द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   परमेश्वर को जानना चेले आदमी
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1 कुरिन्थियों 11 में, हमसे यह कहा गया है कि जब हम रोटी तोड़ें, तो प्रभु की मृत्यु को याद करें। यीशु आया और उसने अपने जीवन के द्वारा और अपनी शिक्षा के द्वारा हमें यह दिखाया कि "मृत्यु परमेश्वर के जीवन का प्रवेश-द्वार है" (देखें 2 कुरि. 4:10 )। इसलिए हमारे लिए यह अच्छा है कि हम मसीह की मृत्यु के हरेक पहलू पर चिंतन-मनन करें, और एक ज़्यादा स्पष्ट तरीके से यह समझें कि उस मरने में सहभागी होने (टूटी हुई रोटी खाने में) और मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाए जाने का क्या अर्थ है।

मसीह की मृत्यु का एक पहलू यह है कि क्रूस पर उसने ऐसी बात के दोष को अपने ऊपर ले लिया, जो उसने नहीं किया था ("मुझे अकारण दण्ड दिया जा रहा है, और जो मैंने चुराया नहीं है, वह भी मुझे भरना पड़ रहा है" - भज. 69:4 लिविंग)। यह उसका बिलकुल उलट है जो आदम ने किया था - उसने जो किया था, उसने उसका दोष अपने ऊपर न लिया था; उसने अपनी पत्नी पर दोष लगा दिया था ( उत. 3:12)। आदम की संतानों और परमेश्वर की संतानों के चाल-चलन के ये दो बिलकुल भिन्न तरीके हैं।

आदम के बच्चे अपने पिता की तरह खुद को सही ठहराते हैं। यीशु ने फरीसियों से कहा, “तुम ऐसे लोग हो जो अपने आपको सही ठहराते हो" (लूका 16:15)। आदम अपनी ज़रूरत और अपने पाप को नहीं देख सकता था। वह सिर्फ दूसरे का पाप ही देख सकता था। जब एक व्यक्ति दूसरों पर दोष लगाता है और स्वयं अपने अन्दर कोई बुराई नहीं पाता है, तो असल में वह दोष लगाने वाले शैतान के साथ सहभागिता में होता है।

मरता हुआ डाकू बचा लिया गया था, सिर्फ इस वजह से नहीं क्योंकि उसने यह कहा था, "प्रभु, मेरी सुधि लेना।" उसका इसलिए उद्धार हुआ क्योंकि उसने ये शब्द बोलने से पहले अपने पापों के दोष को स्वीकार कर लिया था।

दूसरों का न्याय करने के लिए परमेश्वर को हमारी मदद की ज़रूरत नहीं होती। उसमें यह योग्यता है कि वह स्वयं यह कर सकें! वह चाहता है कि हम सिर्फ अपना न्याय किया करें।

प्रभु ने यिर्मयाह के द्वारा यहूदा की प्रजा से कहा कि उन्होंने उत्तरी राज्य इस्राएल की नाकामी से कोई पाठ नहीं सीखा था (यिर्म 3:6 - 8)। और फिर उसने कहा कि इस्राएल यहूदा से बेहतर था। अनेक मसीही समूह जो मरे हुए मसीही मतों में से बाहर निकल आए हैं, उन्होंने इस बात से कोई पाठ नहीं सीखा है कि परमेश्वर ने उन मरे हुए मतों के साथ क्या किया है। इसके नतीजा यह हुआ है कि वे उन मरे हुए मतों से भी ज़्यादा फरीसीनुमा और मरे हुए हैं।

हमेशा यीशु की तरफ देखते हुए अपने जीवन उसके सम्मुख बिताएं। इस तरह, आप एक ऐसा जीवन जी सकेंगे जिसमें आप लगातार अपना न्याय खुद कर सकेंगे। और हर तरह की आत्मिक उन्नति का यही तरीका है। यह ऐसा संदेश नहीं है जिसे आप उन कलीसियाओं में सुन सकेंगे जहाँ आप सहभागिता करते होंगे। इसलिए आपको स्वयं ही अपना प्रचारक बन जाना होगा। आप आत्म-निरीक्षक न बनें, क्योंकि इससे आप अपने आपको दोषी ठहराने वाले बन जाएंगे और निरुत्साहित हो जाएंगे। परन्तु यीशु की ओर देखें - और जब आप उसे देखेंगे, तो आप अपनी भ्रष्टता को देखेंगे, ठीक वैसे ही जैसे यशायाह और अय्यूब और यूहन्ना ने (पटमोस पर) देखा था। तब आप स्वयं न्याय कर सकते हैं।

मैं कभी अपने अन्दर नहीं देखता मैं लगातार यीशु की तरफ देखता हूँ - उसकी सिद्ध शुद्धता (एक पुरुष के रूप में, जो मेरी ही तरह परखा गया था), उसका प्रेम और उसकी नम्रता व दीनता । इससे मुझे हर समय अपनी ज़रूरत का अहसास रहता है।