द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   घर
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व्यवस्थाविवरण 11:18-21 (केजेवी अनुवाद) में लिखा है "मेरे वचनो को तुम्हारे हृदय में छाप (धारण) लो ताकि तुम्हारे दिन पृथ्वी पर स्वर्ग के दिनों के समान हो सकें।" यह एक अभिव्यक्ति है कि: "आपके पृथ्वी पर के दिन स्वर्ग के दिन के समान हो सकते हैं"। सोचो कि स्वर्ग के दिन कैसे होंगे। स्वर्ग में कोई झगड़ा या संघर्ष नहीं है, बल्कि केवल शांति और आनंद है। और सबसे ऊपर हर जगह प्रेम। हमारे पास ऐसा घर हो सकता है जहां हर एक दिन धरती पर स्वर्ग के दिन के समान हो। ऐसा ही हर घर होने के लिए परमेश्वर चाहत रखता है।

बाइबिल आदम और हव्वा के विवाह से आरंभ होती है और मसीह का उसके लोगों (अर्थात कलीसिया) से विवाह के साथ समाप्त होता है। जब परमेश्वर ने पहला विवाह- आदम और हव्वा का आयोजित किया, वह चाहता था कि उनके दिन पृथ्वी पर स्वर्ग के दिनों के समान हों। उनका पहला घर अदन एक स्वर्ग था। लेकिन शैतान आया और उनके घर को नरक बना दिया। और अब हमारे पास आज दुनिया भर में नरक के समान घर हैं। लेकिन परमेश्वर की स्तुति करें कि वो कहानी का अंत नहीं था। बाइबल हमें बताती है जैसे ही आदम ने पाप किया, किस प्रकार वहीं अदन की वाटिका में परमेश्वर ने शैतान द्वारा बनाई गई समस्या को हल करने के लिए अपने बेटे को भेजने का वादा किया। यही वह जगह है जहां हम यह महान सत्य देखते हैं: कि परमेश्वर हमेशा शैतान के खिलाफ हमारी ओर है। परमेश्वर ने आदम के पाप के लिए धरती को श्राप देने से पहले आदम और हव्वा से कहा कि एक बीज उस स्त्री के माध्यम से आएगा, जो शैतान के सिर को कुचल देगा। उसके बाद ही परमेश्वर ने उनकी सजा सुनाई। भले ही शैतान ने आकर चीजों को बिगाड़ दिया, परमेश्वर चाहता था कि आदम और हव्वा यह जान लें कि वह शैतान के खिलाफ उनके पक्ष में है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि शैतान कभी भी किसी भी घर में कुछ भी करे, परमेश्वर हमेशा घरों को छुड़ाने के व्यवसाय में हैं। वह हमारे घरों को वापस उसकी मूल योजना में लाना चाहता है जहां हमारे सारे दिन पृथ्वी पर स्वर्ग के दिनों के समान हो। और अब जब मसीह आ चुका और छुटकारे का काम पूरा हो चुका है, तो यह हम में से प्रत्येक के लिए एक वास्तविक संभावना है। मैं एक दूसरे से प्रेम करने के संबंध में तीन बातें बताना चाहता हूँ।

1. प्रेम प्रशंसा व्यक्त करता है। पवित्र बाइबल में विवाह सबंधित प्रेम के विषय में एक पूरी किताब है – श्रेष्ठगीत या सुलैमान के गीत। सब विवाहित जोड़ो को यह किताब एक दूसरों को पढ़कर सुनाना चाहिए! यह देखना बहुत ही अद्भुत है कि परमेश्वर पति और पत्नी को एक दूसरे से किस तरह बात करने की अपेक्षा करता है। और बाइबल की अन्य किताबो के समान यह भी एक प्रेरित शास्त्र है। इस किताब में से मैं कुछ पंक्तियाँ पढ़ना चाहता हूँ, जिससे कि हम पति और पत्नी एक दूसरे की प्रशंसा करना सीख सकते है। जब प्रशंसा व्यक्त करने की बात आती है तो हम सभी कंजूस हो जाते है। हम आलोचना करने में तत्पर, लेकिन प्रशंसा करने में धीमे होते है। हम लोगो को देखकर उनमे कई गलतियाँ ढूंढते है। यह मनुष्य का स्वभाव है। और इसी प्रकार ‘दोष लगानेवाला जोकि शैतान है हमारे जीवन में प्रवेश करता है। दूसरी तरफ जब हम दूसरों को देखते हैं और उनमें सराहना करने के लिए कुछ पाते हैं, तो परमेश्वर हमारे भीतर प्रवेश करता हैं। हम में से हर एक जन अपने आचरण को परखें।

श्रेष्ठगीत की पुस्तक, एक पति और पत्नी के बारे में क्या कहती है यह देखिये (मेसेज बाइबल अनुवाद द्वारा) “तुम सुंदर हो मेरी प्रियतमा, सिर से पाँव तक तुलना से अपार, सुंदर और एकदम निपुण। तुम मेरे परम आनंद की स्थिति में एक मनमोहक स्वप्न की तरह सुंदर हो। तुम्हारी वाणी सुखदायक, और तुम्हारा चेहरा मनमोहक है। मेरी प्रियतमा तुम्हारी सुंदरता भीतरी और बाहरी रूप से संपूर्ण है। तुम स्वर्ग हो। तुमने मेरे ह्रदय को जीत लिया है। तुमने मुझे देखा और मुझे प्यार हो गया। मेरी ओर एक दृष्टि और मैं प्रेम में डूब गया। मेरा दिल सम्मोहित हो गया है। जब मैं तुम्हें देखता हूँ मेरी भावनाए और मेरी चाहत कैसे जाग उठती है। मैं तुम्हें छोड़ किसी ओर के लिए नहीं हूँ। तुम्हारे समान इस पृथ्वी पर कोई नहीं, अब तक कोई नहीं, और न कभी भी रहेगा। तुम ऐसी स्त्री हो जिसकी कोई तुलना नहीं”। और अब सुनिए पत्नी क्या कहती है, यह उसका प्रत्युत्तर है, “और तुम मेरे प्रेमी, कितने खूबसूरत हो। तुम करोड़ो में एक हो। तुम्हारे समान और कोई नहीं। तुम सोने के समान हो, तुम एक मजबूत पर्वत समान पुरुष हो। तुम्हारे शब्द प्रेमपूर्ण और आश्वासन देनेवाले है। तुम्हारे हर शब्द चुंबन के समान और तुम्हारे चुंबन सारे शब्दो के समान है। तुम्हारे विषय में सारी चीजे मुझे आनंदित करती है। तुम मुझ में रोमांच उत्पन्न करते हो। मुझे तुम्हारी लालसा है और हर एक हालत में मैं तुम्हें चाहती हूँ। तुम्हारी कमी मेरे लिए दर्दनाक है। जब मैं तुम्हें देखूँगी, तब मैं तुम्हें अपनी बाहों में ले लूँगी। मैं तुम्हें खुद से अलग नहीं होने दूँगी। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ और तुम मेरे प्रेमी हो और सिर्फ तुम ही मेरे पुरूष हो।”

2. प्रेम शीघ्र क्षमा करता है: प्रेम दोष लगाने में धीमा परंतु क्षमा करने में तत्पर है। हर एक विवाह में पति और पत्नी के बीच समस्याएँ आ सकती है। परंतु यदि आप उन समस्याओं को ऐसे ही छोड़ देंगे, तो वह अवश्य ही उबलने लग जाएगी। इसलिए क्षमा करने में और क्षमा मांगने में देरी न करे। ऐसा करने के लिए शाम तक इंतजार भी न करे। अगर सुबह आपके पैर मैं काँटा चुभ जाये तब आप उसे तुरंत ही निकाल दोगे, उसे निकालने के लिए शाम तक इंतजार नहीं करोगे। यदि आप अपने पति या पत्नी को चोट पहुँचाते हो तो यह उसी समान है जैसे आपने उसपर काँटा चुभा दिया हो। उसे जल्द ही निकाल दे। शीघ्र ही क्षमा मांगे और शीघ्र ही क्षमा भी करे।

3. प्रेम कोई भी काम अपने सहभागी के साथ करने में उत्सुक रहता है, अकेले नहीं: उस अदन की वाटिका में जब शैतान हव्वा की परीक्षा लेने आया, तब यदि हव्वा उससे यह कहती कि “निर्णय लेने से पहले मैं अपने पति की राय लेना चाहती हूँ” - तब शायद मनुष्य जाति का इतिहास कितना अलग होता। और तब कहानी बिल्कुल अलग होती। याद रखें कि इस संसार की सब समस्याएँ तब शुरू हुई जब एक स्त्री ने खुद से निर्णय लिया, जबकि परमेश्वर ने उसे एक साथी दिया था जिसके साथ वह निर्णय लेने से पहले विचार विर्मश कर सकती थी। सच्चा प्रेम हर काम साथ मिलकर करता है। दो हमेशा एक से बेहतर होते है।