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“धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे”(मत्ती 5:8)। हमारे मन में पवित्रता की कमी ही हमारी आँखों को अंधा कर देती है। परमेश्‍वर के बारे में ऐसी बहुत सी बातें हैं जो वह उन लोगों पर प्रकट करता है जिनका मन शुद्ध है। लूका 11:34 में यीशु ने आँख को शरीर का दीपक बताया। मैं उस अंश को मत्ती 5:8 (“धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे”) से जोड़ना चाहता हूँ।

"जब तुम्हारी आंख निर्मल है, तो तुम्हारा सारा शरीर भी उजियाला है" (लूका 11:34)। अगर आप जानना चाहते हैं कि अंधा होने का क्या मतलब है, तो बस अपनी आँखें बंद कर लें और आपको पता चल जाएगा कि अंधापन क्या होता है। बाहर की सारी रोशनी अब अंदर नहीं आ रही है और इसलिए आप कुछ भी नहीं देख सकते । "शरीर का दीया आंख है, पर यदि तेरी आंख बुरी या अंधी या मोतियाबिंद से भरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्धकारमय है। इसलिये चौकस रह कि जो उजियाला तुझ में है वह अन्धकारमय न हो। इसलिये यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, और उसका कोई भाग अन्धकारमय न हो, तो सब कुछ उजियाला हो जाएगा" (लूका 11:34-36)।

यह वचन विवेक के संदर्भ में है। विवेक हृदय की आँख है। जब आप अपना विवेक साफ़ रखते हैं, तो आपका हृदय प्रकाश से भर जाता है, और आप परमेश्वर को देख सकते हैं। लेकिन जब आप अपना विवेक साफ़ रखने की उपेक्षा करते हैं, जिसका अर्थ है कि आपने कुछ गलत किया है और आप उसे स्वीकार नहीं करते हैं - यदि आप इसका दोष अपने ऊपर लेने के बजाय किसी और पर दोष डालने का प्रयास करते हैं - तो आपकी आंखें धीरे-धीरे धुंधली हो जाती हैं और आप परमेश्वर को देखना बंद कर देते हैं। आपके मस्तिष्क में अभी भी बाइबल का पूरा ज्ञान हो सकता है, परन्तु आप परमेश्वर को नहीं देख पाएंगे, क्योंकि इसका मस्तिष्क के ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं है; इसका सम्बन्ध हृदय की पवित्रता से है।

इस वचन को देखने का एक और संभावित तरीका भी है। हम कह सकते हैं कि यह हमारे सभी हालातों में परमेश्वर को देखने का भी संदर्भ देता है जब हमारा हृदय शुद्ध होता है। जब मेरा हृदय शुद्ध होता है, तो मैं चारों ओर देख सकता हूँ और मैं अपने सभी हालातों में, उनके द्वारा किए गए हर काम में और उनके द्वारा कही गई हर बात में परमेश्वर को देख सकता हूँ। मैं कह सकता हूँ कि परमेश्वर सब कुछ नियंत्रित करता है, और यहाँ तक कि दूसरे लोग मेरे साथ जो बुराई करते हैं, मैं देख सकता हूँ कि परमेश्वर उसे मेरे भले के लिए इस्तेमाल कर रहा है। यीशु अपने साथ हुई सबसे बुरी चीज़ में भी परमेश्वर को देख सकता था। जब रोमी सैनिक उसे गेथसेमेन में पकड़ने आए, तो पतरस को बस इतना ही दिखाई दिया कि यह दुष्ट विश्वासघाती यहूदा यीशु मसीह को धोखा दे रहा था और दुष्ट रोमी सैनिक उसके स्वामी को पकड़ने आए थे। लेकिन यीशु ने उन्हें नहीं देखा। उसने कहा, "जो प्याला मेरे पिता ने मुझे दिया है, क्या मैं उसे न पीऊँ?" यहाँ यहूदा इस्करियोती, या फरीसी और महायाजक एक डाकिए के समान हो सकते हैं, जो पत्र रूपी प्याले को पिता की ओर से लेकर आये थे। अगर इस तरह का पत्र आपके प्रियतम का है, तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि डाकिया दुष्ट दिखता है?

यीशु का हृदय शुद्ध था; इसलिए, उसने हर चीज़ में परमेश्वर को देखा। इसीलिए वह पकड़े जाने, अपमानित होने और क्रूस पर चढ़ाए जाने को स्वीकार कर सका। उसका हृदय शुद्ध था और उसने हर चीज़ में परमेश्वर को देखा। जब हम परमेश्वर से पूरे हृदय से प्रेम करते हैं और उसके उद्देश्य के अनुसार बुलाए जाते हैं, तो सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करती हैं (रोमियों 8:28)। यदि हमारा हृदय शुद्ध है, तो परमेश्वर सब कुछ भलाई के लिए करता है, और जब हम उन परिस्थितियों में अन्य लोगों द्वारा हमारे साथ की गई बुराई को देखते हैं जो हमारी इच्छा के अनुरूप नहीं लगती, तो हम कह सकते हैं कि "परमेश्वर वहाँ है।" यही कारण है कि हृदय की शुद्धता का अनुसरण करने में बहुत बड़ी आशीष है।

जैसे-जैसे हम पवित्रशास्त्र को और अधिक समझेंगे, हम पवित्रशास्त्र में यीशु को और अधिक स्पष्ट रूप से देखेंगे। बहुत से लोग पवित्रशास्त्र का अध्ययन करते हैं और यीशु को नहीं देखते हैं। वे एक सिद्धांत देखते हैं और वे एक सिद्धांत के लिए लड़ते हैं। लेकिन जब हमारा हृदय शुद्ध होता है और हमारी आँखें साफ होती हैं, तो वही पवित्रशास्त्र, जहाँ कोई अन्य व्यक्ति एक सिद्धांत देखता है, हम वहाँ यीशु को पातें हैं। हम यीशु की महिमा को देखते हैं जिसे पवित्र आत्मा सामने लाता है, और यह हमारे हृदय को उसकी ओर खींचता है और हमें उसका और अधिक निकटता से अनुसरण करने में सक्षम बनाता है।

हमें अपने हृदय में दिन-रात परमेश्वर के लिए निरंतर रोना चाहिए, जैसा कि यीशु ने विधवा के दृष्टांत में कहा था (देखें लूका 18:7 - "परमेश्वर के चुने हुए लोग दिन-रात उसकी दुहाई देते हैं")। हमें उस विधवा की तरह अपने शत्रु के प्रभाव से मुक्त होने के लिए, पवित्रता और सामर्थ से भरे जीवन के लिए रोना चाहिए, जहाँ हम पवित्र आत्मा की आग को कभी न खोएँ। हमें एड्स की बीमारी से जितना डर लगता है, उससे कहीं ज़्यादा हमें एक भी पापी विचारों (चाहे वह अशुद्धता हो या घृणा या सांसारिकता या धन का प्रेम) से डरना चाहिए। परमेश्वर ने एक समय इस्राएल में कहा था कि वहाँ कोई भी नहीं था जो “परमेश्वर को पाने के लिये उत्साहित हो” (यशायाह 64:7)। यहाँ तक कि तीमुथियुस को भी अपने भीतर मौजूद आत्मा की आग को "फिर से जलाना" पड़ा (2 तीमुथियुस 1:6)। परमेश्वर हमारे अंदर अपने आप कुछ नहीं करता, क्योंकि ऐसा करने से हमारी स्वतंत्र इच्छा खत्म हो जाएगी। लेकिन जब वह हमारे अंदर अपने लिए और हमारे जीवन में अपने सर्वोत्तम के लिए थोड़ी सी भी इच्छा देखता है, तो वह हमारी मदद करने में सक्षम है।

धन्य हैं वे लोग जो अपने सम्पूर्ण हृदय से परमेश्वर और मनुष्यों के सामने अपने विवेक को शुद्ध रखने का प्रयास करते हैं, जैसे पौलुस ने किया था, और जो इस प्रकार हृदय से शुद्ध हैं, क्योंकि वे हर समय परमेश्वर को देखेंगे - वचन में, और अपनी परिस्थितियों में।