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परमेश्वर ने शैतान और हमारी लालसाओं को शक्तिशाली होने की अनुमति दी है कि हम यह कल्पना करने वाले न हो जाएं कि हम अपनी शक्ति से उन पर जय पा सकते हैं। हम परमेश्वर की सामर्थ्य पाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। जब इस्राएल के जासूसों ने कनान के रहने वालों से अपनी तुलना की तो उन्होंने स्वयं को टिड्डियों की तरह पाया। फिर भी यहोशू और कालेब ने परमेश्वर की सामर्थ्य में भरोसा रखा और देश में घुसकर उन भीमकाय दैत्यों को मार डाला। अपनी सभी लालसाओं पर जय पाने के लिए हमें ऐसी आत्मा की ज़रूरत है। इसलिए विश्वास से यह कहते रहें, "मैं परमेश्वर की सामर्थ्य द्वारा शैतान और अपनी लालसाओं पर जय पा सकता हूँ, और मैं इन पर जय पाऊँगा।"

हरेक प्रलोभन/परीक्षा में आपके सामने दो रास्ते खुले होते हैं- (i) भोग-विलास का रास्ता, (ii) पीड़ा का रास्ता, जहाँ आप शरीर को उस सुख से वंचित करते हैं जिसके लिए वह तरस रहा है। दूसरा रास्ता ही "देह में दुःख उठाने" का रास्ता है (1 पत. 4:1)। आप जैसे-जैसे सामना करते और पीड़ा सहते रहेंगे, तब अंततः आप पाप करने की बजाय मरना ज़्यादा पसन्द करने लगेंगे। तब आप “लहू बह जाने तक पाप से संघर्ष करने वाले" बन जाएंगे (इब्रानियों 12:4)

एक खिलाड़ी अपने आपको अनेक क्षेत्रों में अनुशासित करता है। वैसे ही, अगर आप भी शैतान पर प्रबल होना और इस स्वर्गीय दौड़ को अंतत: जीतना चाहते हैं, तो आपको भी अपनी शारीरिक लालसाओं को अनुशासित करना चाहिए। पौलुस ने कहा, “मैं अपनी देह को अनुशासित करता हुए उससे वह करवाता हूँ जो उसे करना चाहिए, वह नहीं जो देह करना चाहता है। वर्ना मैं दूसरों को प्रचार करके स्वयं अयोग्य ठहरूँगा" (1 कुरि. 9:27 - लिविंग)

प्रलोभन/परीक्षा एक विचार के रूप में हमारे मन में आती है। हमें उसका फौरन विरोध करते हुए सामना करना चाहिए। लेकिन शुरूआत में जब हम उस पर जय पाने की कोशिश करते हैं, तो हम आमतौर पर इसका विरोध करने में तब तक सफल नहीं होते जब तक कि हम कम से कम कुछ सेकंड के लिए इसमें शामिल नहीं हो जाते। इसकी वजह यह है कि बहुत सालों से हम एक तरह का जीवन जीने के आदि हो चुके हैं। हमें तब तक संघर्ष करते रहना होगा जब तक हम इस समय-के-विलम्ब को घटा कर उसे शून्य नहीं कर देते। हम जैसे ही पाप करें, हमें उसी क्षण उसका अंगीकार करते हुए उससे मन फिरा चाहिए और उसके लिए शोक करना चाहिए।

जब भी हमें प्रलोभनों का दबाव हमारे सहने से ज्यादा महसूस होने लगे और हमें ऐसा लगने लगे कि हम उसके सामने झुक जाएंगे, तब हमें तुरन्त मदद के लिए वैसे ही पुकारना चाहिए जैसे पतरस ने उस समय पुकारा था जब वह सागर में डूबने लगा था (मत्ती 14:30 )। कृपा के सिंहासन के पास मदद के लिए दौड़े जाने का यही अर्थ होता है। आपका पाप से भागना और पाप के ख़िलाफ संघर्ष करना दोनों ही परमेश्वर के सम्मुख इस बात का सबूत हैं कि आप अपने जीवन में पाप पर जय पाने के लिए संकल्प-बद्ध हैं। और तब परमेश्वर बड़ी सामर्थ्य के साथ आपकी मदद करेगा।