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रोमन कैथलिक चर्च में, उनकी एक धार्मिक विधि है कि लोग एक सम्मुख करें पुरोहित के सम्मुख अपने पापों का अंगीकार करते हैं। कुछ प्रोटेस्टेंट कलीसियाएं भी उनके विश्वासियों को प्रोत्साहित करती हैं कि वे एक-दूसरे के सम्मुख उनके पापों का अंगीकार किया करें, और यह सिखाती हैं कि वे अपना एक “उत्तरदायी-साथी" बनाएं जिसके सम्मुख वे अपने पापों का नियमित अंगीकार किया करें, जिससे कि वे अपने पापों पर जय पाने वाले बन सकें। नई वाचा में ऐसी शिक्षा कहीं नहीं मिलती। यह मानवीय मनोविज्ञान की शिक्षा है, पवित्र आत्मा की नहीं। फिर भी अनेक विश्वासियों ने इस झूठी शिक्षा को स्वीकार कर लिया है और अब वे इसका अभ्यास करते हैं।

बाइबल किसी का भी एक “उत्तरदायी-साथी”होने के बारे में कहीं कोई बात नहीं करती। इस तरह पाप से बचने का तरीका तो मनुष्यों के भय की वजह से पवित्रता का खोजी बनना है - पाप से इसलिए बचना कि फिर अपने "उत्तरदायी साथी" के सम्मुख उसका अंगीकार करने से लज्जित न होना पड़े। लेकिन बाइबल हमें परमेश्वर के भय में पवित्रता को सिद्ध करने की बात सिखाती है - मनुष्य के भय में नहीं (2 कुरि 7:1 )। हम परमेश्वर को उत्तरदायी हैं- "हमें सिर्फ उसे ही अपना लेखा देना है" (इब्रानियों 4:13)।

हम अपने पापों का अंगीकार सिर्फ प्रभु से ही करें। याकूब 5:16 की इस आज्ञा को, कि “तुम परस्पर अपने पापों को मान लो", अक्सर उसके संदर्भ में से अलग कर दिया जाता है। इस संदर्भ में, यह स्पष्ट है कि यह एक बीमार विश्वासी के बारे में है जिसके लिए कलीसिया के प्राचीन प्रार्थना कर रहे हैं। बीमारी क्योंकि कभी- कभी पाप की वजह से भी होती है (जैसा कि हम यूहन्ना 5:14 में देखते हैं), इसलिए बीमार व्यक्ति को उसके पाप का अंगीकार करने के लिए कहा गया है (जो उसकी बीमारी की वजह हो सकता है) “कि फिर वह चंगा हो सके।" यह विश्वासियों को यह सिखाना नहीं है कि वे दूसरे विश्वासियों के सम्मुख अपने पापों का अंगीकार करें। जब किसी पद को उसके संदर्भ में से अलग कर दिया जाता है, तो यह बात बहुत ख़तरनाक हो सकती है। एक संदर्भ से अलग किया पद झूठी शिक्षा का आधार बन जाता है। इसलिए यह ध्यान रखें कि आप पदों को उनके तत्काल संदर्भ में ही पढ़ें, और फिर उनकी तुलना बाइबल में उसी विषय के दूसरे पदों से भी करें।

जिस एकमात्र पाप का अंगीकार हम किसी व्यक्ति के सम्मुख कर सकते हैं, वह वही पाप हो सकता है जो हमने उस व्यक्ति के खिलाफ किया है। जैसे, अगर हमने उसके साथ बेईमानी की है, या उसे चोट पहुँचाई है, आदि (मत्ती 5:23. 24 )। यह बात हमेशा याद रखें।

हम अपने पिछले पापों के बारे में किसी से कभी विस्तृत चर्चा न करें, क्योंकि इससे शैतान महिमान्वित होता है (जिसने हमसे वे पाप कराए थे), और जिनसे हमारा अंगीकार सुनने वालों के मन भी दूषित होते हैं। अब हम यह कहते हुए परमेश्वर की महिमा करते हैं कि हम मसीह के लहू द्वारा शुद्ध हो चुके हैं, और निर्दोष ठहराए जा चुके हैं (मानों हमने कभी कोई पाप ही न किया हो)। आप अपने जीवन भर यह याद रखना । यकीनन हमें यह अंगीकार करते रहना है कि हम वे पापी हैं जो परमश्वर की कृपा से उद्धार पा चुके हैं। लेकिन हम अपने पापों का विस्तृत बयान परमेश्वर के अलावा और किसी के सम्मुख नहीं करते। यह नई वाचा का तरीका है।

हमारी साक्षी द्वारा सिर्फ परमश्वर की ही महिमा हो सभी विश्वासी जब अपनी साक्षी दें, तो वे हमेशा उस काम के लिए परमेश्वर की महिमा करें जो उसने उनके अन्दर किया है (सकारात्मक भाग), लेकिन वे कभी उन बातों की चर्चा करते हुए शैतान को महिमान्वित न करें जो उनके मन-फिराव से पहले के दिनों में उसने उनसे कराए। बस इतना कहना ही काफी है कि हम पापी, विश्वास से भटकने वाले, या विद्रोही, आदि थे।

मैं व्यक्तिगत रूप में इस बात से उत्साहित हुआ हूँ कि पतरस ने अपनी पत्रियों में उसके द्वारा प्रभु का इनकार करने के बारे में नहीं, बल्कि उसके रूपान्तर के पहाड़ के अनुभव के बारे में बात की है (2 पत. 1:17, 18 )। इसी तरह, जब पौलुस यहूदियों (प्रेरितों के काम 22) और अग्रिप्पा (प्रेरितों के काम 26) को अपनी गवाही देता है, तो उसने भी प्रभु से उसका आमना-सामना होने के बारे में बहुत विस्तार से बात की थी, लेकिन उसके द्वारा मसीहियों के सताए जाने के बारे में ज़्यादा बात नहीं की थी। मैंने देखा है कि अपने ख़ास पापों का अंगीकार करना, यह रोमन कैथलिक और विधर्मी विचार है, जिसे एक दुर्भाग्यपूर्ण रूप में कुछ प्रोटैस्टंट लेखक भी आजकल प्रोत्साहन दे रहे हैं। ऐसे “स्व-निर्मित धर्म और आत्म-त्याग में ज्ञान का नाम है, तो असल में इसका कोई मूल्य नहीं है" (कुल. 2:23)। आत्म-त्याग नम्रता व दीनता नहीं होता, और न ही वह बुद्धि है। हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत बुद्धि ही है।