द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया नेता
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एक आत्मिक अगुवे के लिए सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, परमेश्वर का बुलावा होगा। उसका काम उसका पेशा नहीं बल्कि उसकी बुलाहट होगी।

कोई भी स्वयं को आत्मिक अगुवे के रूप में नियुक्त नहीं कर सकता। "उसे इस कार्य के लिए परमेश्वर द्वारा बुलाया जाना चाहिए" (इब्रानियों 5:4 – टीएलबी अनुवाद)। यह एक ऐसा सिद्धांत है जिसे बदला नहीं जा सकता। अगला पद आगे कहता है कि यीशु ने भी स्वयं को हमारा महायाजक नियुक्त नहीं किया। पिता ने उसे नियुक्त किया। यदि ऐसा है, तो यह बात हमारे लिए, हमारी बुलाहट में और कितनी अधिक सच होनी चाहिए।

आज त्रासदी यह है कि भारत में अधिकांश "मसीही सेवक" अपनी आजीविका कमाने के लिए काम कर रहे हैं। यह उनके लिए एक पेशा है। उन्हें परमेश्वर द्वारा नहीं बुलाया गया है।

"पेशा" और "बुलाहट" में बहुत अंतर है। मुझे मेरा आशय समझाने दीजिए। मान लीजिए कि अस्पताल में एक बीमार बच्चा है और एक नर्स अपनी शिफ्ट-ड्यूटी पर 8 घंटे तक उसकी देखभाल करती है। फिर वह नर्स घर चली जाती है और उस बच्चे के बारे में सब भूल जाती है। उस बच्चे के लिए उसकी चिंता केवल 8 घंटे तक थी। अब उसके पास करने के लिए अन्य काम भी हैं, जैसे फिल्में देखना और टेलीविजन देखना। अगले दिन जब वह काम पर वापस जाती है तब तक उसे उस बच्चे के बारे में दोबारा सोचने की ज़रूरत नहीं होती है। लेकिन उस बच्चे की माँ 8 घंटे की शिफ्ट में काम नहीं करती है! जब उसका बच्चा बीमार हो तो वह फिल्में देखने नहीं जा सकती। व्यवसाय और बुलाहट के बीच यही अंतर है।

यदि आप इस उदाहरण को अपने चर्च में विश्वासियों की देखभाल करने के तरीके पर लागू करते हैं, तो आपको पता चल जाएगा कि आप एक नर्स हैं या एक माँ!

पौलुस ने 1 थिस्सलुनीकियों 2:7 में कहा, “परन्तु जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रह कर कोमलता दिखाई है। और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे”।

पौलुस ने न केवल उन मसीहियों को परमेश्वर का सुसमाचार बल्कि अपना जीवन भी प्रदान किया। कोई भी सेवकाई जो इस तरह से नहीं की जाती वह वास्तव में मसीही सेवकाई नहीं है। पौलुस ने इस तरह से परमेश्वर की सेवा की क्योंकि उसे सेवकाइ के लिए बुलावा मिला था। उसने इसे पेशे के तौर पर नहीं अपनाया था।

प्रभु की सेवा करना अद्भुत है। यह दुनिया की सबसे महान चीज़ है। पृथ्वी पर किसी भी चीज़ की तुलना इसके साथ नहीं की जा सकती - लेकिन केवल तभी जब आपको बुलाया गया हो। इसे एक पेशे तक सीमित नहीं किया जा सकता।

परमेश्वर ने मुझे 6 मई, 1964 को अपनी (पूर्णकालिक) सेवा करने के लिए बुलाया, जब मैं भारतीय नौसेना में एक अधिकारी था। मैंने तब अपना इस्तीफा नौसेना अधिकारियों को सौंप दिया। लेकिन यह वैसा ही था जैसे मूसा ने फिरौन से इस्राएलियों को जाने देने के लिए कहा हो! भारतीय नौसेना ने मुझे रिहा नहीं किया। इसमें दो साल लग गए और बार-बार आवेदन करने के बाद आखिरकार उन्होंने मुझे - चमत्कारिक ढंग से - परमेश्वर के सही समय पर रिहा कर दिया।

परमेश्वर द्वारा बुलाए जाने से मेरे जीवन में बहुत फर्क आया है।

सबसे पहले, अब मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे या मेरी सेवकाइ के बारे में क्या सोचते हैं, क्योंकि कोई और मेरा स्वामी है और मुझे केवल उसे ही जवाब देना है।

दूसरा, जब भी मुझे अपनी सेवकाइ में किसी परीक्षण या विरोध का सामना करना पड़ता है, तो मैं प्रभु पर भरोसा कर सकता हूं कि वह मेरे साथ खड़ा होगा और मुझे अनुग्रह देगा - और ऐसा अक्सर होता है।

तीसरी बात, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे पैसे मिलते हैं या नहीं, और मुझे खाने के लिए खाना मिलता है या नहीं। अगर मुझे भोजन और पैसा मिलता है, तो अच्छा है। अगर मुझे खाना या पैसा नहीं मिलता तो भी मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं परमेश्वर की सेवा करना बंद नहीं कर सकता, सिर्फ इसलिए कि मुझे पैसे या भोजन नहीं मिला - क्योंकि परमेश्वर ने मुझे बुलाया है।

मैं अपनी बुलाहट से छुट नहीं सकता। मैं वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हूं जो वेतन न मिलने या खाना न मिलने पर काम करना बंद कर दूं! यह माँ और उसके बच्चे के मामले जैसा है। यदि एक नर्स को एक माह का वेतन नहीं दिया गया तो वह काम करना बंद कर देगी। लेकिन एक मां कभी नहीं रुक सकती। उसे किसी भी हालत में वेतन नहीं मिलता! और वह अपने बच्चे की देखभाल करेगी, भले ही उसे कोई भोजन या पैसा न मिले! इस प्रकार प्रेरितों ने प्रभु की सेवा की।

परमेश्‍वर की ओर से बुलाया जाना कितनी महिमामय बात है!