द्वारा लिखित :   Santosh Poonen श्रेणियाँ :   घर कलीसिया चेले
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मैंने अपने पिता (ज़ैक पूनैन) को इस उदाहरण का इस्तेमाल यह दर्शाने के लिए करते हुए देखा है कि पुरानी वाचा में पवित्र आत्मा की सेवकाई में, और नई वाचा में पवित्र-आत्मा की सेवकाई में क्या अन्तर होता है: पुरानी वाचा में, मनुष्य का हृदय एक प्याले पर ढाँपे हुए ढक्कन की तरह होता था (जैसे इस्राएलियों के मन्दिर में महा-पवित्र स्थान को ढाँपे रखने वाला परदा होता था)। पवित्र आत्मा प्याले के इस बंद ढक्कन पर उण्डेला जाता था और वह उसके आसपास के जनसमूहों के लिए आशिषों की नदियाँ बन कर बह जाता था, जैसा कि मूसा, यूहन्ना बपतिस्मा, आदि के द्वारा बहता था।

लेकिन नई वाचा में, ढक्कन को हटा दिया जाता है (2 कुरि.3:12-18)1 जब यीशु मरा, तब मन्दिर में लगे परदे का फटना और महा- पवित्र स्थान का रास्ता खुल जाना इसका प्रतीकात्मक स्वरूप था। अब जब पवित्र आत्मा उण्डेला जाता है, वह पहले प्याले को भरता है पहले विश्वासी के हृदय का साफ करता है और फिर लोगों के लिए एक आशिष के रूप में, जैसा कि यीशु ने यूहन्ना 7:37-39 में बताया है, उसकी "भीतरी गहराइयों में से" प्रवाहित होता है। नई वाचा की कलीसिया का इसी तरह निर्माण होता है।

अगर हम पवित्र आत्मा को अब भी सिर्फ दूसरों को प्रचार करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो हम सिर्फ एक मण्डली या सदस्यों की सभा ही बनाएंगे। लेकिन अगर हम परमेश्वर को हमें भरने देंगे और सबसे पहले परमेश्वर के प्रेम को अपने हृदय में भरने देंगे, तब वह हमारी भीतरी गहराईयों में से दूसरों की तरफ प्रवाहित हो सकता है। तब हम उन लोगों के साथ कलीसिया का निर्माण कर सकेंगे जिनमें हमारी ही तरह सहभागिता की आत्मा होगी। हमारे हृदय में से परमेश्वर के लिए और दूसरों के लिए प्रेम उमड़ कर प्रवाहित होने लगेगा, और हरेक के अपनी-अपनी सूली उठाकर चलने द्वारा आत्मा की सच्ची एकता तैयार हो सकेगी।

असल में, प्राथमिक तौर पर सच्ची कलीसिया का निर्माण तब होता है जब हम एक-दूसरे से दूर होते हैं। इसका निर्माण सिर्फ तभी नहीं होता जब हम रविवार की सभाओं में एकत्रित होते हैं। हाँ, पवित्र आत्मा के दान-वरदानो द्वारा उसका वहाँ निर्माण होता है। लेकिन उसका निर्माण तब और ज़्यादा होता है जब हम एक-दूसरे से दूर होते हैं। जब हम किसी बात के प्रलोभन में पड़ते हैं- बेईमानी करने, क्रोधित होने, या अपनी आँखों से लालसा करने के लिए, आदि - तब वहाँ हम यह साबित करते हैं कि हम यीशु की कलीसिया का हिस्सा हैं। इन परीक्षाओं में, अगर हम अपनी सूली उठाते हैं, अपनी खुदी में मरते हैं, प्रभु के प्रति अपनी भक्ति को बनाए रखते हैं, और पाप का सामना करते हैं, तब ऐसा होता है कि हम ज्योति में चलते हुए प्रभु के साथ सहभागिता करते हैं। ऐसा होने के बाद जब हम एक-दूसरे से मिलेंगे, तब हमारी वास्तव में एक-दूसरे के साथ सच्ची सहभागिता होगी (1 यूह.1:7 )।

कुलुस्सियों 2:2 हमारे हृदयों के परस्पर “प्रेम में गुंथे हुए" होने की बात करता है। मैं अपने आपको प्रेम में दूसरों के साथ नहीं गूंथ सकता। सिर्फ पवित्र आत्मा ही हमारे हृदयों को एक- क-दूसरे के साथ गूंथने का काम कर सकता है। लेकिन, अगर मैं अपने हृदय को किसी मानवीय तरीके से आपके हृदय के साथ गूंथना चाहूँगा जैसे आपको कुछ उपहार देने, या आपके साथ समय बिताने द्वारा, आदि, तो मैं सिर्फ एक सदस्यों की सभा ही बनाऊँगा। लेकिन परमेश्वर सिर्फ यह कहता है, “अपनी खुदी में मर जाओ।" जब मैं ऐसा करूँगा, तब पवित्र-आत्मा ने मुझे जिस स्थानीय कलीसिया में रखा है, उसमें वह मेरे हृदय को भी उन लोगों के साथ एक अदृश्य और अलौकिक रूप में गूंथने का काम करेगा, जो अपनी खुदी में मर रहे हैं।

तब हमारी सहभागिता मधुर बन जाएगी - इसलिए नहीं क्योंकि हम एक ही मसीही-सिद्धान्तों में विश्वास करते हैं या एक ही स्तुति के गीत गाते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि हम दोनों ही भूमि में गिरकर अपनी खुदी के जीवन के लिए मर गए हैं। इस तरह, हम फिर पवित्र आत्मा के द्वारा एक-दूसरे के साथ सहभागिता करने वाले हो जाते हैं।

अपनी खुदी में मरे बिना हमारी जो भी सहभागिता होगी, उसका परिणाम सच्ची मसीही सहभागिता नहीं सिर्फ एक मित्रता होगी। सहभागिता एक आत्मिक बात है, लेकिन मित्रता एक पार्थिव बात है।

संसार के लोगों में मित्रता होती है। संसार में ऐसे सदस्यों की अनेक सभाएं होती हैं जिनमें लोगों की बहुत नज़दीकी मित्रता होती है, और वे गहराई से एक-दूसरे की देखभाल करने वाले होते हैं। लेकिन उनमें कभी सच्ची सहभागिता नहीं हो सकती, क्योंकि यह एक आत्मिक काम है जो हमारे जीवनों में सिर्फ पवित्र आत्मा ही कर सकता है। जब परमेश्वर अपने किसी भी बच्चे को “यीशु की मृत्यु को अपनी देह में" लेकर चलते हुए देखता है, तो वह उसे “यीशु के जीवन" में से थोड़ा और देकर पुरस्कृत करता है (2 कुरि. 4:10, 11)। दो विश्वासियों के अन्दर "यीशु का जीवन" ही उनके बीच में सच्ची सहभागिता पैदा करता है। और ऐसे लोगों के द्वारा ही परमेश्वर उसकी नई वाचा की कलीसिया का निर्माण करता है।

जब मैंने इन सत्यों को देखना शुरू किया, तब मैंने प्रभु से यह पूछना छोड़ दिया, "प्रभु, वे लोग कहाँ हैं जो तेरी सच्ची कलीसिया का निर्माण करना चाहते हैं?" मुझे यह समझ आ गया कि अगर पहले मैं स्वयं भूमि में गिरने और मरने के लिए तैयार हो जाऊँगा, तो परमेश्वर उन्हें ढूँढ निकालेगा और हमें एक-दूसरे के साथ कर देगा। अगर मैं अपनी खुदी में मरने से इनकार कर दूँगा, तो परमेश्वर उन्हें मेरे पास नहीं लाएगा।

अपने आसपास पूरे हृदय से समर्पित विश्वासियों को ढूँढना, "भूसे के ढेर में सूई ढूँढने " जैसी बात है। भूसे के ढेर में छोटी सुइयों को ढूँढने में हमें बहुत साल लग सकते हैं, और शायद बहुत सालों बाद, हमें एक सूई मिलेगी। लेकिन प्रभु कहता है, "उन सूइयों को ढूँढने में अपना समय बर्बाद मत करो। मैं जानता हूँ वे कहाँ हैं। तुम सिर्फ भूमि में गिरकर अपने खुदी में मर जाओ।" और फिर आपके अन्दर यीशु का जीवन ऐसा शक्तिशाली चुम्बक बन जाएगा, कि वह उन "सूइयों” को (पूरे हृदय से समर्पित विश्वासियों) को बाहर खींच लाएगा (यूह. 1:4; 12:32)।

दूसरे विश्वासी जो एक भक्ति का जीवन जीना चाह रहे हैं और नई वाचा की कलीसिया का निर्माण करना चाह रहे हैं, वे आपकी तरफ और आपके द्वारा प्रचार किए जा रहे सूली के संदेश की तरफ खिंचे चले आएंगे। यह परमेश्वर कर तरीका है। वह पूरे हृदय से समर्पित लोगों को हमारे पास लाता है। यीशु ने यूह. 6:37 में कहा, "वह सब जो पिता मुझे देता है मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा, मैं उसे हर्गिज़ न निकालूँगा।" और पिता हमारे लिए भी यही करेगा। हम इसी तरह नई वाचा की कलीसिया का निर्माण करते हैं।