जो कुछ परमेश्वर ने आपके लिए किया है, उसे देखते हुए आपका परमेश्वर के लिए एक पर्याप्त प्रत्युत्तर क्या हो सकता है? यह काफ़ी नहीं होगा कि आप उससे सिर्फ़ आभार के कुछ शब्द बोल दे। रोमियों 12 (पूरा अध्याय) इस सवाल का उत्तर है। “परमेश्वर की दया की भरपूरी” को देखते हुए आपको यह करना चाहिए।
1. सबसे पहले, अपनी देह को एक जीवित बलिदान के रूप में उसे अर्पित करे (रोमियों 12:1)। “बलिदान” शब्द यह बताता है कि आपकी देह को प्रभु को देते हुए आपको कुछ क़ीमत चुकानी होगी। कुछ ऐसा होगा जिसका बलिदान किया जाना चाहिए – और वह आपकी सशक्त स्व-इच्छा होगी जो आपकी देह को इस्तेमाल करना चाहती है – आपकी आंखें, हाथ, जीभ, अनुभूतियाँ और मनोवेग आदि जिन्हें आप अपने आपको प्रसन्न करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
2. अपने मन को अर्पित करे (रोमियों 12:2), कि उसे नया बनाया जा सके – अर्थात लोगों और हालातों को इस तरह देखना जैसे परमेश्वर उन्हें देखता है। ये वे बातें हैं जिनमें आपको अपने आपको शुद्ध रखना होगा – उस अशुद्धता से जो लड़कियों को देखने से होती है, उस कड़वाहट से जो उन लोगों को देखने से होती है जिन्होने आपका नुक़सान किया है, उस पक्षपात से जो उन्हें देखने से होता है जिन्हें आप पसंद या नापसंद करते हैं, और उस अविश्वास, चिंता और भय से जो कि आपके हालातों या भविष्य को देखने के तरीक़े से आते हैं। अपने आप से हमेशा यह पूछते रहे, “परमेश्वर इस व्यक्ति या इस परिस्थिति को कैसे देखता है?” और उस तरीक़े से देखने के अलावा बाक़ी हर एक तरीक़े से अपने आप को शुद्ध करें।
3. अपने आप को बढ़-चढ़कर न समझें (रोमियों 12:3)। आपके आत्मिकता का सही मापदंड आपके ज्ञान या उत्साह का माप नहीं है, बल्कि वह मापदंड है जो आपके विश्वास का है।
4. मसीह की देह का निर्माण करने के लिए उन सभी दान-वरदानों और प्रतिभाओं का उपयोग करें जो परमेश्वर ने आपको दिए हैं (रोमियों 12:4-8)। उन्हें उस मनुष्य की तरह भूमि (संसार) में न दबा दें जिसे एक तोड़ा दिया गया था। प्रभु की सेवा करने के लिए उत्साही हो (रोमियों 12:11) और अक्सर प्रार्थना करें (= परमेश्वर की सुनें और उस से बात करें) (रोमियों 12:12)।
5. जो बुरा है उससे घृणा करें और जो भला है उसे थामे रहे (रोमियों 12:9)। दूसरी बात को पूरा करने से आपके लिए पहली बात को पूरा करना आसान हो जाएगा।
6. सभी भाइयों से प्रेम करें और उनका आदर करें क्योंकि वे यीशु के छोटे भाई है (रोमियों 12: 9,10)। उनके साथ भलाई करते रहे (रोमियों 12:13)। जब उनके साथ कुछ अच्छा हो तो उसमें ख़ुशी मनाएँ और जब कुछ बुरा हो तो शोक मनाएँ (रोमियों 12:15)। सभी के प्रति एक नम्र व दीन मनोभाव रखें - ख़ासतौर पर उनके प्रति जो ग़रीब है और मसीह की देह में जिनके पास कम योग्यताएं है (रोमियों 12:16)।
7. सभी मनुष्यों से प्रेम करें और उन्हें आशीष दें, ख़ास तौर पर उन्हें जिन्होंने आपके साथ बुरा किया हैं (रोमियों 12:14, 17-21)। जहाँ तक हो सके सबके साथ शांति से रहें। जिन लोगों ने आपके साथ कुछ बुराई की है, उनसे कभी बदला लेना न चाहे और न ही उनका बुरा चाहे। उनके साथ भलाई करें और इस तरह बुराई को भलाई से जीत ले। पूरे संसार में ऐसे लोग भरे हुए हैं जो बुराई को अन्य ज़्यादा बुराई से जीत लेना चाहते हैं। लेकिन बुराई कभी भी बुराई पर विजय नहीं पा सकती। लेकिन सिर्फ़ भलाई ही बुराई को जीत सकती है, क्योंकि भलाई ही बुराई से ज़्यादा शक्तिशाली होती है। यीशु ने कलवरी पर यही प्रदर्शित किया था। जो सताव परमेश्वर आपकी तरफ़ आने देता है, उसमें धीरज से सहने वाले बने और इस आशा में आनंद मनाए कि वे सब इस तरह से तैयार किए गए हैं कि आपको और ज़्यादा यीशु जैसा बना सके (रोमियों 12:12)।
ये कुछ ऐसे तरीक़े हैं जिनके द्वारा हम यह साबित कर सकते हैं कि उन सब बातों के लिए जो उसने हमारे लिए की है, और उसकी दया की इस भरपूरी के लिए जो हमें बार-बार क्षमा करने में उसने दिखाई है, हम वास्तव में उसके बड़े आभारी हैं।