द्वारा लिखित :   जैक पूनन
WFTW Body: 

पौलूस ने बंदीगृह में रहते हुए भी आनंद के बारे में कितना अधिक लिखा है, यह हमारे लिए एक चुनौती है। जब हमारे सारे हालात सुखदायक होते है, तब आनंद के बारे में लिखना एक बात होती है। लेकिन जब हमारे हालात मुश्किल भरे होते है, तब आनंद के बारे में लिखना एक अलग बात होती है। पौलूस के शब्द फिलिप्पियों 1:4; 4:4 में हमें यह सिखाते है कि एक मसीही के लिए यह संभव है कि वह सभी परिस्थितियों में आनंदित रह सके। यह यीशु का मन और स्वभाव है।

फिलिप्पियों 1:6,7 में प्रेरित पौलूस कहता है, “मुझे यकीन है कि जो भला काम परमेश्वर ने तुममें आरंभ किया है, वह उसे मसीह यीशु के दिन तक पूरा करेगा। तुम्हारे बारे में मेरा ऐसा सोचना उचित है क्योंकि तुम मेरे हृदय में बसे हो”। अगर आप एक प्रचारक है और परमेश्वर के लोगों के लिए नबूवत का एक शब्द चाहते है, तो आपके हृदय में दो बातें हमेशा होनी चाहिए। आपके हृदय में परमेश्वर का वचन और परमेश्वर के लोग होने चाहिए। अगर आपके हृदय में सिर्फ परमेश्वर का वचन है लेकिन उसके लोगों के लिए कोई प्रेम नहीं है, तो परमेश्वर आपको उनके लिए कोई वचन नहीं देगा। इसी तरह, अगर आप परमेश्वर के लोगों से प्रेम करते है, लेकिन आपके हृदय में परमेश्वर का वचन नहीं है, तो भी वह आपको नबूवत का शब्द नहीं देगा। पौलूस ने विश्वासियों को अपने हृदय में बसा रखा था, वैसे ही जैसे हारून के सीनाबंध में उसके हृदय के ऊपर इस्राएल के बारह गोत्रों का नाम लिखा हुआ था। एक मनुष्य होने के कारण पौलूस जगत के हरेक विश्वासी को अपने हृदय में बसा कर नहीं रख सकता था। उसके हृदय में वही बसे थे जिनकी ज़िम्मेदारी परमेश्वर ने उसे दी हुई थी। जब हमारे हृदय में परमेश्वर का वचन और वे लोग होते है जिनके देखभाल की ज़िम्मेदारी उसने हमें सौपी है, तब हमारे द्वारा बोला गया एक वाक्य भी उन्हें आशिषित करेगा।

फिलिप्पियों 2:3 में पौलूस प्रोत्साहित करता है: स्वार्थ और घमंड से कोई काम न करो। फिलिप्पियों 2:5 में पौलूस आगे कहता है “अपने में वही मन (स्वभाव) रखो जो यीशु मसीह में था”। आप इस वचन के साथ अपना पूरा जीवन बीता सकते है। अपने आप को बदलने के लिए आपको बाइबल के दूसरे किसी वचन की जरूरत नहीं है। हरेक परिस्थिति में अपने आप से यह सवाल पूछते रहें, “क्या इसमें मेरा स्वभाव यीशु मसीह समान है?” अपने पिछले कामों को इस सवाल से परखे, “क्या उसमें मेरा स्वभाव मसीह समान था?”

फिलिप्पियों 3:8 में पौलूस कहता है कि पृथ्वी पर जो कुछ भी है – जिसमें मानवीय धार्मिकता शामिल है - असल में मसीह की तुलना में सब कूड़ा करकट और गंदगी है। क्या आपने स्वयं इस बात को समझ लिया है? क्या आपने यह देख लिया है कि जगत का सारा धन मसीह की तुलना में कूड़ा करकट है? क्या आपने यह देख लिया है कि मनुष्य का सारा आदर मसीह की तुलना में गंदगी है? क्या आपने यह देख लिया है कि संसार की सारी सुख सुविधा मसीह की तुलना में कूड़ा करकट है? परमेश्वर की इच्छा पूरी करना, जहां परमेश्वर हमें चाहता है उस जगह में मौजूद होना, मसीह की समानता में बढ़ना और जो सेवकाई परमेश्वर ने आपके लिए रखी है उसे पूरी करना – अनंत के दृष्टिकोण से सिर्फ यही बातें महत्वपूर्ण है। पौलूस फिर अपने जीवन की एक बड़ी अभिलाषा के बारे में बात करता है। वह अभिलाषा कोई प्रसिद्ध और लोकप्रिय प्रचारक बनने की नहीं थी। उसके लिए वह सब कूड़ा करकट था। उसकी तीव्र इच्छा यह थी कि वह मसीह को और उसकी मृत्युंजय की सामर्थ को और उसके साथ दुखों में सहभागी होने के मर्म को जाने (फिलिप्पियों 3:10)

फिर पौलूस एक और चुनौती पूर्ण बात कहता है, “किसी भी बात की चिंता मत करो” (फिलिप्पियों 4:6)। यह हमारे लिए पर्वत की एक चोटी पर चढ़ने के समान है। हम सबके जीवन में चिंता बहुत आसानी से आ जाती है। जब आपके पास महीने के अंत तक घरखर्च के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता, तो आप चिंता करते है। जब बच्चों को स्कूल से आने में देरी होती है, तो आपको चिंता होने लगती है। अगर आप एक जवान व्यक्ति है और आपका विवाह नहीं हुआ है और आपकी उम्र बढ़ती जा रही है, तो आपको चिंता होने लगती है। हमें बहुत सी बातें चिंता में डाल देती है। हम पृथ्वी पर रहते हुए शायद पर्वत की चोटी पर नहीं पहुँच पाएंगे। लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना है कि हमारा परमेश्वर में विश्वास और भरोसा बढ़ता रहें, कि हमें जब भी किसी बात की चिंता हो तो हम उसे प्रार्थना में धन्यवाद के साथ प्रभु के पास ले जा सकें।

पौलूस फिलिप्पियों को अपने मन को हमेशा श्रेष्ठ बातों पर लगाएं रखने के लिए प्रोत्साहित करता है (फिलिप्पियों 4:8)। फिर पौलूस हमें बताता है कि उसने अपने जीवन में थोड़े में या ज्यादा में, दीनहीन दशा में या सम्पन्नता में – जो भी परमेश्वर ने अपने सर्वज्ञान में उसे देने का चुनाव किया है – उसमें संतुष्ट रहने का भेद जान लिया है (फिलिप्पियों 4:11,12)। यह वास्तव में एक भेद की ही बात है – क्योंकि ज़्यादातर मसीहियों ने अभी तक इस तरह जीवन जीना नहीं सीखा है। फिर पौलूस यह जयघोष करता है, “जो मुझे सामर्थ प्रदान करता है, उसके द्वारा मैं सबकुछ कर सकता हूँ” (फिलिप्पियों 4:13)। जब मसीह हमें सामर्थ देगा, तब हम हमेशा आनंदित रहने और किसी भी बात की चिंता न करने में समर्थ होंगे।