पुराने नियम में, व्यवस्था कहती थी, "आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।" यह वह व्यवस्था थी जो परमेश्वर ने निर्गमन 21, लैव्यव्यवस्था 24 और व्यवस्थाविवरण 19 में भी दिया था। वहाँ परमेश्वर यह नहीं कह रह था कि यदि कोई तुम्हारी एक आंख निकालता है, तो तुम्हें भी उसकी आंख निकालनी चाहिए। वह यह कह रहा था कि यदि उसने तुम्हारी केवल एक आंख निकाली, तो तुम उसकी दोनों आंखें मत निकालो। मुद्दा यह है कि तुम अपराधी को माफ़ कर सकते हो और उसे जाने दे सकते हो, और उसकी कोई भी आंख नहीं निकाल सकते। वह सबसे अच्छा तरीका होगा। परमेश्वर सज़ा को कम कर रहा था, यह कहकर कि, "आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।"
लेकिन यीशु यहाँ इस स्तर को और ऊपर उठाते हुए कहते हैं, "बुरे का विरोध मत करो; यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसकी ओर फेर दो। यदि कोई तुम्हें अदालत में घसीटकर तुम्हारी कमीज़ लेना चाहे, तो उसे अपना कोट भी दे दो। जो कोई तुम्हें एक मील तक बेगार में ले जाए, उसके साथ दो मील तक जाओ" (मत्ती 5:39-41)। रोमन सैनिक कभी-कभी यहूदी लोगों को, जो उनके गुलाम थे, अपना सामान और सैन्य उपकरण एक मील तक ले जाने के लिए मजबूर करते थे। यहूदी गुलाम थे इसलिए उन्हें यह करना पड़ता था। यीशु हमें बताते हैं कि ऐसी स्थितियों में हमें उस व्यक्ति के साथ दो मील तक जाना चाहिए, इसके बारे में उससे लड़ना नहीं चाहिए, जो तुमसे मांगता है उसे देना चाहिए, और जो तुमसे उधार लेना चाहता है उससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
हमें इन शब्दों को उसी आत्मा से ग्रहण करना चाहिए जिसमें वे कहे गए हैं। हमें ठीक-ठीक देखना चाहिए कि यीशु का क्या मतलब था। क्या वह हमें कह रहे थे कि हम पायदान (doormats) की तरह बन जाएं? क्या हमें लोगों को वह सब कुछ करने देना चाहिए जो वे पसंद करते हैं? ऐसा नहीं हो सकता। "जब भी आप पवित्रशास्त्र को सही ढंग से नहीं समझते हैं, तो स्वयं यीशु मसीह के उदाहरण को देखें - क्योंकि वह वचन ही है जो देहधारी हुआ। पुराने नियम में, शास्त्री थे जो व्यवस्था की हर एक मात्रा और बिंदु की व्याख्या करने के लिए उसकी जांच करते थे। नए नियम में, हमें वचनों का उतना विश्लेषण करने की ज़रूरत नहीं है जितना हम यीशु को देखते हैं, क्योंकि अब हमारे पास उनका उदाहरण है।
यीशु का क्या मतलब था, “अगर कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो”? हम देखते हैं कि यीशु खुद, जब सूली पर चढ़ाए जाने से ठीक पहले मुकदमे में मुख्य याजकों के सामने खड़ा था, तो उसे थप्पड़ मारा गया और उसने दूसरा गाल आगे नहीं किया। उसने यूहन्ना 18:23 में कहा, “अगर मैंने सही कहा है, तो तुम मुझे थप्पड़ क्यों मार रहे हो?” उन्होंने इस पर कोई जवाब नहीं दिया (शायद उन्होंने उसे फिर से थप्पड़ मारा और उसने पलटकर जवाब नहीं दिया)। जब उन्होंने उसे थप्पड़ मारा, तो उसने अपना दूसरा गाल भी थप्पड़ खाने के लिए नहीं दिया। इसलिए, हमें सावधान रहना होगा कि मसीह जो कह रहे हैं उसका मतलब समझें, नहीं तो हमें खुद यीशु पर यह आरोप लगाना पड़ेगा कि उन्होंने जो उपदेश दिया, उसे नहीं किया।
यहां सिद्धांत यह है: मैं बदला लेने की इच्छा नहीं करता; मैं उस चीज़ के लिए किसी से बदला लेने की कोशिश नहीं कर रहा हूं जो मेरे साथ की गई थी। यदि कोई मुझे शैतान कहता है, तो मैं उस व्यक्ति को शैतान नहीं कहूंगा। यदि मुझे थप्पड़ मारा जाता है, तो मैं पलट कर थप्पड़ नहीं मारूंगा। मैं बल्कि चुपचाप बैठ जाऊंगा और परमेश्वर पर भरोसा रखूंगा कि वह मुझे फायदा उठाए जाने से बचाएंगे।
जब वह कहता है कि अगर कोई आपकी कमीज़ लेने के लिए कोर्ट में आप पर केस करता है, तो अपना कोट भी दे दो, तो उसका क्या मतलब है? उदाहरण के लिए, अगर कोई गलत तरीके से झूठ बोलता है और आपकी ही प्रॉपर्टी के लिए आप पर केस करता है, यह कहकर कि यह उसकी प्रॉपर्टी है - शायद उसने कोर्ट में कुछ झूठे दस्तावेज जमा किए हैं और वह आपसे आपका घर छीनना चाहता है - तो आपको क्या करना चाहिए? क्या आपको उससे कहना चाहिए कि वह आपका घर ले ले और आप अपना दूसरा घर भी दे दे? क्या यही मतलब है?
यीशु का यह मतलब बिलकुल नहीं था। फिर से, हमें आत्मा से समझने की ज़रूरत है। यदि कोई आपको एक मील तक जाने के लिए मजबूर करता है, तो उसके साथ दो मील तक जाओ। दूसरे शब्दों में, यदि कोई आपको कुछ करने के लिए मजबूर करता है, तो और अधिक करो। आपको इसे इसकी आत्मा से समझना होगा। यीशु हमें यह भी निर्देश देता है कि जो कोई हमसे उधार लेना चाहता है, उससे न मुड़े । क्या वह कह रहा है कि जो कोई भी तुमसे उधार लेना चाहता है, तुम्हें उसे पैसे देने चाहिए? यहां भारत में, यदि आप किसी को एक बार पैसे देते हो और आपकी एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठा बन जाती है जो किसी को भी मुफ़्त में देता रहता है, तो आप देखते ही देखते बैंकक्र्प्ट हो जायेंगे!
यदि आप इन शब्दों की पीछे की आत्मा को नहीं समझते हैं और उन्हें आंख मूंदकर शब्दसः ग्रहण करते हैं, तो आप बड़ी मुसीबत में पड़ जायेंगे। यीशु हमें पाप के प्रति एक दृढ़निश्चयी रवैया रखने की शिक्षा दे रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने हमें निर्देश दिया था कि हम एक अंधे आदमी की तरह बनें, या कटे हुए हाथ वाले व्यक्ति की तरह। यह वह आत्मा है जिसमें हमें इन सभी चीज़ों को समझने की ज़रूरत है: बदला लेने की कोशिश मत करो, फायदा उठाए जाने के लिए तैयार रहो, और यहां तक कि स्वयं के लिए मरने के लिए भी तैयार रहो; लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे पास कोई अधिकार नहीं है।
एक भाई, जो बस ड्राइवर के रूप में काम करता था, ने एक बार कलीसिया की सभा में गवाही दी कि जब वह सड़क पर गाड़ी चला रहा होता था, तो कभी-कभी रात में उसे विपरीत दिशा से एक कार उसकी ओर आती हुई दिखाई देती थी जिसकी हेडलाइट्स चमक रही होती थीं जो उसकी आंखों को अंधा कर देती थीं। जब विपरीत दिशा से कोई दूसरी कार आ रही होती है, तो उन्हें अपनी लाइटें डिम (dim) करनी होती हैं, लेकिन ये लोग नहीं करते थे। क्योंकि उनकी लाइटें उसकी आंखों को अंधा कर रही थीं, उसे भी अपनी बस की हेडलाइट्स को और भी अधिक चमक के साथ उनकी ओर चमकाने का मन करता था, ताकि दूसरे ड्राइवर को एक सबक सिखाने के लिए उसे भी अंधा कर सके। उसे अचानक एहसास हुआ कि वह एक मसीह है और उसे बदला नहीं लेना चाहिए और उसने ऐसा न करने का फैसला किया। ध्यान दें कि उस भाई को क्या प्रकाशन मिला कि बदला लेने का क्या मतलब है: किसी दूसरे व्यक्ति को उसी तरह चोट पहुंचाना जिस तरह उसने उसे चोट पहुंचाई!
यदि मैं यीशु द्वारा सिखाए गए सिद्धांत को समझता हूँ, तो मैं उस सिद्धांत को लागू करना तब भी सीख जाऊँगा जब गाड़ी चलाते समय किसी की हेडलाइट्स मेरी आँखों पर पड़ रही हों। यह स्थिति शायद पवित्रशास्त्र में कहीं नहीं लिखी गई होगी, लेकिन मैं उन सिद्धांतों को समझूँगा और रास्ता देने के लिए तैयार रहूँगा, यह पहचानते हुए कि मेरा समय, मेरा पैसा और मेरी ऊर्जा मुख्य रूप से प्रभु के हैं। मैं इंसानों का गुलाम नहीं हूँ और मैं हर ऐरे-गैरे को मुझे अपना गुलाम बनने नहीं दूँगा। मैं मुख्य रूप से प्रभु का दास हूँ और मैं इंसानों का गुलाम नहीं बनूँगा।"
तो अगर मैं उन बातों को ध्यान में रखता हूँ, तो मैं इन सिद्धांतों को समझता हूँ: मैं कभी बदला नहीं लेना चाहता, मैं उस व्यक्ति के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहता जैसा वह मेरे साथ करता है, और मैं उसे उसी तरह जवाब नहीं देना चाहता जैसा उसने मुझसे बात की। मैं झुकना चाहता हूँ (या रास्ता देना चाहता हूँ), मैं दयालु बनना चाहता हूँ, और मैं अपने अधिकार छोड़ना चाहता हूँ।