलेम। यरूशलेम, जैसा कि हमने देखा है, सच्ची कलीसिया का चित्र है जो बेबीलोन से बिलकुल विपरीत है। यीशु इस कलिसिया में मलिकिसिदक की रीति के अनुसार महायाजक है, और हमें भी इसी रीति के अनुसार याजक होना है। यीशु यरूशलेम में राजा है और हमें भी राजा होने के लिए बुलाया गया है। हमारे प्रभु ने हमें राजा बनाया है और हम इस पृथ्वी पर राज करेंगे। हमें पाप पर राज करने और अपने मनोवेगों पर राज करने के लिए बुलाया गया है।

मलिकिसिदक ने क्या किया? सबसे पहले तो वह अब्राहम और उसके 318 सेवको के लिए भोजन लाया। मसीहत व्यावहारिक है। यदि कोई व्यक्ति थका-मांदा है, तो उसे एक प्रचार की नहीं, भोजन की जरूरत है! एक भूखे व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराने में कुछ भी अनात्मिक नहीं है। यही सबसे बड़ी आत्मिक बात है जो आप उसके लिए कर सकते हैं। जब एलिय्याह थका हुआ था, तो स्वर्ग से एक दूत ने आकर उसे दो बार भोजन दिया (1 राजा 19: 6–8)। मृतकों में से जी-उठने के बाद, जब एक सुबह यीशु ने अपने शिष्यों को पूरी रात मछ्ली पकड़ने की कोशिश करने के बाद थके हुए लौटते देखा, तो उसने उनके लिए खाना तैयार रखा (यूहन्ना 21: 9)। यही सच्ची आत्मिकता है – जहां जरूरत है वहाँ लोगों को भोजन और अन्य भौतिक वस्तुओं से मदद करना। मलिकिसिदक के याजकपद का यह पहला भाग है।

आगे लिखा है कि फिर मलिकिसिदक ने अब्राहम को आशिष दी (उत्पत्ति 14:19)। उसने अब्राहम की आलोचना नहीं की। मलिकिसिदक की रीति में आलोचनात्मक आत्मा नहीं है। नहीं। उसमें सिर्फ आशीष है। उसने उसे कैसे आशिष दी? उसने कहा, "स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता परमप्रधान परमेश्वर की ओर से अब्राहम धन्य हो”। उसने अब्राहम को यह याद दिलाया कि परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी का मालिक हैं और इसलिए उसे युद्ध में मिले सोने और चांदी को नहीं लेना चाहिए। वह अब्राहम को लालच करने से बचा रहा था। फिर उसने कहा “परमप्रधान परमेश्वर धन्य है जिसने तेरे शत्रुओं को तेरे वश मे कर दिया”। इस रीति से उसने अब्राहम को यह स्मरण दिलाया कि यह परमेश्वर था जिसने उसे विजय दिलाई और इस तरह उसे घमंड से बचाया।

मलिकिसिदक ने यह कैसे जाना की अब्राहम की यह तीन मुश्किले थी – कि वह थका-मांदा था और उसे भोजन की आवश्यकता थी, वह लालच और घमंड के खतरे में पड़ा हुआ था? और किस रीति से उसकी सेवकाई ने इन तीन जरूरतों को पूरा किया? मलिकिसिदक की सेवकाई ऐसे तीरों की तरह थी जो सीधे अपने लक्ष्य के केंद्रबिन्दु को भेदने वाले थे। उसका रहस्य यह था कि वह एक ऐसा मनुष्य था जिसे प्रतिदिन परमेश्वर से सुनने की आदत थी। वह स्वयं के उज्ज्वल विचारों के अनुसार नहीं लेकिन परमेश्वर के वचन के अनुसार जीने वाला व्यक्ति था। लोगों की जरूरतों को भरपूरी से पूरा करनेवाली नबूवत की सभी सेवकाईयों का यही रहस्य है।

एक दिन जब मलिकिसिदक परमेश्वर की बाट जोह रहा था, तब परमेश्वर ने उससे कहा, “उठ। लगभग 400 लोगों के लिए एक अच्छी मात्रा में भोजन ले। यह दो वाक्य का संदेश ले और सब ले जाकर मेरे एक सेवक को दे दे जिससे तू कभी नहीं मिला है और जो अमुक रास्ते पर यात्रा कर रहा है”। जैसे फिलिप्पुस गाज़ा के मार्ग पर इथियोपियाई खोजा से मिलने गया था, मलिकिसिदक भी उठा और चला गया जबकि वह यह भी नहीं जानता था कि वह किससे मिलनेवाला है। जब वह उस जगह पर पहुंचा जिसके विषय में परमेश्वर ने उससे कहा था, तो उसे अब्राहम मिला। उसने उसे भोजन दिया, संदेश दिया और अपने घर लौट गया। कैसी अद्भुत सेवकाई है – लोगों को आशिष देकर लुप्त हो जाना और कोई भेंट या सराहना पाने के लिए इंतज़ार भी न करना। मलिकिसिदक का याजक पद वह है जो सेवा करने के बाद लुप्त हो जाता है। यरूशलेम ऐसे याजको द्वारा तैयार किया जाता है। यही आज यरूशलेम के सच्चे राजा है।