द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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''मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया'' (इफिसियों 5:25)। कलीसिया स्थापन करने के लिये हमें कलीसिया पर वैसा ही प्रेम करना होगा जैसा यीशु ने कलीसिया पर किया है। केवल धन और समय देना काफी नहीं। हमें स्वयं को देना होगा और स्वयं का जीवन अर्पण करना होगा।

जब परमेश्वर ने अपने प्रेम को प्रकट करना चाहा तब उसने हमें संसार में से एक उदाहरण दिया - उस माता के प्रेम का उदाहरण दिया जिसका बच्चा अभी शिशु ही है (यशायाह 49:15 देखे)। यदि आप माता को देखेंगे तो उसके प्रेम में आपको समर्पण की आत्मा दिखाई देगी। वह सुबह उठकर देर रात तक समर्पण करती है, स्वयँ को समर्पण करती है और अपने बच्चे के लिये स्वयं को समर्पित करती है। इस समर्पण के बदले में उसे कुछ नहीं मिलता। वह अपने बच्चे के लिये बड़े खुशी से कई वर्षों तक दुःख और तकलीफ उठाती है।

बदले में वह कुछ नहीं चाहती। परमेश्वर भी हमसे ऐसे ही प्रेम करता है और यह परमेश्वर का स्वभावगुण हममें भी दिखे ऐसी वह अपेक्षा करता है। परंतु, संसार में जो संगति है उसमें हम एक दूसरे से इस तरह प्रेम नहीं करते। कई विश्वासी केवल उनपर प्रेम करते हैं जो उनसे सहमत होते हैं और उनकी कलीसिया से जुड़ जाते है। उनका प्रेम संसारिक होता है। माता के समर्पित प्रेम से वह बिल्कुल अलग प्रेम है। हम उस अलौकिक प्रेम की अपेक्षा करें तथा लक्ष्य रखे और उसके लिये प्रयत्न भी करें।

अन्य लोग अपने बच्चे के लिये कुछ समर्पण कर रहे या नहीं ऐसा माता सोचती नहीं या चिन्ता नहीं करती। वह आनन्द से अपने बच्चे के लिये सबकुछ त्याग देती है। जो अपनी कलीसिया को अपने बच्चे के समान समझता है वह औरों के विचारों की चिंता नहीं करता या ऐसा नहीं सोचता की अन्य लोग कलीसिया के प्रति समर्पित नहीं। जो व्यक्ति कलीसिया को अपना बच्चा समझता है वह व्यक्ति आनन्द से अपनी कलीसिया के लिये समर्पित होता है, शिकायत नहीं करता या कुछ अपेक्षा नहीं करता। जो लोग शिकायत करते है कि अन्य कोई कलीसिया के लिये समर्पित नहीं वे मां नहीं परन्तु दायी है। ऐसे दायियों का काम का समय निश्चित होता है। अगले आठ घंटे काम करने वाली दायी समय पर न आए तो यह दायी कुड़कुड़ाने लगती है।

परन्तु, मां प्रतिदिन केवल आठ ही घंटे काम नहीं करती। वह प्रतिदिन 24 घंटे सालोसाल काम करती रहती है। उसके बदले में उसे वेतन नहीं मिलता। उसका बच्चा 20 साल का होने के बाद भी मां का काम समाप्त नहीं होता। केवल मां के पास ही शिशु को पिलाने के लिये प्रतिदिन दूध होता है। दायियों में शिशु को पिलाने के लिये दूध नहीं होता। उसी प्रकार कलीसिया में जो अगुवे माता के जैसे है उनके पास आत्मिक बच्चों के लिये वचन हातेा है कई वद्धृों के पास कलीसिया के लिये वचन नहीं हातेा क्यांिेक वह माता नहीं वरन दायी होते है।

माता अपने बच्चों से वेतन की अपेक्षा नहीं करती। कोई बच्चा मां को उसके देखभाल के लिये पैसे नहीं देता। परन्तु यदि आप अपने मां के समर्पण का वेतन गिनेंगे तो दायी का प्रतिघंटे का वेतन रु.20 होता है। उस अनुसार हमें 20 वर्षों की आयु में मां को रु. 3 दशलक्ष देना होगा। इतना पैसा कोई बच्चा अपनी मां को दे पाएगा?

अब हमारे सामने एक प्रश्न खड़ा होता है : प्रभु के लिये तथा उसकी कलीसिया के लिये मां के जैसा काम करने के लिये कौन तैयार है? कौन बगैर पैसे के काम करेगा? यीशु के आने तक प्रतिदिन कौन समर्पित होकर काम करेगा? यदि एक भी व्यक्ति इस कार्य के लिये तैयार हो तो परमेश्वर उसके द्वारा कलीसिया स्थापित करेगा तथा उसका इतना उपयोग करेगा कि अधुरे मन से बगैर समर्पण के काम करने वाले दसहजार विश्वासी भी नहीं कर पाएंगे।

जब यीशु पृथ्वी पर लौटेगा और आप उसके सामने खड़े होंगे तब क्या आप अपने जीवन के विषय में पछताएंगे या अपने जीवन का स्मरण करेंगे कि आपने परमेश्वर के राज्य के लिये अपना जीवन उपयोग में लाया है? कई लोग इस पृथ्वी पर अपना जीवन व्यर्थ गंवा रहे है। बहुत देर होने से पहले जाग जाओ। परमेश्वर से बिनती करो कि वह आपको विश्वास दिलाए कि उसका मार्ग समर्पण का मार्ग है। जिसे कान है वह सुने।