मनुष्य की तुलना भेड़ों से की जाती है और भेड़ों में बिना सवाल किए भीड़ के पीछे चलने की प्रवृत्ति होती है। हालाँकि, यीशु आए और उन्होंने हमें परमेश्वर के वचन द्वारा हर चीज की जाँच करने की शिक्षा दी। फरीसियों ने मानवीय परंपराओं को ऊँचा उठाया। यीशु ने परमेश्वर के वचन को ऊँचा उठाया। हमें परमेश्वर के हर एक वचन के अनुसार जीना है - और हर उस मानवीय परंपरा को अस्वीकार करना है जो परमेश्वर के वचन के विरुद्ध है (मत्ती 4:4)।
यीशु जिस लड़ाई में फरीसियों के साथ लगातार लगे हुए थे, वह परमेश्वर के वचन बनाम मनुष्यों की परंपराओं की युगों पुरानी लड़ाई थी। आज कलीसिया में भी हम उसी लड़ाई में लगे हुए हैं। परमेश्वर का वचन ही एकमात्र स्वर्गीय ज्योति (प्रकाश) है जो हमारे पास इस पृथ्वी पर है। और जब परमेश्वर ने पहली बार प्रकाश की सृष्टि की, तो उन्होंने तुरंत इसे अंधकार से अलग कर दिया। अंधकार पाप और मानवीय परंपराएं दोनों है। इसलिए हमें पाप और मानवीय परंपराओं दोनों को परमेश्वर के शुद्ध वचन से अलग करना चाहिए - ताकि कलीसिया में कोई मिलावट न हो।
क्रिसमस
क्रिसमस पर विचार करें, जिसे कई लोग यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। सभी धर्मों के दुकानदार क्रिसमस का उत्सुकता से इंतज़ार करते हैं, क्योंकि यह वह समय होता है जब वे बहुत लाभ कमा सकते हैं। यह एक व्यावसायिक त्योहार है - आध्यात्मिक नहीं। क्रिसमस कार्ड और उपहारों पर लाखों डॉलर/रुपये खर्च किए जाते हैं। इस समय शराब की बिक्री भी बढ़ जाती है।
तो क्या यह वास्तव में परमेश्वर के पुत्र का जन्मदिन है, या 'किसी दूसरे यीशु' का?
सर्वप्रथम आइए हम परमेश्वर के वचन को देखें। बाइबिल हमें बताती है कि जिस रात यीशु का जन्म बैतलहम में हुआ था, उस रात चरवाहे अपनी भेड़ों के साथ यहूदिया के खेतों में बाहर थे (लूका 2:7-14)। इज़राइल में चरवाहे अक्तूबर के बाद और फरवरी तक कभी भी अपने झुंडों को रात में खुले खेतों में नहीं रखते थे - क्योंकि इन महीनों में वहाँ का मौसम बरसात वाला और ठंडा दोनों होता था। इसलिए असली यीशु का जन्म मार्च और सितंबर के बीच किसी समय हुआ होगा। तो 25 दिसंबर 'किसी और यीशु' का जन्मदिन होना चाहिए जिसे गैर-धर्मांतरित पुरुषों द्वारा एक अनजान मसीही जगत पर थोप दिया गया है!
इसके अलावा, भले ही हमें यीशु के जन्म की सही तारीख पता होती, फिर भी सवाल यह होता कि क्या परमेश्वर ने अपनी कलीसिया को इसे मनाने की इच्छा व्यक्त की थी? यीशु की माँ मरियम को निश्चित रूप से यीशु के जन्म की सही तारीख पता होगी। और वह पिन्तेकुस्त के दिन के बाद कई वर्षों तक प्रेरितों के साथ रहीं। फिर भी यीशु की जन्मतिथि का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। यह क्या दर्शाता है? बस यही - कि परमेश्वर ने जानबूझकर यीशु के जन्म की तारीख को छिपाया, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कलीसिया इसे मनाए। यीशु एक सामान्य नश्वर (मनुष्य मात्र) नहीं थे जिनका जन्मदिन साल में एक बार मनाया जा सकता था। वह परमेश्वर के पुत्र थे 'जिनके दिनों का न तो हमारी तरह आरम्भ है, (इब्रानियों 7:3)। परमेश्वर चाहते हैं कि हम हर दिन यीशु के जन्म, मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण को पहचानें, न कि केवल साल में एक बार।
पुरानी और नई वाचा के बीच के अंतर को समझना भी हमें यह समझने में सक्षम करेगा कि परमेश्वर अब अपने बच्चों से कोई विशेष 'पवित्र दिन' क्यों नहीं मनवाना चाहता। पुरानी वाचा के अनुसार, इज़राइल में कुछ दिनों को विशेष रूप से पवित्र दिनों के रूप में मनाने की आज्ञा दी गई थी। लेकिन वह केवल एक छाया थी। अब जब मसीह आ गए हैं, तो परमेश्वर की इच्छा है कि हमारे जीवन का हर दिन समान रूप से पवित्र होना चाहिए। नई वाचा के अनुसार, साप्ताहिक सब्त (विश्राम दिवस) को भी समाप्त कर दिया गया है। इसीलिए नए नियम में कहीं भी किसी भी पवित्र दिन का उल्लेख नहीं है (कुलुस्सियों 2:16,17)।
फिर क्रिसमस ने मसीही जगत में प्रवेश कैसे किया? इसका उत्तर है: उसी तरह जैसे शिशु बपतिस्मा, दशमांश, पोप-नीति, वेतनभोगी पादरी और कई अन्य मानवीय परंपराओं और पुरानी वाचा की प्रथाओं ने प्रवेश किया है- शैतान और अधर्मी लोगों की चालाकी से।
"जब सम्राट कॉन्सटेन्टाइन ने चौथी शताब्दी में ईसाई धर्म को रोम का राजधर्म बना दिया, तो भीड़ की भीड़ ईसाई बन गई - लेकिन केवल 'नाम के लिए' - बिना किसी हृदय परिवर्तन के और इसलिए, वे अपने दो महान वार्षिक मूर्तिपूजक त्योहारों को छोड़ना नहीं चाहते थे - ये दोनों (त्योहार) उनके सूर्य की पूजा से जुड़े थे। एक 25 दिसंबर को सूर्य-देवता का जन्मदिन था, जब दक्षिणी गोलार्द्ध में गया हुआ सूर्य अपनी वापसी यात्रा (शीतकालीन संक्रांति) शुरू करता था। दूसरा मार्च/अप्रैल में वसंत उत्सव था, जब वे सर्दियों के चले जाने और गर्मियों की शुरुआत का जश्न मनाते थे जिसे उनके सूर्य-देवता लाये थे । उन्होंने अपने सूर्य-देवता का नाम बदलकर 'यीशु' कर दिया और अपने दो महान त्योहारों को मनाना जारी रखा, और आज ईसाई त्योहारों के रूप में उन्हें क्रिसमस और ईस्टर कहा जाने लगा!
आज के क्रिसमस रीति-रिवाज यूरोप में ईसाई काल से पहले के समय से विकसित हुए हैं - और ये मूर्तिपूजक, धार्मिक प्रथाओं, किंवदंतियों और परंपराओं से मिलकर आए हैं। मसीह के जन्म की सटीक तारीख और वर्ष कभी भी संतोषजनक ढंग से तय नहीं हो पाए हैं; लेकिन जब ईस्वी 440 में कलीसिया के पादरियों ने इस घटना को मनाने के लिए एक तारीख का फैसला किया, तो उन्होंने शीतकालीन संक्रांति का दिन चुना, जो उन दिनों के लोगों के दिमाग में मजबूती से बसा हुआ था - और जो उनका सबसे महत्वपूर्ण त्योहार था। जैसे-जैसे ईसाई धर्म मूर्तिपूजक देशों के लोगों के बीच फैला, शीतकालीन संक्रांति के उत्सव की कई प्रथाएं ईसाई धर्म की प्रथाओं के साथ जुड़ने लगीं।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका (धर्मनिरपेक्ष इतिहास पर प्रमाणित स्रोत) का क्रिसमस की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित कथन है:
“प्राचीन रोमन त्योहार 'सैटर्नलिया' शायद क्रिसमस के आधुनिक उत्सव से सबसे निकटता से जुड़ा हुआ है। यह त्योहार शीतकालीन संक्रांति के समय के आसपास होता था और बुआई के मौसम के अंत का प्रतीक था। इस जीवंत त्योहार को मनाने के लिए कई दिनों तक खेल, दावतें और उपहार दिए जाते थे, और काम-काज निलंबित कर दिए जाते थे। अंतिम दिनों में, मोमबत्तियाँ, फलों के मोम के मॉडल और मोम की मूर्तियाँ उपहार में देना आम बात थी। ‘सैटर्नलिया’ का क्रिसमस और नए साल के समारोहों पर सीधा प्रभाव दिखाई पड़ता है। तथ्य यह है कि क्रिसमस बाद में 'अपराजेय सूर्य' के जन्मदिन पर मनाया जाएगा, जो एक और रोमन त्योहार था, इसने इस मौसम को एक सौर पृष्ठभूमि दी और इसे रोमन नए साल से जोड़ा, जब घरों को हरियाली और रोशनी से सजाया जाता था और बच्चों और गरीबों को उपहार दिए जाते थे।”
(https://www.britannica.com/topic/Winter-Holidays)
ये मूर्तिपूजक रीति-रिवाज बेबीलोन के उस धर्म से शुरू हुए जिसे निम्रोद (उत्पत्ति 10:8-10 देखें) ने शुरू किया था। परंपरा हमें बताती है कि निम्रोद की मृत्यु के बाद, उसकी पत्नी सेमीरामिस ने एक नाजायज बच्चे को जन्म दिया, जिसे उसने दावा किया कि वह पुनर्जीवित निम्रोद है। इस प्रकार 'माँ और बच्चे' की पूजा शुरू हुई, जिसे सदियों बाद नाममात्र के ईसाइयों द्वारा 'मरियम और यीशु' के रूप में बदल दिया गया।
इस बाल-देवता का जन्मदिन प्राचीन बेबीलोन के लोगों द्वारा 25 दिसंबर को मनाया जाता था। सेमीरामिस 'स्वर्ग की रानी' (यिर्मयाह 44:19) थी, जिसकी सदियों बाद इफिसुस में 'डायना' और 'आरतिमिस' (प्रेरितों के काम 19:28) के रूप में पूजा की गई।
सेमीरामिस ने दावा किया कि रातों-रात एक सूखे ठूंठ से एक हरा-भरा सदाबहार पेड़ उग आया है। यह निम्रोद के पुनर्जीवित होने और मानवता के लिए स्वर्ग के उपहार लाने का प्रतीक था। इस प्रकार एक सनोवर के पेड़ को काटने और उस पर उपहार लटकाने की प्रथा शुरू हुई। और यही से 'क्रिसमस ट्री' की उत्पत्ति हुई!
परमेश्वर का वचन या मनुष्य की परंपरा
क्रिसमस मनाने के पीछे मनुष्य की उन परंपराओं का पालन करने का एक अधिक घातक सिद्धांत छिपा है, जिनका परमेश्वर के वचन (बाइबिल) में कोई आधार नहीं है। परंपरा की यह शक्ति इतनी प्रबल है कि कई विश्वासी, जो अन्य क्षेत्रों में पवित्रशास्त्र का पालन करते हैं, उनके लिए भी क्रिसमस मनाना छोड़ना कठिन हो जाता है।
यह आश्चर्यजनक है कि कई विश्वासी उस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं जिसे धर्मनिरपेक्ष लेखकों (जैसे ऊपर उद्धृत 'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के लेखक) ने भी स्पष्ट रूप से समझा है – कि क्रिसमस मूल रूप से एक मूर्तिपूजक (pagan) त्योहार है। केवल नाम बदल देने से यह त्योहार ईसाई नहीं बन जाता!
जैसा कि हमने शुरुआत में कहा था, यीशु इसी मुद्दे पर फरीसियों के साथ निरंतर संघर्ष में लगे रहे - मनुष्य की परंपराएं बनाम परमेश्वर का वचन। उन्हें पाप के विरुद्ध प्रचार करने की तुलना में पूर्वजों की उन खोखली 'परंपराओं' का विरोध करने के कारण अधिक विरोध का सामना करना पड़ा। यदि हम भी उनके जितने ही विश्वासयोग्य होंगे, तो हमारा अनुभव भी बिल्कुल वैसा ही होगा।
केवल परमेश्वर का वचन ही हमारा मार्गदर्शक है - उन क्षेत्रों में जहाँ धर्मी मनुष्य भी परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करते, वहां उनका उदाहरण भी हमारा आधार नहीं होना चाहिए। 'परमेश्वर सच्चा ठहरे और हर एक मनुष्य झूठा' (रोमियों 3:4)। बरैया के लोगों ने पौलुस की शिक्षाओं की जाँच करने के लिए भी पवित्रशास्त्र में खोज की, और पवित्र आत्मा ने इसके लिए उनकी प्रशंसा की (प्रेरितों के काम 17:11)। यह हम सभी के लिए अनुसरण करने योग्य एक उत्तम उदाहरण है।
दाऊद परमेश्वर के मन के अनुसार चलने वाला व्यक्ति था। फिर भी, चालीस वर्षों तक उसने इस्राएलियों को मूसा के पीतल के सांप की पूजा करने की अनुमति दी, बिना यह महसूस किए कि यह परमेश्वर के लिए एक घृणित वस्तु थी। उसे इतनी स्पष्ट मूर्तिपूजा पर भी ज्योति (समझ) नहीं मिली। वह एक बहुत छोटा राजा, हिजकिय्याह था, जिसने इस मूर्तिपूजक प्रथा का पर्दाफाश किया और उसे नष्ट कर दिया (2 राजा 18:1-4)। हम धर्मी पुरुषों के पवित्र जीवन का अनुसरण तो कर सकते हैं, लेकिन मानवीय परंपराओं पर उनकी समझ की कमी का नहीं। हमारी सुरक्षा केवल परमेश्वर के वचन की शिक्षा का पालन करने में है, न कि इसमें कुछ जोड़ने या इसमें से कुछ घटाने में।
दूसरों का न्याय न करें
अंत में क्रिसमस मनाने वाले सच्चे विश्वासियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हम केवल क्रिसमस न मनाने से आध्यात्मिक नहीं बन जाते। और जो लोग इस त्योहार को मनाते हैं, वे केवल इस कारण 'सांसारिक' विश्वासी नहीं हो जाते। आध्यात्मिक लोग वे हैं जो प्रतिदिन स्वयं का इंकार और पवित्र आत्मा की दैनिक परिपूर्णता के मार्ग पर यीशु का अनुसरण करते हैं—चाहे वे क्रिसमस मनाते हों या नहीं।
इसलिए जब हम उन विश्वासियों से मिलते हैं जो इन त्योहारों को मनाते हैं, तो हमें इतना उदार होना चाहिए कि हम यह समझ सकें कि वे शायद इस त्योहार की मूर्तिपूजक उत्पत्ति से अनजान हों। और इसलिए, जब वे इसे मनाते हैं, तो वे किसी भी तरह से पाप नहीं कर रहे होते हैं। दूसरी ओर, यदि हम उनका न्याय करते हैं—तो हम पाप कर रहे होंगे—क्योंकि हम सत्य को जानते हैं।
चूंकि 25 दिसंबर आमतौर पर सभी के लिए एक छुट्टी का दिन होता है और इसके आसपास के दिन भी स्कूलों के लिए छुट्टियां होती हैं, इसलिए कई लोग इस समय का उपयोग साल के अंत में पारिवारिक पुनर्मिलन के लिए करते हैं – जो कि एक बहुत अच्छी बात है और चूंकि कुछ लोग केवल 25 दिसंबर को ही चर्च की सभाओं में आते हैं – इसलिए चर्चों के लिए इस तारीख को सभाएं आयोजित करना अच्छा है, ताकि वे ऐसे लोगों को सुसमाचार सुना सकें और उन्हें समझा सकें कि यीशु लोगों को उनके पापों से बचाने के लिए पृथ्वी पर आए थे और उन्होंने हमारे लिए मृत्यु और शैतान पर विजय प्राप्त की।
ईसाई धर्म की शुरुआत में, कुछ ईसाई सब्त मनाते थे - जो क्रिसमस की तरह ही एक गैर-ईसाई यहूदी धार्मिक त्योहार था। इसलिए पवित्र आत्मा ने पॉल को रोमियों 14 लिखने के लिए प्रेरित किया ताकि दूसरे ईसाइयों को उनका न्याय करके पाप करने से रोका जा सके। यही चेतावनी उन लोगों पर भी लागू होती है जो क्रिसमस मनाने वालों का न्याय करते हैं।
"जिसका विश्वास कमज़ोर है, उसे स्वीकार करो, जो विश्वास में कमजोर हैं, उसे स्वीकार कर लो, परन्तु उसके विचारों पर न्याय करने की इच्छा से नहीं। दूसरे के सेवक पर दोष लगाने वाला तू कौन है? कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिनों को एक समान मानता है। हर एक व्यक्ति अपने ही मन में पूर्ण रूप से निश्चित होना चाहिए। जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिए मानता है; और जो नहीं मानता, वह प्रभु के लिए नहीं मानता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है। परन्तु तू अपने भाई पर क्यों न्याय करता है? या तू अपने भाई को तुच्छ क्यों जानता है? क्योंकि हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे और हम में से हर एक को (अकेला) परमेश्वर को अपना लेखा देना होगा(रोमियों 14:12)।
और क्रिसमस पर इस अध्ययन को समाप्त करने के लिए यह सबसे उत्तम शब्द है।