द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी और उसे बींच में खड़ा करके यीशु से कहा, "हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते पकड़ी गई हैं, व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों पर पथराव करे। अतः तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?" उन्होंने उसको परखने के लिए यह बात कही ताकि उसपर दोष लगाने के लिऐ कोई बात पाएं (यूहन्ना 8:3-6)।

परमेश्वर ने मूसा को व्यभिचारी स्त्री के विषय जो नियम दिये थे उसके पिछे परमेश्वर के दील में क्या था यह फरीसी समझ नहीं पाए। परमेश्वर यह नहीं चाहता था कि व्यभिचारी स्त्री पथराव कर मार डाली जाय परन्तु यह कि उस व्यभिचार से उसे बाहर निकाले। सही मायने में देखे तो फरीसी यहा व्यवस्था का पालन करने में रूची नहीं रखते थे और वे चाहते थे कि यीशु मसीह में त्रृटीयां पाकर उस पर दोष लगाए। उन्होंने उस पापी स्त्री को दोषित किया और अब वे चाहते है कि परमेश्वर के पवित्र पुत्र को भी दोष लगाएं। फरीसियों को परमेश्वर का भय नही था। वे चाहते थे कि उसके अनुयायियों पर दोष लगाए जैसे कि वे दूसरों पर दोष लगाते है।

फरीसियों ने सोचा कि यीशु को दोष में पकड़ने का यह अच्छा मौका है। यदि वह कहता कि ''पथराव कर मार डालो' तब वे उसे यह कहकर दोष लगाते कि इसको दया नहीं है; यदि वह कहता कि पथराव मत करो तो वे यह कहकर दोष लगाते कि वह मूसा की व्यवस्था का पालन नहीं करता। यह उस सिक्के के द्वारा निर्णय के समान है जिसे उपर उछाल दिया जाता और कहते है, "चित आने पर हम जितेंगे और पट आने पर तुम हारोगे।" किसी भी रीति से हम जितेंगे; परन्तु वे जीत न सके वे हार गए। यीशु ने तुरंत उत्तर नहीं दिया, परन्तु बैठ गये और अपने पिता के शब्द का इंतजार किया। जैसे ही यीशु ने पिता की ओर से उत्तर सुना उनसे कह दिया, "तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसे पत्थर मारे।" परमेश्वर की ओर से आया हुआ एक वाक्य उस समस्या को सुलझाने के लिये पर्याप्त था। यदि आप भी पवित्र आत्मा की वाणी को सुनोगे तो ऐसी परिस्थितियों में एक बड़ा संदेश दे सकोगे। एक वाक्य आपके शत्रुओं/विरोधियों के मुखों को बन्द कर सकता है। परमेश्वर आज भी जो फरीसी नहीं परन्तु दूसरों पर दोषारोपण करते है उन को ऐसी ज्ञान की बाते बताता है। ऐसे लोगों के लिये परमेश्वर की वाचा है, "मै तुम्हे बोल आरै बुद्धि दूंगा कि सब विरोधी आपका सामना या खण्डन न कर सकेंगे" (लूका 21:15)।

क्या यीशु मसीह व्यभिचार के विरोधी थे? हाँ। अवश्य ही थे। परन्तु वह व्यभिचार से बढ़कर न्याय के विरुद्ध थे। यहां पर हम अच्छी रीति से देखते है कि यीशु के एक ओर व्यभिचारणी स्त्री है और दूसरी ओर न्यायी फरीसी। परन्तु अंत में हम देखते है कि व्यभिचारी स्त्री प्रभु यीशु के चरणो के पास बैठी, परन्तु दूसरे लोग यीशु के शब्द सुनकर चले गये। स्त्री की नज़रों में व्यभिचार ही सबसे बड़ा तिनका माना जाता है जिसकी तुलना विधिवाधिता के भारी लट्टे से की गई है और फरीसी की नज़रों में नफरत।

अब अपने आप से पूछे कि कितनी बार आपने अपने भाई बहनों पर दोषारोपण किया हैं जो व्यभिचार के पाप से कई गुना बुरा है। सोचिए आपने उनके पिठ पिछे जो बाते किया है व कई गुना बुरी है। हर समय आप दोषारोपण में लिप्त रहते है। आपके आंखों में जो लट्ठा है वह कठोर न्यायी और दोष देने वाला है। उसने आपको आत्मिक रीति से अंधा किया है। आपने किसे नुकसान पहुंचाया है? औरों को नहीं वरन आपने स्वयं को नुकसान पहुंचाया है।

सोचिए, एक व्यक्ति जिसकी आंखो में तिनका है क्या आंखो का डॉक्टर बन सकता जो दूसरो की आंखों से तिनका निकाल सके? परमेश्वर जो कुछ भी कहता है आप उसे सुने, अपने भाई-बहनों को अकेले छोड़ दे। उनकी आंखो में कुछ ही तिनके है परन्तु आपकी आंखों में जो लट्ठा है वह उनके सब तिनको को इकट्ठा करने से भी बड़ा है।

प्रभु यीशु मसीह दोषारोपण की आत्मा के विरुद्ध में क्यों था? क्योंकि, जब वह स्वर्ग में था उसने शैतान को दिन और रात लोगों पर दोषारोपण करते पाया (प्रकाशितवाक्य 12:10)। जब यीशु मसीह इस पृथ्वी पर आया और देखा कि लोगों में वही दोष लगाने की आत्मा है उसने लोगों को शैतान का स्मरण कराया। प्रभु यीशु ने इस दोषारोपण की आत्मा का घृणा किया और आज भी उसकी घृणा करता है। क्या आप यह आभास करते है जब आप दूसरों को दोषारोपण करते है तब आप यीशु को शैतान की याद दिलाते है? बहुत से विश्वासी इस बात को नहीं देखते क्योंकि लट्ठे ने उनकी आंखों को अंधा कर दिया है।

यदि मैने एक संदेश जो पिछले 30 वर्षों में दिया है तो वह यह है : यदि आत्मिक रूप से बढ़ना चाहते है तो दूसरों का न्याय करना छोड़ दे और स्वयं का न्याय करे। अपने मायक्रोस्कोप का उपयोग दूसरों पर न करे परन्तु स्वयं पर करे। और स्वयं का न्याय करने के बाद में तुम्हे बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है। अपने आप का अधिक न्याय करे। आप कब इसे बन्द करना चाहिये? जब आप पूरी रीति से यीशु के समान बन जाते है। यूहन्ना ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में विश्वासियों से कहा, "जब वह प्रगट होगा हम उसके समान होंगे और जो कोई उस पर आशा रखता है वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है जैसा वह है" (यूहन्ना 3:2-3)।

एक कलीसिया का अगुवा कैसे किसी को सुधारेगा जो कि गलत कर रहा है? दया के साथ - भरपूर दया के साथ, उतनी दया के साथ जितना कि यहोवा ने दिखाया है। यीशु ने व्यभिचार के पाप को अनदेखा नहीं किया जो इस स्त्री ने किया है। नहीं। यीशु मसीह ने बड़ी दया से उससे कहा, "मैं भी तुम्हे दण्ड नहीं देता और उसने उससे कहा कि फिर पाप न करना" (यूहन्ना 8:11)। परमेश्वर का अनुग्रह हमारें पापों को नहीं ढ़कता। वह पहले हमारे पापों को क्षमा करता है उसके बाद हमें चेतावनी देता है कि पाप न करे और उसके बाद वह हमारी सहायता करता है कि हम पाप न करे। सारे फरीसी क्यों चले गए? उन्होंने नम्र हृदय के साथ प्रभु के पास आकर कहना चाहिए था, "प्रभु कृपा कर हमें क्षमा करे। अब मेरे गुप्त पापों पर और दोषारोप के बुरी वृत्ति पर रोशनी पड़ चुकी है। अब मैं जान चुका हूं कि मैं उस स्त्री से भी बुरा हूं। मुझपर दया कर।" परन्तु उनमें से कोई भी प्रभु के पास आकर ऐसा नहीं कहा।

और आपका क्या जो तुम बहुतों में गलतियों को ढुंढ़ रहे हो। क्या आप अपने आप को परमेश्वर को तोड़ने दोगे?

जब लोग मेरे पास आकर क्षमा मांगते है जो उन्होंने मेरे विरुद्ध में कहा और किया, मैने महसुस किया कि वे दुःखी नहीं हुए थे। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वास्तव में उन्होंने अपने पापों का पश्चाताप नहीं किया। वे सिर्फ नियमों का पालन इसलिये करते थे कि वे अपनी समझ को साफ रख सके। मैने उन्हें तुरन्त क्षमा कर दिया परन्तु मुझे निश्चय है कि वे पाप में गिरेंगे क्योंकि वे केवल नियमों का पालन करने वाले है। उन्होंने अपने तरीके से नियम क्रमांक 347 महसुस किया कि : "तुम अपने बड़े भाई के पिठ पिछे बुराई न करना" का उलंघन किया और उन्हें चाहिए था कि माफी मांगे इस लिये वे शिष्टाचार के लिये माफी मांगने के लिये गए ताकि वे नियम क्रमांक 9 - तुमने जिसके प्रति बुरा किया है उनसे क्षमा मांगने का अनुसरन कर सके। परन्तु उनके जीवन में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ और वे अपना जीवन पहले के ही तरह जीते रहे।

जब परमेश्वर हमारे पापों पर अपना प्रकाश डालता है तब उस प्रकाश से हम अंधे होंगे ताकि हम यीशु के चरणों पर एक मुर्दे के समान गिरे और हम अपने आप को समझे कि इस दुनिया का सबसे बड़ा पापी मैं हूं (1 तीमुथियुस 1:15)। क्या आपने इससे पहले ऐसा अनुभव किया? या मैं थोड़ासा फिसल गया हूं? तब आप फरीसी है और यह आपके साथ तब तक अच्छा नहीं हो सकता जब तक कि आप उन लोगों के लिये पश्चाताप नहीं करते जिनकी आंखो में तिनके है और आपने उनपर दोष लगाया। परमेश्वर आपके कठोर दिलों को तोड़।

याकूब 2:13 हमें याद दिलाता है, "क्योंकि जिसने दया नहीं की उसका न्याय बीना दया के होगा" और कलीसिया के अगुवे अक्सर एक नंबर के अपराधी है। और पालकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के प्रति दयारहित न हो।

कलीसिया का अगुवा जो व्यभिचार में गीर जाता है वह कलीसिया को नष्ट नहीं कर सकता क्योंकि हर विश्वासी जानता है कि व्यभिचार एक पाप है और उस अगुवे को तुरंत ही उसके पद पर से हटा दिया जाएगा। परन्तु यदि कलीसिया का अगुवा केवल नियम का आदर करने वाला है तो यह एक खतरनाक बात है क्योंकि वह केवल पवित्रता के विषय में प्रचार करता है। और जिन्हें विधिवाधिता का प्रकाशन नहीं है वह उसी का अनुसरन करेंगे और अपने आप को केवल नियमों का अनुयायी बनाते है। एक अंधे फरीसी की तरह वह दूसरों को भी केवल विधिवाधिता के गहरे गड़हे की ओर अगुवाई करेगा जिसमें वह स्वयं गिरा है।

क्या वास्तव में आपने देखा है कि आपका व्यवहार दूसरों के प्रति न्याय और दोष लगाने का बर्ताव अन्य पापों से भी बुरा है? वह इतना बुरा है कि आप 10 बार व्यभिचार में गिर गये हो। यदि पिछले एक माह में आप 10 बार व्यभिचार में गिर गए हो तो आप कैसे पश्चाताप करोगे? आपको उससे भी अधिक पश्चाताप करना चाहिए क्योंकि कि आपके हृदय में दोष लगाने की अत्यंत बूरी आत्मा है।